‘Schools are Closed and Teachers are Free’

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:49 By: admin

Vedika teaches at a private school in Noida. Since the beginning of the lockdown, her salary got reduced and also gets delayed often. At least she is happy that she is able to retain her job. Every month, the first few days, she spends in great anxiety. She doesn’t have any saving. Along with her husband, she took a home loan two years back. And she is completely dependent on her salary to make the ends meet. Above all, her financial independence corresponds to her personal independence and she doesn’t want to lose it.

शिक्षकों के गैर पेशेवर पहचान को बढ़ावा देती नई शिक्षा नीति।

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:43 By: admin

शिक्षकों  के गैर पेशेवर पहचान को बढ़ावा देती नई शिक्षा नीति।

स्वतंत्र भारत के करीब-करीब 75 सालों के इतिहास में अभी तक तीन बार शिक्षा नीति बनाई गई हैl 1968,1986( संशोधित रूप में 1992) और अब 2020, निश्चित ही शिक्षा के क्षेत्र में ये महत्वपूर्ण नीतिगत दस्तावेज है। शिक्षा नीति किसी भी देश में शिक्षा की दिशा और दशा तय करती है। किसी भी नीति में कुछ अच्छे और कुछ बुरे प्रावधान हो सकते हैं लेकिन अच्छे और बुरे प्रावधानों से नीति की व्याख्या नहीं की जा सकती है। नीति की व्याख्या वह कौन सी दिशा तय करती है,इस संदर्भ में करना होता है।

Exploring and Promoting Pluralism in School

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:43 By: admin

This is a chapter from the RRCEE’s collection, ‘Voices Unheard’. Murari Jha was a Teacher fellow at RRCEE, CIE, University of Delhi in the year 2013-14. He worked on the theme ‘Exploring and Promoting Pluralism in School’ as a part of his fellowship. Shailaja Modem, who teaches at Gargi College, University of Delhi mentored him.

Kindly click on the link below to read the research report!

अपने शहर की तलाश में

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:42 By: admin

शिव प्रकाश नींद में कुछ  जोर जोर से बोल रहा था, बगल में लेटी उसकी पत्नी, अनुप्रिया, झटपट मोबइल ऑन करती है और शिव प्रकाश क्या बोल रहा है उसको रिकॉर्ड करने लगती है। क्या पता कुछ राज की बात पता चल जाए। आदमी कई बार नींद में ऐसी बातें बोलने लगता है जो वह जगे हुए में नहीं बोल पाता है। 

हौ कका एकटा गीत कह क न, कहुना बाट कटी जेतै।

जनि जाती सब छै संग म, ठीक नै लागै छै। कका, गै बी दहक एकटा गीत, सिंटूआ क मम्मी से हो कहैत छ।

 

…..हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर,आजू के दिनवा हो दीनानाथ….

 

कका हौ ई त छठी के गीत छियै। 

LOCKDOWN #3

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:41 By: admin

फोन की घंटी बहुत देर से बज रही हैं। फोन बेड के कोने वाले टेबल पर रखा हुआ है। राशि बेड पर लेटी हुई, न सो रही है न जाग रही है, लेकिन उठकर फोन उठाने का उसका मन नहीं कर रहा है। 

फोन की घंटी बजती ही चली जा रही है। तभी दूसरे कमरे से आवाज आती है 

“अरे क्या हुआ तुम फोन क्यों नहीं उठा रही हो”

राशि जवाब नही देती है।

पुश अप, बीच मे ही रोक कर अखिल एक बार फिर से आवाज लगाता है 

Different Shades of Lockdown #2

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:40 By: admin

फ्रिज खुलने की आवाज आते ही, हॉल में बैठी मंजू देवी बोल उठी… 

“बहु दूध जरा संभाल के ही खर्च करना”

बिना कोई जवाब दिए, सुनैना अपना काम करती रही।

उधर मंजू देवी एक बार फिर से बोल उठी 

“बेटे रमण,चाय पीने से पहले पानी पी लो,

Lockdown

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:38 By: admin

हल्का सा एक चपत पड़ते ही सोनू चिल्लाते हुए उठा, 

मम्मी, क्या हुआ…

रीना बहुत देर से उसे उठाने की कोशिश कर रही थी,

चल मेरे साथ बाहर आ, कहते हुए रीना बेड से नीचे उतर जाती है, उसने अपने पल्लू को ठीक किया, गर्दन तक घूंघट खींच लिया। सोनू को गोदी में लेकर वह बाहर निकली। बाहर बहुत अंधेरा था, बरामदे पे टँगी दीवार घड़ी में रात के दो बज रहे थे। आंगन के दूसरे कोने पे जाकर उसने सोनू को नीचे उतार दिया, 

Welfare Vs Identity Politics

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:37 By: admin

दिल्ली में चुनावों के तारीख की घोषणा हो चुकी है। भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति के इतिहास में शायद पहली बार जन सरोकार की राजनीति का सीधा मुकाबला पहचान की राजनीति से है। वर्षों से पहचान की राजनीति केंद्र और राज्य के चुनावों में अपना दबदबा बनाए हुई है। पहचान की राजनीति से मेरा मतलब है धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, राष्ट्र इन सब को आधार बना कर चुनाव लड़ना।

Oh My God, Your Education Minister, Can’t Believe It !

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:36 By: admin

“मैं अगर आपको कहूँ कि उस दूसरे कमरे में जाकर जेंटलमैन को बुला लाइये, अगर वहाँ तीन लोग खड़े हो, जिसमें से किसी एक ने सूट और टाइ पहन रखा हो तो आप सूट वाले को बुला लाएँगे। ये कैसे होता है, कब हमने जेंटलमैन की परिभाषा गढ़ दी”

महिलाओं की आर्थिक समृद्धि और सुरक्षा की ओर बढ़ता कदम।

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:34 By: admin

आज से करीब-करीब 15 साल पहले कल्याणी और मैं मुनिरका में रहकर पढ़ाई करते थे। कल्याणी को हर रोज करीब 3 किलोमीटर दूर मोतीलाल नेहरू कॉलेज जाना होता था। बस में 2 रुपये का टिकट लगता था । वो अक्सर जाने और आने का 4 रुपया बचाने के लिए पैदल ही चली जाती थी। कई बार एक स्टॉप आगे बढ़ जाने से टिकट 7 रुपये का हो जाता था तो हम अपने गंतव्य से एक स्टॉप पीछे ही उतर जाते थे। किसान परिवार की कोई मासिक आय नही होती थी, आज भी नही होती है। ऐसे में नियमित मासिक खर्च बहुत महंगी पड़ती थी।

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