वैश्विक महामारी के दौर में जहां एक ओर लोगों का जीवन असुरक्षित हो चुका है वहीं दूसरी ओर दुनिया के कई देशों में ऐसा देखा गया है कि सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ रहा है। लोगों के नागरिक अधिकारों को छीना जा रहा हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। इस पृष्ठभूमि में सत्ता की साझेदारी जैसे मुद्दे पर बातचीत की अहमियत और बढ़ जाती है । लोकतांत्रिक राजनीति की दसवीं क्लास की किताब में बच्चों को इस अवधारणा के बारे में पढ़ाया जाता है।
सोशल साइंस फॉर सोशल लाइफ के दूसरे एपिसोड में इसी मुद्दे पर चर्चा हुआ और चर्चा का संचालन श्री विकास रंजन ने किया। चर्चा की शुरुआत करते हुए उन्होंने एनसीईआरटी की किताब में इस मुद्दे के आसपास दी हुई बातों की एक रूप-रेखा रखी और फिर चर्चा में शामिल हो रहे सदस्यों से इसके बारे में अपने वक्तव्य रखने के लिए आमंत्रित किया। मुख्य रूप से उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि किस प्रकार किताब श्रीलंका और बेल्जियम दो अलग-अलग देशों का उदाहरण देता है। किताब में बताया गया है कि श्रीलंका में अलग अलग सामाजिक समूहों के साथ सत्ता की साझेदारी नहीं हो पाने के कारण लंबे समय तक गृह युद्ध होता रहा वहीं बेल्जियम में अलग-अलग सामाजिक समूहों के साथ सत्ता का विभाजन होने की वजह से वहां सभी समुदाय शांतिपूर्वक एक साथ रह सके। भारतीय संविधान द्वारा सत्ता विभाजन के संबंध में प्रावधानों का भी उन्होंने जिक्र किया और बताया कि किस प्रकार भारत में क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर तरीके से सत्ता का वितरण सुनिश्चित किया गया है ताकि सभी सामाजिक समूहों को सत्ता में हिस्सेदारी का अवसर मिले।
इस मुद्दे पर बोलते हुए श्री मुरारी झा ने कहा
" यह बहुत ही दिलचस्प विषय है और विषय की जानकारी नहीं होने की वजह से कई बार आम जिंदगी में हम कई तरह के गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं। उन्होंने आरक्षण का उदाहरण देते हुए बताया कि अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि किसी व्यक्ति का नंबर कम आ गया है और उसका चयन कर लिया जाता है लेकिन अगर इसे सत्ता की साझेदारी, सत्ता में हिस्सेदारी, और प्रतिनिधित्व के लेंस से देखें तो फिर पूरा नजरिया ही बदल जाता है"
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर फ्रांस के समाजशास्त्री माइकल फूको का बहुत काम है। फूको कहते हैं कि सत्ता एक ऐसी संकल्पना है जो हर जगह व्याप्त है। रोड पर चलते किसी व्यक्ति के पास भी सत्ता है। रास्ते पर मौजूद किसी व्यक्ति के वजह से अगर आप रास्ते पर कोई ऐसा व्यवहार नहीं कर पाते हैं जो आप करना चाहते हैं तो इसका मतलब है कि आपके व्यवहार को वह अनजान व्यक्ति नियंत्रित कर रहा है और इस तरह उसके हाथ में भी सत्ता है।
इस चर्चा में भाग लेते हुए श्री आलोक मिश्रा जी ने कहा
"अगर हम प्रैक्टिकल तरीके से भी सोचे तो लोग कहां रहना पसंद करेंगे। जाहिर सी बात है जहां शांति होगी। जहां सत्ता में शामिल होने का गुंजाइश होगा। जहाँ निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने का गुंजाइश होगा। जहां लोग सुरक्षित महसूस करेंगे। प्रैक्टिकल वजहों से भी सत्ता की साझेदारी किसी भी लोकतंत्र के लिए बेहद अहम है।"
चर्चा में भाग लेते हुए श्री बीपी पांडे जी ने कहा
"यह डेमोक्रेसी की एक बहुत ही खूबसूरत अवधारणा है और हमारी डेमोक्रेसी को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हम सबको इस तरीके के चर्चा का आयोजन करने की जरूरत है । कुछ ऐसे लोग होते हैं जो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं करते हैं ऐसे लोगों से हमें अपने लोकतंत्र को बचाना होगा।"
चर्चा में अन्य विषयों के विशेषज्ञों ने भी हिस्सेदारी ली।एससीईआरटी दिल्ली में सहायक प्रोफ़ेसर की भूमिका में काम कर रही श्रीमती कपिला पाराशर, गणित विषय की अध्यापिका डॉ माधवी अग्रवाल, अंग्रेजी विषय से श्रीमती मीनू गुप्ता एवं विज्ञान विषय से श्री चंदन झा और अन्य कई साथियों ने हिस्सा लिया।
चर्चा में शामिल सभी व्यक्तियों का धन्यवाद करते हुए सत्र की समाप्ति पर सत्र के संचालक श्री विकास रंजन ने अगले सत्र में सभी को आमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि अगले सत्र में बहुसंख्यकवाद वाद की अवधारणा पर चर्चा का आयोजन होगा। साथ ही उन्होंने सब से आग्रह किया की सत्ता को हम अपने दैनिक जीवन में देखें, दैनिक जीवन के संबंधों के ताने-बाने में देखें और कोशिश करें कि हम कैसे इसमें साझेदारी बढ़ा सकें।
इस संबंध में सभी विशेषज्ञों को नीचे दिए हुए यूट्यूब लिंक पर सुना जा सकता है।
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