सहायक शिक्षिका से सहायक प्राध्यापक तक
By Neeta Batra
आज यह आर्टिकल मैंने SCERT, Delhi में बैठकर लिखा। जब लंच से पहले वाले सेशन में Director SCERT, Joint Director SCERT, तथा Principals, DIET के द्वारा मुझे बार-बार असिस्टेंट प्रोफेसर के पद नाम से बुलाया, तो मुझे एक खुशी तथा जोश की लहर का अनुभव हुआ! मन में विचार आया कि जिस तंत्र में मुझे सपोर्ट किया और यहां तक पहुंचने में मदद की है उसका मन से धन्यवाद करना चाहिए। वह सपना जिसे मैंने बचपन से देखा था कि मुझे प्रोफ़ेसर बनना है आज पूरा हुआ ।
जिस सपने को पूरा करने में मेरी घर की परिस्थितियां आड़े आ रही थी वह सपना आज दिल्ली के शिक्षा तंत्र ने पूरा कर दिया । 12वीं कक्षा के बाद मैं कॉलेज में हायर एजुकेशन लेना चाहती थी ताकि एकेडमिक यात्रा को आगे बढ़ा सकूं । परंतु जैसे ही कक्षा 12 के बाद माता-पिता के द्वारा डाइट में दाखिला करवा दिया गया तो ऐसा लगा कि जैसे अब अपने सपने को कभी भी पूरा नहीं कर सकूंगी । फिर कुछ रिश्तेदारों तथा सहपाठियों ने दिलासा दिलाया कि कि कोई नहीं प्राइमरी अध्यापक बन जाओगे हो तो क्या हुआ? नौकरी के साथ-साथ अपना career progression करते रहना। MCD के एक स्कूल में असिस्टेंट टीचर के तौर पर ज्वाइन करने के बाद मुझे धीरे-धीरे बच्चों के साथ मजा तो आने लगा पर अपने करियर को भी आगे बढ़ाने की इच्छा होती थी , फिर साथ-साथ कभी-कभी अपने एक जैसे पढ़ाने के तरीकों को लेकर भी बोरियत से महसूस होती थी! इसी कारण कुछ नए नए तरीके ट्राई करती रहती थी। कभी-कभी समस्याओं का हल ढूंढने के लिए कुछ एक्शन रिसर्च का भी सहारा लिया ।
इसी learning spirit में कि मैं अपने शिक्षण को और बेहतर कैसे बना सकती हूं, मैं अपनी एकेडमिक यात्रा को आगे बढ़ाते चली गई। लगभग 12 वर्ष प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाने के बाद मन किया कि यह जानूं की प्राइमरी कक्षाओं तक जो संप्रत्यय बच्चों के बनते हैं, माध्यमिक कक्षाओं में जाने के बाद और मजबूत होते हैं या फिर कमजोर पड़ जाते हैं? साथ ही साथ बच्चों को प्राइमरी से सेकेंडरी कक्षा में आगे बढ़ने पर किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है? विभिन्न सर्वे जो कि सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा किए जाते हैं एक ही ओर इशारा करते हैं कि बच्चे की कक्षा कक्ष में तो परिवर्तन आता है परंतु कक्षा में नहीं! फिर DOE में TGT(गणित) के पद पर ज्वाइन किया ताकि बच्चों की समझ को और गहरे तरीके से समझ सकूँ। यहां पर आते ही महसूस हुआ कि बच्चों के साथ कुछ नाइंसाफी हो रही है क्योंकि प्राइमरी कक्षाओं तक जो पढ़ने पढ़ाने की प्रवृत्तियों का प्रयोग किया जा रहा था, सेकेंडरी कक्षाओं में आते ही सब कुछ कैसे बदल जाता है। ऐसे में जब अध्यापकों को बच्चों के समझने के तरीके की समझ ही नहीं बनती तो NCF(2005) में गणित पढ़ाने के दिए गए उद्देश्य गणितीय करण को कैसे प्राप्त किया जा सकता है? इन सब मुद्दों परऔर गहरी समझ बनाने के लिए शोध पत्र पढ़ने तथा अपने द्वारा कक्षा कक्ष में किए जाने वाले प्रयोगों को नेशनल कांफ्रेंस में प्रस्तुत करना शुरू किया! विभिन्न नेशनल कांफ्रेंस में भाग लेने तथा गणितीय मुद्दों पर पढ़ने के बाद गणितीय करण जैसे मुद्दों पर चर्चा करने तथा इससे जुड़ी परेशानियों पर अपने साथी अध्यापकों से और बात करने का मन करने लगा !
इसी सीखने सिखाने की प्रक्रिया को और सशक्त करने के लिए दिल्ली सरकार की पहल मेंटरशिप प्रोग्राम को ज्वाइन किया। इस प्रोग्राम ने तो मेरी professional यात्रा की दिशा और दशा दोनों ही बदल दी। विभिन्न सब्जेक्ट एक्सपर्ट से मिलने का मौका मिला । राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर विजिट के द्वारा देश तथा विदेश में होने वाले नवाचार देखने को मिले । यहां पर आने के बाद पता चला कि यदि एक शिक्षक को पूरी autonomy तथा exposure दिया जाए, तो वह अपने टीचिंग करियर में कमाल कर सकता है। लगातार एक ही तरह की प्रविधियों से पढ़ाने पर ना तो शिक्षक संतुष्ट रहता है ना ही उसके विद्यार्थी। यहां कृष्ण कुमार जी की एक पंक्ति याद आती है, "एक शिक्षक यदि 20 वर्ष से विद्यालय में पढ़ा रहा है तो इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि उसे 20 वर्ष का अनुभव है। यह अनुभव 1 वर्ष का भी वर्ष हो सकता है यदि वह हर वह केवल एक ही तरह की प्रविधियों का प्रयोग कर रहा है।" यह बात हमें साफ तौर पर इस तरफ सोचने पर मजबूर करती है कि पढ़ाने से ज्यादा रिफ्लेक्ट तथा इंप्रोवाइज करना महत्वपूर्ण है! मेंटरशिप प्रोग्राम में आने के बाद तो जैसे माइंडसेट में एकदम परिवर्तन हो गया! यहां पर एक बात और भी समझ में आई कि बच्चे क्यों नहीं समझते? इसमें बतौर शिक्षक अपनी जिम्मेवारी ज्यादा लगी। फिर अपने mentee स्कूल के अध्यापकों के पढ़ने पढ़ाने के तरीकों को देखना और उनके साथ अपनी समझ को साझा करना एक मजेदार अनुभव में बदलने लगा!इसी परिवर्तन के चलते अब मैंने गणित शिक्षण से जुड़े मुद्दों की समझ को और गहराने के लिए पीएचडी प्रोग्राम में दाखिला लिया। मेंटरशिप प्रोग्राम में कंटेंट लिखना, एसेसमेंट टूल बनाना तथा विभिन्न नवाचारों को अप्लाई करने का मौका मिला तो पता चला कि कैसे टेक्स्ट बुक या और किसी भी तरह की सामग्री तो सिर्फ सहायक सामग्री होती है।
शिक्षण प्रक्रिया टेक्सबुक प्रधान ना होकर सीखने वाले को प्रधान मानकर की जाए तो कितने बेहतरीन परिणाम आ सकते हैं।यह सब तभी संभव है जब शिक्षक कक्षा कक्ष की चारदीवारी से बाहर निकलेगा तथा तंत्र उसको सशक्त करेगा। सशक्तिकरण की जरूरत तो NEP(2020) भी जता रही है परंतु किसी रोड मैप के बिना। टीचर एजुकेशन से संबंधित NEP (2020) बहुत ही खूबसूरती से वर्टिकल मोबिलिटी तथा होरिजेंटल मोबिलिटी की बात करती है! इसको इंप्लीमेंट करने में दिल्ली ने एक बहुत ही खूबसूरत कदम उठाया! टीचर एजुकेशन चाहे वह इन सर्विस ट्रेनिंग हो या प्री सर्विस, एससीईआरटी की भूमिका अहम रहती है। सरकार ने इस जरूरत को समझते हुए एक क्रांतिकारी बदलाव किया और एससीईआरटी का ढांचा ट्रांसफार्म किया। यहां पर टीचर्स के अनुभव को सम्मान देते हुए वर्टिकल मोबिलिटी को सुनिश्चित किया गया। इसी के तहत 25% सीट शिक्षकों के लिए आरक्षित कर दी गई। यह एक शिक्षक के लिए बड़े सम्मान की बात है कि वह अपना अनुभव एक बड़े समुदाय के साथ डिस्कस कर पाएगा। यह मुझे एक बहुत ही ऐतिहासिक कदम लगा तथा साहसिक भी। इसी के चलते मुझे लगता है कि यह कदम दिल्ली की शिक्षा क्रांति में एक मील का पत्थर साबित होगा जिसमें मेरे जैसे कई शिक्षकों की भूमिका रहेगी ।
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