The future of Education in a New Normal
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Future of Education in the New Normal
अध्यापकीय जीवन के फलितार्थ:
सहायक शिक्षिका से सहायक प्राध्यापक तक
By Neeta Batra
आज यह आर्टिकल मैंने SCERT, Delhi में बैठकर लिखा। जब लंच से पहले वाले सेशन में Director SCERT, Joint Director SCERT, तथा Principals, DIET के द्वारा मुझे बार-बार असिस्टेंट प्रोफेसर के पद नाम से बुलाया, तो मुझे एक खुशी तथा जोश की लहर का अनुभव हुआ! मन में विचार आया कि जिस तंत्र में मुझे सपोर्ट किया और यहां तक पहुंचने में मदद की है उसका मन से धन्यवाद करना चाहिए। वह सपना जिसे मैंने बचपन से देखा था कि मुझे प्रोफ़ेसर बनना है आज पूरा हुआ ।
एक बार पढ़ने पढ़ाने के तरीके पर चर्चा करते समय शिक्षाविद प्रोफेसर कृष्ण कुमार अवधारणा का प्रश्न उठाते हैं कि एक शिक्षक के नाते शिक्षण प्रक्रिया में हम इसे कितना महत्व देते हैं , या कितना देना चाहिए।
‘अवधारणा’ किसी भी विषय को समझने-समझाने का प्राथमिक पैमाना है। यह एक सहज, प्राकृतिक व अनिवार्य शर्त है – शिक्षण प्रक्रिया की। उतनी ही सहज जैसे वृक्ष कहते ही हरी पत्तियों से लदा एक तना मिट्टी में अपनी जड़ जमाए दिख जाए ।
पर क्या हम अपनी शिक्षण प्रक्रिया में इसे इसी रूप में समाहित कर पाते हैं ?
पिछले वर्ष मैंने अपनी बेटी का दाखिला एक सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा में करा दिया। अपनी बेटी को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में कराने का मेरा निर्णय सिर्फ़ आर्थिक कारणों से नहीं था। मैं चाहता था कि बेटी समाज की वास्तविकता और विविधता में रहकर सीखे। वह समझ सके कि हम जैसे मध्यवर्गीय या निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से अलग ढर्रे पर चलने वाली दुनिया भी अस्तित्व में है। वह जान सके कि दुनिया की बहुरंगी वास्तविकताएं और जरूरतें हैं। लोगों का आचार- विचार- व्यवहार बहुत हद तक इन्हीं सबसे निर्धारित होता है। वह यह भी जान सके कि इनमें से कुछ भिन्नताओं को हम इंसानों ने ही स्वार्थवश गढ़ा है जो विषमता
आज के इस दौर में, जहाँ कई कारणों से सरकारी विद्यालयों के प्रति समाज में अविश्वास पनपा हैI या यूं कहें की निजीकरण के दौर में जहाँ, सरकारी विद्यालय संसाधनों और अध्यापकों की तंगी से जूझ रहे हैंI जब सरकारी विद्यालयों में लगातार छात्रों की संख्या घट रही है, ऐसे में दिल्ली में शिक्षा का बजट 25% होना उम्मीद की किरण जगा रहा थाI दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों के क्रम में, दिल्ली शिक्षा विभाग के मेंटर शिक्षकों का एक समूह, जनवरी 2019 में महाराष्ट्र के जिला सतारा तथा जिला परभणी में राष्ट्रीय शैक्षिक भ्रमण पर भेजा गया, ताकि देश के कोने-कोने में हो रहे, सकार
A child starts using Math even before learning a native language. A toddler prefers to go towards a box containing 4 candies than to a box containing 2 candies. But as the child grows and starts doing the math operation with a tag of the subject Mathematics, the interest starts diminishing. After researching, I realized that the external factors play a vital role behind this aversion towards Mathematics. Unfortunately, the external factors are the people the child trusts the most i.e. the parents and the teachers.