ये नन्हें फूल ही एक दिन नया भारत बनाएँगे

ये नन्हें फूल ही एक दिन नया भारत बनाएँगे

Posted on: Sun, 04/24/2022 - 03:31 By: admin
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नया भारत बनाएँगे

 

शिक्षा और उससे जुड़े मुद्दों के आसपास कई किताबें लिखी गई हैं। कई डॉक्यूमेंट्री और मुख्यधारा की फिल्में बनायी गयी हैं। रंगमंच और प्रभात फेरियों के माध्यम से शिक्षा से जुड़े मुद्दों को उठाया गया है। लेकिन ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि किसी खूबसूरत गीत के ज़रिए शिक्षा के पैग़ाम को जन-जन तक पहुँचाने की कोशिश की गई हो।

 

पिछले सप्ताह दिल्ली शिक्षा विभाग के द्वारा अपने इरादों को बहुत ही खूबसूरत गीत के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।

 

"ये नन्हें फूल ही एक दिन नया भारत बनाएँगे इरादा कर लिया है हम इन्हें ऐसा पढ़ाएँगे।"

 

शुरुआत की यह पंक्ति स्पष्ट कर देती है कि पढ़ाने का मकसद क्या होगा? ज़ाहिर सी बात है सिलेबस पूरा करने के लिए नही बल्कि एक नए भारत के निर्माण के लिए पढ़ाना होगा। नया भारत कैसा होगा? आगे की पंक्तियों में बहुत खूबसूरती से इसे पिरोया गया है।

 

पढ़ेंगे हम कि हमको कोई भी बहका न पाए।

पढ़ेंगे हम कि हमको कोई भी लड़वा न पाए।

 

पढ़ेंगे हम कि धर्मों के सही पैगाम क्या है।

पढ़ेंगे हम खुदा क्या है, हमारे राम क्या है।

 

भारत ही नहीं दुनिया भर में नफ़रत की राजनीति अपनी जड़ें मज़बूत कर रही है। अमूमन नफ़रत की राजनीति धर्म, भाषा, क्षेत्र इत्यादि से जुड़ी पहचान की गलत व्याख्या का नतीजा होता है। नफ़रत और हिंसा के इस दौर में अगर हमारे बच्चे बहकावे में आने से बच जाएँ, धर्मों के सही पैगाम को आत्मसात कर पाएँ तो इससे बेहतर क्या हो सकता है? और जैसा अगली पंक्ति में लिखा है...

 

"ये नन्हें दीप ही इंसानियत की लौ जलाएँगे।"

 

 

अमूमन हम जिस समाज और परिवार में पलते-बढ़ते हैं, वहाँ की प्रचलित मान्यताएँ, परम्पराएँ, पूर्वाग्रह, इत्यादि हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा हो जाता है। शिक्षा का एक महत्वपूर्ण मकसद यह है कि वह हमें अपनी धारणाओं और मान्यताओं को पहचानने, उसका मूल्यांकन करने और ज़रूरत पड़ने पर उसे बदलने के लिए तैयार करे। ये पंक्तियाँ…

"पढ़ेंगे हम तो जानेंगे गलत क्या हो रहा है

हमारे बीच आखिर कौन नफ़रत हो रहा है" शिक्षा के इसी महत्वपूर्ण पहलू की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है।

 

मानव सभ्यता के विकास के लिये शांति एक आवश्यक शर्त है। 'कलम' उसी अनिवार्यता की तरफ़ इशारा कर रहा है। हम जितना ज्यादा आपसी समझ को बढ़ाने पर ज़ोर देंगे, हिंसा और हथियार, निरर्थक होते चले जाएँगे। और वह अंतिम मकसद हम हासिल कर पाएँगे... "हमें रहना यहाँ अब अमन से हैं प्यार से है"। भारत में सदियों से विभिन्न पहचान के लोग एक साथ रहते आये हैं। भारत दुनिया में इस विशेषता के लिए जाना जाता है। और आगे भी "ज़माने को हम प्यार से जीना सिखाएँगे"

 

आगे की पंक्तियों में शिक्षा के व्यावहारिक पक्षों को ध्यान में रखकर कुछ महत्वपूर्ण सवाल पूछे गए हैं।

 

जो इंसा में ना इंसा देख पाए, वो पढ़ा ही क्या?

जो इज्जत औरतों को दे ना पाए वो पढ़ा ही क्या?

पढ़ा ही क्या अगर डर और वहशत रह गई मन में

हम अपने आचरण से ही सवेरा लेकर आएँगे

 

एक शिक्षित व्यक्ति से कम से कम इतनी अपेक्षा तो की जा सकती है। व्यवहार में आदर्श को जीने की एक लंबी परंपरा रही है। शायद गांधी इसके सबसे बड़े उदहारण हैं। पहले दो पंक्तियों को अगर वास्तव में हम अपने जीवन में उतार पाएँ तो विश्व से हिंसा को हम बहुत हद तक कम कर पाएँगे। और तीसरी पंक्ति "पढ़ा ही क्या अगर डर और वहशत रह गई मन में" इंसान होने के नाते जीवन जीने की आवश्यक शर्तों की तरफ़ इशारा करता है । एक स्वतंत्र और गरिमामय जीवन इसके बिना संभव नहीं है। इस संदर्भ में स्कूली व्यवस्था के अंदर व्यापक परिवर्तन लाने की ज़रूरत है। कई स्कूलों में अनुशासन के नाम पर बच्चों के मन में डर और वहशत बिठाना  शिक्षा के आदर्श के रूप में मान लिया गया है।

 

"सवेरा क्या है, ये सूरज भी अपना खुद उगाएँगे।" बच्चों के अंदर छुपी असीम संभावनाओं को व्यक्त करने वाली यह सबसे खूबसूरत पंक्ति है।

 

आगे की पंक्तियाँ बच्चों के भविष्य की एक सुंदर कल्पना है।

जिसमें आत्मविश्वास, अपने देश के आदर्शों के लिए गौरवान्वित होना और सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक नज़रिये का जिक्र करता है।

 

"पढ़ेंगे वह जो सिखलाए खुदी पर मान करना

सिखाए देश के आदर्श पर अभिमान करना

हमीं विज्ञान से जग को नया विज्ञान देंगे

जहाँ वाले तरक्की में हमारा नाम लेंगे।"

 

पढ़ाने के अपने इरादे को अगर हम नया रूप देते हैं तो निश्चित ही हमारे बच्चे "अपने कल को आज से बेहतर बनाएँगे।"। बहुत ही उचित समय पर शानदार गीत के माध्यम से शिक्षा देने के इरादे को स्पष्ट किया गया है। शिक्षा से जुड़े कुछ और गीत भी मुझे प्रभावित करते रहे हैं।उदाहरण के लिए जामिया का तराना -"दयारे शौक़ मेरा, शहरे आरजू मेरा" मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है। मुहम्मद इक़बाल की ये पंक्तियाँ भी मुझे रोमांचित करती रही हैं। "इल्म की शम्मा से हो मुझको मुहब्बत या रब हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना

दर्दमंदों से ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना"

 

बहरहाल आप दिल्ली शिक्षा गीत को सुनने का लुत्फ़ उठाइये!

 https://youtu.be/a_rq8WbuIGI