किसी कक्षा में एक शिक्षक क्या करे और क्या न करे इस विषय पर काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। कई बार तो इन मुद्दों पर सीख देने वालों में वे लोग भी शामिल होते हैं जिनका इस क्षेत्र से कोई लेना-देना ही नहीं होता या फिर बहुत कम जानकारी होती है। स्कूलों में होने वाले निरीक्षणों का तो जैसे यह अनिवार्य और प्रिय मुद्दा हो। कोई शिक्षक थोड़ी भी अनचाही स्थिति में मिला नहीं कि शिक्षा अधिकारी उस पर पूरे रौब से टूट पड़ते हैं। उसे दी जाने वाली सीख अक्सर इस बात पर होती है कि वे जो कर रहे थे वह गलत है, पर सही तरीका क्या है और कैसे किया जा सकता है इस मसले पर ज्यादातर कुछ नहीं कहा जाता। मेरी समझ से यह विषय इतना सरल भी नहीं है न ही इसे इतने हल्के में लिया जाना चाहिये। बल्कि शिक्षाविदों, शिक्षकों व बच्चों के दायरे में आने वाले इस महत्वपूर्ण विषय पर इससे प्रभावित होने वाले लोगों द्वारा गहन विचार विमर्श करके सहमति बनाई जानी चाहिए। इसे सरल मैं इसलिए नहीं मान रहा क्योंकि इसमें बाल मनोविज्ञान से लेकर शैक्षिक सिद्धांतों, दर्शन व व्यवहारिक ज्ञान का समावेश भी होता है। एक शिक्षक के रूप में अपने वर्षों के अनुभव से मैं इस संबंध में जो कुछ समझ बना पाया हूँ उसके अनुसार एक शिक्षक कक्षा में जो कार्य व्यवहार करता है उसे तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है। पहला है कक्षा कक्ष प्रबंधन, दूसरा नियोजन के अनुरूप पाठ कार्यान्वयन और तीसरा आकलन व्यवहार। इन तीनों कार्यों में परस्पर निर्भरता है और कई बार तो इन्हें अलग करके देखा भी नहीं जा सकता। अब प्रश्न उठता है कि इन कामों को शिक्षक द्वारा किस तरह किया जाए जो अधिगम प्रक्रिया को बेहतर बनाए? मेरी समझ से इन कार्यों की सफलता के लिए शिक्षक को कुछ अन्य बातों की जानकारी होना भी जरूरी है। जैसे शिक्षणशास्त्रीय अथवा पेडागाजिकल कौशल, नवीन शैक्षिक सिद्धांतों व समझ की जानकारी, लोकतांत्रिक शिक्षण-अधिगम के तौर-तरीके आदि।
कक्षा शिक्षण से जुड़े इन विभिन्न आयामों पर अब कुछ विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं। यद्यपि इन सब बिंदुओं पर परस्पर मत भिन्नता हो सकती है क्योंकि यह स्कूली जीवन से संबंधित बहुत ही गतिशील और विविध समझ से जुड़ा मामला है।
कक्षा कक्ष प्रबन्धन या क्लास रूम मैनेजमेंट में बहुत सी बातें शामिल की जाती हैं। इसमें कक्षा में बच्चों के बैठने का तरीका जो आपसी अंतःक्रिया को बढ़ावा दे, शिक्षक की हर बच्चे तक पहुँच, संसाधनों के भरपूर प्रयोग की परिस्थितियां, समूह में कार्य कर पाने व स्वयं को अभिव्यक्त कर पाने के अवसरों आदि को शामिल किया जाता है। वैसे तो अमूमन हमारे स्कूलों में कक्षा का सिटिंग अरेंजमेंट पूर्व निर्धारित होता है और इस मामले में शिक्षक के हाथ में ज्यादा कुछ होता नहीं, फिर भी उपलब्ध परिस्थितियों में शिक्षक द्वारा इस दिशा में किए जाने वाले प्रयास बहुत मायने रखते हैं। हर बच्चे तक पहुँच बनाना और इसके लिए कक्षा में पीछे तक आना जाना बहुत जरूरी है। इससे बच्चों के साथ जुड़ाव बढ़ने के साथ साथ उनकी अधिगम प्रक्रिया में भागीदारी के स्तर और विशिष्ट जरूरत को समझने में आसानी होती है। विद्यार्थी भी सजग रहते हैं। एक शिक्षक को अपनी कक्षा में किए जाने योग्य अपेक्षित व्यवहारों से संबंधित न केवल नियम बनाने चाहिए बल्कि सत्र के प्रारंभ में ही उसे कुछ दिन प्राथमिकता के साथ दुहराते हुए बच्चों के मानस और व्यवहार में स्थापित किया जाना चाहिये। इससे आने वाले दिनों में अक्सर कक्षा में हो जाने वाली अव्यवस्था से निपटने के साथ साथ उचित माहौल का निर्माण करने में भी मदद मिलती है। बस ऐसा करते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप परस्पर आदर भाव और समान भागीदारी की बात को ध्यान रखा जाना चाहिए।
नियोजन के अनुरूप पाठ के क्रियान्वयन के अगले चरण की सफलता बहुत हद तक पाठ योजना की सटीकता पर निर्भर है। इसमें विषयवस्तु स्पष्टता, रुचिकर गतिविधियों का समावेश, पूर्व अनुभवों से जुड़ाव, छात्रों को स्वयं करके सीखने के अवसर जैसे पक्ष होने चाहिए। कक्षा में विद्यार्थियों के अधिगम स्तर के अनुरूप और उनके अनुभवों को समाहित करते हुए पाठ्यवस्तु का सजीव चित्रण अथवा प्रदर्शन किया जाना बहुत जरूरी है। ऐसा करते हुए बच्चों को अपने अपने अनुसार रिफ्लेकशन या विचार करने का अवसर भी मिलना चाहिए जिससे वे चल रही प्रक्रिया से जुड़ सकें और शिक्षक भी उसमें जरूरी मदद कर सके। उन्हें समूह में और व्यक्तिगत रूप से भी आपसी अंतःक्रिया करने का अवसर भी देना बहुत जरूरी है। इससे वे सहभागी बनने, सामंजस्य बिठाने, सबको साथ लेकर चल पाने की क्षमता का विकास करते हुए स्वयं को निखार सकते हैं।
कक्षाई प्रक्रिया में ही आकलन का पक्ष भी पिरोया हुआ होना चाहिए जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। आकलन सिर्फ इसका नहीं कि बच्चे क्या जान या सीख पाए बल्कि इसलिए भी कि वे सीखने की ओर प्रेरित हो सकें। इसके लिए बच्चों को स्वयं की अभिव्यक्ति के वृहत, समान और सम्मान पूर्ण अवसर दिए जाने चाहिए। बाल केन्द्रित शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया में छात्रों को शामिल करने के नजरिये से भी कक्षा में बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर देना बहुत जरूरी है। इससे शिक्षक को यह समझने में मदद मिलती है कि बच्चे चल रही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से कनेक्ट हो पा रहे हैं या नहीं। यदि हाँ तो अच्छा है और नहीं तो और प्रयास किये जाने या शिक्षण के तौर-तरीकों में बदलाव की आवश्यकता समझ में आएगी। बच्चे स्वयं को कई तरीकों से भागीदारी द्वारा अभिव्यक्त कर सकते हैं जैसे- पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देकर, प्रश्न पूछकर, चल रही बात से संबंधित अपने अनुभव सुनाकर, प्रासंगिक उदाहरण देकर, कन्टेन्ट से जुड़े अन्य आयामों को उभारकर आदि। कुल मिलाकर ए बातें कक्षा के माहौल को भी अभिव्यक्त करती हैं।
कक्षा में चलने वाली इन तीन मुख्य गतिविधियों की गुणवत्ता पूर्ण सफलता के लिए एक शिक्षक को कक्षा में शिक्षण से पहले भी बहुत सी तैयारी और प्रयास करने होते हैं। जैसे नित नये ज्ञान व कौशल को सीखते रहना, प्रशिक्षण कार्यशालाओं में सक्रिय भागीदार बनना, पाठ नियोजन करना और अपनी सीमाओं को समझते हुए स्वयं में अपेक्षित बदलाव लाने के प्रयास करना आदि। तभी शिक्षक के पेशे की तुलना अन्य कामों से नहीं की जा सकती। आखिर यह वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन का नहीं बल्कि जीवन निर्माण का क्षेत्र है।
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-आलोक कुमार मिश्रा
(दिल्ली के सरकारी स्कूल में शिक्षक)
मोबाइल नंबर- 9818455879
ट्विटर- @AlokMishra1206
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