स्कूल नहीं गाड़ियों को बंद करना चाहिए

स्कूल नहीं गाड़ियों को बंद करना चाहिए

Posted on: Sun, 11/06/2022 - 12:08 By: admin
निर्णय लेने की अनिवार्यता के तहत खोलने और बंद करने से कुछ करते रहने का एहसास होता है। प्रदूषण को कम करने के लिए या उसकी भयावहता से बचने के लिए अगर हमें कुछ बंद करना ही है तो हमें स्कूल नहीं गाड़ियों को बंद करना चाहिए! 

 

  

स्कूल नहीं गाड़ियों को बंद करना चाहिए! 

 

नवंबर की शुरुआत से ही स्कूलों पर बंद होने का खतरा मंडराने लगता है। करीब-करीब पूरे उत्तर भारत में और खास कर दिल्ली-एनसीआर में साल के इस महीने में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। विशेषज्ञ यह बताने लगते हैं  कि जहरीली हवा में साँस लेना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और लोगों को यह सलाह दी जाती है कि वे बाहर निकलना कम कर दें। प्रदूषण से बचाने के तमाम सुरक्षा उपायों में सबसे पहला उपाय यही होता है कि स्कूलों को बंद कर दिया जाए और तर्क यह दिया जाता है कि कम उम्र के बच्चों पर इसका और खतरनाक या प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा! इन वैज्ञानिक तर्कों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है हालांकि स्कूल के बंद होने से बच्चों के जीवन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव का अध्ययन हमें एक वैकल्पिक नजरिये से इन फैसलों को देखने का हौसला दे सकता है।

 

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षाविद एवं समाजशास्त्री यह मानते हैं कि स्कूली शिक्षा में मध्यवर्गीय और उच्च मध्यवर्गीय मूल्यों को प्रत्यारोपित कर दिया गया है। इसकी झलक विद्यालय के नियम-कानून, पाठ्यक्रम,पाठ्यचर्या एवं उनमे दिए गए उदाहरणों में देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए पाठ्य पुस्तकों में घर का विवरण कुछ इस प्रकार होता है…घर में एक किचन है, डाइनिंग टेबल पर बैठकर घर के लोग भोजन करते हैं, विश्राम के लिए अलग से बेडरूम की व्यवस्था होती है, और बैठक के लिए ड्रॉइंग रूम उपलब्ध होता है। ड्राइंग रूम में सोफे और अन्य फर्नीचर को दर्शाया जाता है। ऐसा दिखाया जाता है कि खाने का, सोने का, नाश्ता करने का और खेलने का एक तय समय होता है। पापा सुबह काम पर जाते हैं और शाम को समय से लौट आते हैं। साथ में परिवार के सभी लोग मिलकर डिनर करते हैं।

 

अगर हम इन बातों का एक रुब्रिक्स बना लें और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के घरों का एक दौरा करें। ज्यादा नहीं 10 बच्चों के घर भी जाकर देखें तो करीब करीब 8 बच्चों के घर में हम ऊपर दिए गए तस्वीर से मिलती-जुलती तस्वीर नहीं खींच पाएंगे। अमूमन एक छोटे से घर में परिवार के सभी सदस्य रहते हैं कई बार एक छोटा सा किचन अलग से दिया हुआ होता है और कई बार किचन भी बेडरूम का ही हिस्सा होता है, ड्राइंग रूम और खाने के लिए डायनिंग टेबल, कल्पना की बातें होती है। एक छोटे से कमरे को 4 से 5 लोग आपस में साझा करते हैं। पुरानी दिल्ली के इलाके से ऐसे ही एक घर का जिक्र फ़राह फारुकी अपनी किताब "एक स्कूल मैनेजर की डायरी" में करती हैं।

"...कई और छोटे कारख़ाने घर में ही चलते हैं, जहाँ घर के बड़े और बच्चे मिलकर काम करते हैं। अहाता किदारा में अन्दर एक कमरे के घर में बैग का कारख़ाना था। 10X10 फुट के कमरे में एक तरफ़ गैस का चूल्हा और बरतन बिखरे पड़े थे। एक दीवार से लगी कपड़ा सीने की दो मशीनें रखी थीं। एक दीवार से लगा कपड़े के थैलों का अम्बार था, वहीं कच्चा माल भी रखा था। एक तरफ़ दीवार में बनी अलमारी में घरवालों के पहनने के कपड़े, बच्चों के स्कूल बैग और किताबें बेतरतीब ढंग से भरे पड़े थे, जो इन मज़दूरों की बेतरतीब-सी ज़िन्दगी का अक्स था। यह समझना मुश्किल था कि घर के सात फ़र्द रात को इस घर में कैसे सो पाते होंगे। यह घरनुमा कारख़ाने और कारख़ानेनुमा घर तंगी, बेतरतीबी, जद्दोजहद की अपनी कहानी बयान करते लगते हैं। यह भी सबको पता है कि ऐसे इलाक़ों में लोग काम की ख़ातिर शिफ़्टों में सोते-जागते हैं।"

 

इन्हीं घरों से अधिकतर बच्चे हमारे स्कूलों में आते हैं। अब जरा हम इस बात पर विचार करते हैं कि "इनडोर" का अर्थात घर के अंदर रहने का इन बच्चों के लिए क्या मतलब है? क्या घर के अंदर रहना इनके लिए संभव है? अधिकतर मामलों में सुबह मम्मी-पापा काम के लिए निकल जाते हैं और पूरे दिन फिर इन बच्चों की देखभाल के लिए कोई नहीं होता है। कई मामले में स्कूल अगर बंद है तो बच्चे भी काम पर निकल जाते हैं। बच्चे पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं बाहर घूमने के लिए। घर के अंदर रुकने जैसा कुछ होता भी नहीं है। कई मामलों में इन बच्चों के लिए यह एक सजा होती है। ऐसा नहीं है कि घर के बाहर जिंदगी बहुत खूबसूरत है लेकिन थोड़ा सा चल पाते हैं, दूसरे बच्चों के साथ थोड़ा खेल लेते हैं, बच्चे ही हैं,कभी दौड़ भी लेते हैं, कभी गिर भी जाते हैं, इन छोटी-छोटी बातों से ही इनकी जिंदगी में मजा है। 

स्कूल बंद करके हम भले ही इन्हें "इनडोर" रहने का मैसेज दे दें लेकिन ये कभी इनडोर रहते नहीं हैं और रहना इनके लिए संभव भी नहीं है। सवाल यह भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर इस मौसम में घर के अंदर की हवाएँ सांस लेने के लिए कितनी सुरक्षित है? अगर "आउटटडोर" रहना है तो स्कूल से ज्यादा सुरक्षित जगह नहीं हो सकती है। स्कूल में वे बिना इस बात की चिंता किए चल सकते हैं कि पीछे से कोई हॉरन नहीं बजा रहा है। घास के मैदान में कभी दौड़ सकते हैं तो कभी अपने साथियों के साथ मिलकर खेल सकते हैं। सहजता से साफ पानी पी सकते हैं, चाव से "मिड-डे मील" खा सकते हैं, साफ-सुथरा और पानी की उपलब्धता वाले वाशरूम का इस्तेमाल कर सकते हैं।समस्या यह है कि निर्णय लेते समय हम बच्चों की जिंदगी को इस व्यापकता में नहीं देख पाते हैं। मध्यवर्गीय और उच्च मध्यवर्गीय मूल्यों को ध्यान में रखकर जो फैसला हम गरीब बच्चों के जीवन के ऊपर थोंप देते हैं, यह फैसले उन बच्चों के लिए अहितकर साबित होता है।

 

निर्णय लेने की अनिवार्यता के तहत खोलने और बंद करने से कुछ करते रहने का एहसास होता है। प्रदूषण को कम करने के लिए या उसकी भयावहता से बचने के लिए अगर हमें कुछ बंद करना ही है तो हमें स्कूल नहीं गाड़ियों को बंद करना चाहिए!