हम दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का एक समूह हाल ही में (मार्च 2020 के शुरुआती हिस्से में) केरल की सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को समझने के लिए औपचारिक शैक्षिक भ्रमण पर गया था। इस विजिट में हमने वहाँ के सार्वजनिक शिक्षा की मजबूत और दीर्घ विरासत को समझने का प्रयास किया। इसके लिए वहाँ की एससीईआरटी, डायट संस्थान, निगम कार्यालय, पंचायत भवन और कुछ स्कूलों का दौरा किया। केरल अपनी खूबसूरत प्राकृतिक छटा के साथ-साथ शैक्षिक और सामाजिक संपदा से मन को मोह गया।
इस दौरे में जिन अलग-अलग जगहों पर हम गये उनमें जो बातें एक जैसी थीं, वे थीं- सिद्धांतों और व्यवहार में साम्यता, गर्मजोशी भरा स्वागत, विनम्रता और हायरारिकी या पदानुक्रम का मानवीयकरण। इसे हमने ऐसे महसूस किया कि जो कुछ एससीईआरटी और डायट की प्रस्तुति में हमें बताया गया वह स्कूलों, निगमों व पंचायतों की कार्यप्रणाली में प्रतिबिंबित होता हुआ दिखाई दिया। हमें जितने भी शिक्षा अधिकारी, प्रधानाचार्य, शिक्षक मिले सब बहुत गर्मजोशी और आवभगत की मुद्रा में मिले। उनके व्यवहार में रूखे पदानुक्रम की झलक नहीं थी। वे घुल-मिल कर जहाँ अपने शिक्षा माॅडल को हमसे साझा कर रहे थे वहीं दिल्ली में हो रहे नवोन्मेषी कार्यक्रमों की जानकारी भी ले रहे थे। हैरानी की बात थी कि वे हमारी शैक्षिक प्रक्रियाओं और उपलब्धियों से बहुत हद तक परिचित भी थे।
पहले दिन एससीईआरटी में पूरे समय हमने एक-दूसरे को अपने-अपने राज्य के शैक्षिक परिदृश्य से अवगत कराया। इस पूरे शेयरिंग में केरल राज्य के शिक्षा सेक्रेटरी, जनरल शिक्षा डायरेक्टर, एससीईआरटी डायरेक्टर जैसे कई उच्च पदाधिकारी न केवल मौजूद रहे बल्कि उनकी सक्रिय भागीदारी भी बनी रही। कुल मिलाकर यह समझ आ रहा था कि मजबूत सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था की विरासत वाले राज्य केरल और अपने बजट का एक चौथाई शिक्षा पर खर्च करने वाले और शिक्षा को पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा बना देने वाले दिल्ली को आपस में सीखने को बहुत कुछ है। हमने बहुत से ऐसे विचारों और नवोन्मेषी तरीकों के बारे में जाना जो अपने तरीके से हम दिल्ली में भी कर सकते हैं। हमें हैरानी थी कि दिल्ली की स्कूली शिक्षा में जो कुछ चल रहा है उससे वहाँ के शिक्षा सचिव, निदेशक व अन्य अधिकारी अवगत थे। वे अखबार में छपे इससे संबंधित लेखों को अपने साथ लिए हुए थे। एक विनम्र और जनोन्मुखी नौकरशाही से रूबरू होना हम उत्तर भारतीयों के लिए अनोखा अनुभव था।
एससीईआरटी में औपचारिक परिचय व उद्बोधन के बाद हमारे समूह के साथियों ने बारी-बारी से दिल्ली के स्कूली शिक्षा में चल रहे नवोन्मेषों व सुधारों के बारे में बताया। वहाँ की फैक्लटी और अधिकारी हमारे चुनौती कार्यक्रम, हैप्पीनेस करीकुलम, टीचर ट्रेनिंग, ईएमसी, कांस्टीट्यूशन ऐट सेवेंटी कार्यक्रम आदि में बहुत रुचि ले रहे थे। इसके बाद स्वयं डायरेक्टर जनरल एजूकेशन सी वी बाबू ने केरल स्कूल एजूकेशन के बारे में बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति दी जिसमें पीपीटी की मदद ली गई।
उन्होंने बताया कि केरल में लाइब्रेरी मोमेंट ने सेकुलर और साइंटिफिक टेम्पर का सामूहिक विकास किया है। यहाँ पुस्तकालयों की प्रचुर उपलब्धता और उनमें किताबों की स्थिति बेहतरीन है। यह सब यहाँ के समाज में चले सामाजिक आन्दोलनों व जागरूकता का परिणाम है। उनके अनुसार केरल में शिक्षकों के 45 से ज्यादा रजिस्टर्ड संगठन हैं जो देश में सबसे ज्यादा हैं। यह वहाँ की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता और विरासत को दर्शाता है। ऐसे समय जब कार्यक्षेत्र में संगठन बनाने और सामूहिक प्रतिनिधित्व व मांग को हतोत्साहित किया जा रहा हो, यह हैरान करने वाली बात है।
दिल्ली में चल रहे मेंटर टीचर प्रोग्राम की तरह ही एक अलग रूप में मेंटरिंग कार्यक्रम यहाँ डिजाइन किया गया है। इसमें शिक्षक बच्चों को अधिगम स्तर के अनुसार पहचान करके ए, बी, सी, डी में वर्गीकृत करेंगे और सभी को ए श्रेणी तक लाने का प्रयास करेंगे। इसके लिए बच्चों की प्रोफाइल बनाने और प्रगति दर्ज करने का काम ऑनलाइन पोर्टल पर किया जाएगा। इसे यहाँ ‘साहिदम’ नाम से अगले सत्र से लागू किया जाना है। यह एक तरह से दिल्ली में चलाए गये चुनौती कार्यक्रम से प्रभावित है।
यहाँ की एससीईआरटी संभवतः पूरे देश की सभी एससीईआरटी में सर्वाधिक संसाधन संपन्न और विजन से लबरेज़ है। यहाँ की लाइब्रेरी में 64 एजूकेशन जरनल मंगाए जाते हैं और केरल एजूकेशन जर्नल के नाम से शोध पत्रिका भी निकाली जाती है। पूरे स्कूली शिक्षा में दखल रखने वाली यह सबसे महत्वपूर्ण संस्था है। अपने प्रस्तुति में जनरल एजूकेशन डायरेक्टर ने शिक्षा द्वारा साइंटिफिक टेम्पर और सामूहिक सेकुलर चेतना पैदा करने के लक्ष्य को रेखांकित किया। इसे हमने स्कूलों की विजिट में ही नहीं समाज में भी व्यवहारिक तौर पर महसूस किया। शिक्षा की इस बदलावकारी और मूल्य उत्पादक भूमिका को कई शैक्षिक दस्तावेजों में अपेक्षित माना गया है।
इसके अलावा हमें कई अन्य महत्वपूर्ण स्कूली प्रक्रियाओं व सुधारों से हमें अवगत कराया गया। प्रत्येक वर्ष यहाँ के स्कूलों में आयोजित होने वाला साँस्कृतिक और खेल आधारित यूथ फेस्टिवल देश ही नहीं एशिया में सबसे बड़ा स्कूली इवेंट है जो सोलह सालों से निरंतर चल रहा है। यहाँ बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ माँओं की जागरूकता व शिक्षा पर भी बहुत जोर है जो ‘अम्मा व्याना’ जैसे कार्यक्रमों से पता चलता है। यह एक तरह से पीटीएम का ही एक रूप है जिसमें कभी-कभी माँएं बच्चों के साथ स्कूल आती हैं और साथ ही पढ़ती और सीखती हैं, इन्हें क्मप्यूटर शिक्षा भी दी जाती है। हालाँकि इसे इस अर्थ में संकुचित जरूर कहा जा सकता है कि ऐसे ओरियंटेशन की जरूरत पिताओं को भी बराबर होती है। आखिर बच्चे का पालन-पोषण माँ-बाप दोनों की जिम्मेदारी है। यहाँ टीचर ट्रांसफारमेशन प्रोग्राम में छः माह के कोर्स से कोई भी शिक्षक स्वयं फेसिलिटेटर बनने की योग्यता अर्जित कर सकता है।
यहाँ की एससीईआरटी राज्य के स्कूलों के लिए किताबें विकसित करती है जो एनसीएफ, 2005 को आधार बनाकर स्कूली शिक्षकों व विषय विशेषज्ञों की मदद से होता है। ऐसी लगभग 300 किताबें प्रचलन में हैं।
संविधान के 70 साल पूरे होने पर दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ‘कांस्टीट्यूशन ऐट सेवेन्टी प्रोग्राम’ के बारे में जानकर यहाँ के शिक्षा अधिकारी व शिक्षक बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बताया कि लगभग कुछ ऐसा ही केरल के स्कूलों में ‘नैतिकम’ नाम से एक कार्यक्रम चलाया जाता है। इसमें प्रत्येक स्कूल को संविधान की प्रस्तावना के मूल्यों को ध्यान में रखकर अपना संविधान बनाना होता है। इसमें वे अपने अधिकारों, कर्तव्यों व आचार-व्यवहार को विमर्श करके सुनिश्चित करते हैं। इसे जिला व राज्य स्तर पर भी डिस्कस किया जाता है और बेहतरीन स्कूल को ईनाम भी दिया जाता है। एक स्कूल का ऐसा ही ड्राफ्ट हमारे साथ शेयर किया गया। जिसमें मलयालम भाषा में बच्चों ने स्वच्छ पानी, बेहतरीन मिड डे मील को अपने अधिकार के रूप में व्यक्त किया था। इसी तरह एक पोस्टर में बच्चों ने चित्र द्वारा थर्ड जेंडर के लिए शौचालय न होने पर सवाल उठाया था। यह सब हम सभी को आश्चर्य में डालने और आनंदित करने के लिए काफी था।
केरल की शिक्षा व्यवस्था में भाषा की अस्मिता बहुत मजबूत है। उत्तर भारत में हिन्दी को लेकर जैसा रवैया दिखता है वैसा वहाँ मलयालम को लेकर बिल्कुल नहीं है। मलयालम शिक्षा का मजबूत माध्यम दिखता है साथ ही अंग्रेजी पर भी बहुत जोर है। हालांकि वहाँ हाल के वर्षों में अंग्रेजी को लेकर आकर्षण बढ़ने की बात को स्वीकार किया गया। किंतु इससे वहाँ का सिस्टम असहज न होकर हेलो इंग्लिश जैसा कार्यक्रम चला रहा है जिससे अभिभावकों व बच्चों को सरकारी स्कूल व्यवस्था से जोड़कर रखा जा सके। वैसे वहाँ सुरीली हिंदी जैसा कार्यक्रम भी चलता है। एक स्कूल में तो हमने ‘हिंदी कोने में’ नाम से एक अलग कमरा भी देखा जो हिंदी शिक्षण सामग्री से भरा हुआ था। काश उत्तर भारत के स्कूल भी दक्षिण की भाषाओं के प्रति यही रवैया दिखाकर त्रिभाषा सूत्र को सही अर्थों में चरितार्थ करते।
शिक्षा और समाज को आपस में जोड़े रखने के प्रयास के रूप में वहाँ जनवरी और मार्च महीने में ‘फेस्टिवल ऑफ लर्निंग’ मनाया जाता है। इसमें स्कूली बच्चे अपनी भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि के कौशलों व समझ को सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करते हैं।
कई अन्य छोटे-छोटे प्रयोगों और सुधारों में केरल दिशा दिखाता है। वहाँ प्रत्येक स्कूल में बायो डायवर्सिटी पार्क, परिसर में बड़ा ग्लोब, प्रत्येक कक्षा में पुस्तकालय, काइट नाम से ऑनलाइन शैक्षिक पोर्टल से साझा नेटवर्क सब मिलकर शिक्षा को उत्सव में बदल देते हैं। ऐसे अशक्त बच्चे जो विद्यालय नहीं आ पाते, माह में एक दिन उसकी कक्षा के बच्चे उसके घर जाकर पूरे दिन वहाँ रहते हैं। यह संवेदनशीलता सराहनीय लगी। शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य न केवल नंबर वन है बल्कि इसे मेनटेन करने के लिए वह कड़ी मेहनत करते हुए भी दिखता है जो मात्रात्मक ही नहीं गुणात्मक भी है।
सुविधा के लिए हमने स्कूल भ्रमण से पहले अपने समूह को 8-10 लोगों के तीन उप समूह में विभाजित करके अलग-अलग स्कूलों का दौरा किया। हमारे उप समूह ने दो प्रायमरी और एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का भ्रमण किया। सिद्धांत रूप में बताई गईं लगभग सभी बातें हमें फलीभूत होती दिखाई दीं। स्कूल पूरी तरह से बच्चों को घर जैसा संवेदनशील, सुरक्षित और आनंदपूर्ण माहौल देते हुए दिखे। शैक्षिक स्टाॅफ से लेकर बच्चों तक सभी के चेहरे पर फैली गहरी मुस्कान हमें इस बारे में आश्वस्त कर रही थी। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्रत्येक कक्षा में पुस्तकालय के रूप में पुस्तक कोना था। साथ ही प्रत्येक कक्षा डिजिटल कक्षा थी जिसमें प्रोजेक्टर, ऑनलाइन ई सामग्री की उपलब्धता थी। यहाँ की हेड ऑफ स्कूल और उपप्राचार्या सुधा जी काफी मिलनसार व हंसमुख स्वभाव की थीं। वे यहाँ पिछले 17 सालों तक शिक्षिका के रूप में कार्य करने के बाद स्कूल हेड बनी हैं। संभवतः इसी कारण वह प्रत्येक छात्र-छात्रा व शिक्षक को बखूबी जानते समझते हुए कार्य कर पा रही हैं। वहाँ के टीचिंग स्टाॅफ में एक मात्र हिंदी जानने वाले शिक्षक शिबा जो हमें फेसिलिटेट कर रहे थे, की बहुत अनोख कहानी थी जो प्रेरित करती है। वे इसी स्कूल से पढ़े हुए थे और पहले यहीं पियोन के रूप में कार्यरत थे। इसी दौरान दूरस्थ शिक्षा लेते हुए उन्होंने शिक्षक बनने की योग्यता अर्जित की और अब यहीं शिक्षक हैं। उनकी सफलता वहाँ आसपास के क्षेत्र में चर्चा का विषय है। उस दिन स्कूल में परीक्षा चल रही थी, इसलिए कक्षाओं में हम ज्यादा बातचीत नहीं कर पाए। हां एक क्लास ऐसी थी जहाँ परीक्षा नहीं थी पर बच्चे आए थे। बताया गया कि इन बच्चों के माता-पिता काम पर गये हैं तो इन्हें परीक्षा न होने पर भी स्कूल में आने और यहाँ रुकने-पढ़ने की छूट दी गई है। हमारे लिए तो यह अवसर था बच्चों से बातचीत का। हालांकि भाषा अवरोध के कारण सिर्फ फोटो खींचने-खिंचाने का काम ज्यादा हो पाया।
हमारा दूसरा पड़ाव गवर्नमेंट लोअर प्राइमरी स्कूल, पक्का विलेज, वेलनाड में था। इस स्कूल की आवभगत, ऊर्जा, सादगी, शिक्षकों की सरलता व मेहनत, समावेशी स्वरूप ने हमें आह्लादित कर दिया। यहाँ के कार्यालय में सूचना पट्ट पर यहाँ के विद्यार्थियों के संबंध में सूचना थी। जिसमें उनकी सामाजिक-धार्मिक पृष्ठभूमि का वर्णन था। लगभग 500 विद्यार्थियों वाला यह स्कूल विविधता और उसके समावेशन को बेहतरीन ढंग से प्रतिबिम्बितकर रहा था। धार्मिक दृष्टि से यहाँ लगभग 40-40% हिंदू और इसाई साथ ही 20% मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं। कुल बच्चों में 50 बच्चे अनुसूचित जाति और 5 बच्चे अनुसूचित जनजाति पृष्ठभूमि के हैं। ओबीसी समुदायों से संबंधित कुल 245 बच्चे यहाँ पढ़ते हैं यानि लगभग आधे। पूछने पर पता चला कि लगभग यही विविधता और समावेशिता स्टाॅफ के सदस्यों में भी है। कार्यक्षेत्र में विविधता के प्रतिनिधित्व से हमारा व्यक्तित्व व व्यवहार संतुलित और मानवीय रहता है। अपनी बातों में महिलाओं के खिलाफ़ अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग करने वाले या जातीय श्रेष्ठता का दंभ भरने वाले आसपास महिलाओं या अन्य जातीय पहचानों की उपस्थिति पर बहुत संवेदनशील तरीके से बोलते और व्यवहार करते हुए दिखते हैं, ऐसा मेरा ही अनुभव नहीं बल्कि शोध भी इसे बताते हैं। केरल की शिक्षा व्यवस्था विविधताओं के प्रतिनिधित्व में बेमिसाल है। इस क्षेत्र में स्कूल से लेकर उच्चतर शिक्षा तक में लगभग 70% महिलाओं की उपस्थिति है।
यहाँ के हेड मास्टर मिस्टर नागेश कुमार बहुत सहृदयी व्यक्ति लगे। उन्होंने अपने साथ विद्यालय की लगभग हर कक्षा और संसाधन केंद्र का अवलोकन कराया। इस दौरान जो सबसे अच्छी बात लगी वह थी बच्चों का आजाद वातावरण में हमारे आसपास आकर हमें अभिवादन करना, हमसे सवाल पूछना, ज्यादा अंग्रेजी न आने के कारण हाव-भाव की मदद से संप्रेषण का प्रयास करना और मुस्कुराना। वो जब ऐसा कर रहे थे तब कोई शिक्षक उन्हें टोकता नहीं था न ही पीछे भागता था। मिड डे मील के बाद 45 मिनट के आराम का पीरियड देखना हमारे लिए बहुत अनोखा अनुभव था। बच्चे चटाई और उन पर तौलिया नुमा बिछे कपड़ों पर आराम से लेटे हुए थे। हेड मास्टर साहब उन्हें नाम से बुला बुलाकर पुचकारते। कक्षा के शिक्षक उन्हें लेटने आराम करने को प्रोत्साहित करते। यानि मशीनी शिक्षण-अधिगम से अलग पूरा मानवीय परिदृश्य और हमारी कल्पना से परे की हकीकत। एक शिक्षिका जो हिंदी जानती थीं वो हमारे साथ-साथ उत्साह पूर्वक फेसिलिटेशन में लगी रहीं। एक शिक्षक से परिचय कराते हुए सकुचा कर उन्होंने बताया कि ये मेरे पति भी हैं। उनके साथ ने इस विजिट को और यादगार बनाया। घूमने के दौरान ही हेड मास्टर साहब ने बताया कि यहाँ कम्युनिटी ओनरशिप बहुत अच्छा है। स्कूल लाइब्रेरी के लिए बहुत सी किताबें समाज से लोग अनुदान देते हैं। एक बेहतरीन बात साझा करते हुए उन्होंने बताया कि शिक्षक अभिभावक एसोसिएशन ने स्कूल में पढ़ रहे एक मात्र आवास विहीन छात्र के परिवार को अपने फंड से घर बनाकर दिया। यह हमारे लिए दाँत तले अंगुली दबाने वाली बात थी। इससे वहाँ की पीटीए की सशक्तता का पता चलता है।
हमें वहाँ आवभगत में खाने को मिड डे मील दिया गया। खाने से पहले हमारे मन में गुणवत्ता को लेकर संशय था। किंतु खाना परोसने में अपनाया गया उत्कृष्ट तरीका, भोजन सामग्री की विविधता, उसका स्वाद और सबसे बढ़कर प्रेम व सम्मानजनक तरीके से खिलाने के तरीके ने दिल जीत लिया। इतना स्वादिष्ट और गुणवत्तापूर्ण भोजन तो मंहगे रैस्टोरेंट में भी मिलना मुश्किल है। उनका कहना था कि इसी तरह का भोजन यहाँ बच्चों को रोज परोसा जाता है। बल्कि ब्रेकफास्ट देना भी अब वहाँ शुरू हो चुका है।
इसके बाद छात्राओं के एक समूह ने म्यूजिक पर अरेबिक्स नृत्य करते हुए सम्मोहक प्रस्तुति दी और छात्रों ने वूपला रिंग के साथ बेहतरीन करतब दिखाए। प्रस्तुति इतनी बेहतरीन थी कि हमारे समूह के सदस्य भी बच्चों के साथ थिरकने और करतब दिखाने से खुद को रोक नहीं पाए। अंत में एक जगह बैठकर हम सबने एक दूसरे को औपचारिक रूप से सराहा और विदा लिया। एक बहुत अच्छे और रचनात्मक दिन का संतोषप्रद अंत हुआ। सभी उप समूहों का लगभग ऐसा ही बेहतरीन अनुभव रहा।
अगली सुबह हमारा समूह त्रिवेन्द्रम डाईट, ऐटिंगल म्युनिसिपालिटी ऑफिस और पंचायत भवन के भ्रमण पर निकला। सर्वप्रथम डाईट में हमारा स्वागत किया गया। हमसे दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल पूछते हुए उन्होंने अपनी जिज्ञासा शांत की। फिर अपनी प्रस्तुति में उन्होंने स्कूली शिक्षा में डाईट संस्थान की भूमिका और उनके द्वारा सेवाकालीन शिक्षकों के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी से हमें अवगत कराया। हमारे लिए यह जानकारी हैरान करने वाली थी कि यहाँ डाईट, स्कूलों आदि में शिक्षकों के सभी पद स्थाई हैं, कोई गेस्ट फैक्लटी नहीं है। यहाँ शिक्षकों का एक पूल तैयार रखा जाता है जो शिक्षकों की अनुपस्थिति में उनका कार्य देखता है। एक सशक्त सार्वजनिक शिक्षा माॅडल की मजबूती का कारण हमें समझ आ रहा था। यहाँ नाश्ता करने के बाद हम म्युनिसिपालिटी ऑफिस के लिए निकल गये। यहाँ भी गर्मजोशी से आवभगत करते हुए यहाँ के कर्मचारियों ने भी अपने कार्यों और भूमिका के बारे में प्रस्तुति दी।
इस यात्रा का सबसे रोमांचक और आनंदित करने वाला पल अब आने वाला था और वह था पंचायत भवन का दौरा। यह पंचायत पिछले दो वर्षों से केरल के उत्कृष्ट पंचायत होने का तमगा हासिल कर रहा है। बेहतरीन सम्मेलन कक्ष सहित कम्प्यूटर प्रणाली से लैस यह पंचायत भवन खूबसूरत साज सज्जा और बैठने की व्यवस्था से लैस था। इसे देखकर हमारे समूह में शामिल वे लोग जो उत्तर भारत के अलग-अलग राज्यों से थे, अपने यहाँ के पंचायत भवनों से इसकी तुलना करने लगे। सब इस बात पर सहमत थे कि यह उन जगहों से बेहतर ही नहीं अनुकरणीय भी है। पंचायत के अध्यक्ष मोहम्मद सलीम जी बहुत विनम्र और व्यवहार कुशल लगे। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिए पंचायत सेक्रेटरी की मदद से वह अपनी बात हम तक पहुँचा रहे थे। उन्होंने बताया कि उनके पिता भी लंबे समय तक इस पंचायत में चुने जाते रहे थे और यह भी कि यह केरल का बेहतरीन पंचायत है। उन्होंने बताया कि उनके पंचायत के तीनों स्कूलों में मिड डे मील के साथ-साथ ब्रेकफास्ट की व्यवस्था भी कराई गई है। साथ ही स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर बच्चों को जागरूक और प्रोत्साहित करके वे सामाजिक जागरूकता का कार्यक्रम भी चलाते हैं । ‘विद्यार्थी हमारे बेहतरीन साधन हैं’ कहकर उन्होंने हमें सोचने का अलग स्तर प्रदान किया। यहाँ सहित केरल के स्कूलों में बच्चों को गरम पानी पीने को दिया जाता है, जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को दर्शाता है। अपना ऑफिस दिखाते हुए उन्होंने बताया कि हम लोगों की शिकायत का निपटारा बिना इंतजार कराए तुरंत प्रभाव से करते हैं। उनके सेक्रेटरी जो आईबी की नौकरी छोड़कर इस पद पर आए हैं बहुत ऊर्जावान लगे। उन्होंने हमें न केवल सारी बातें बताईं और हमसे पूछा बल्कि सलीम जी के साथ बेहतरीन जलपान की व्यवस्था करने में भी जुटे रहे। इसके बाद वे हमें अपनी पंचायत का एक स्कूल भी दिखाने ले गये। हालाँकि तब तक बच्चे जा चुके थे, पर स्कूल की बिल्डिंग, साज-सज्जा, हरियाली और संसाधन सब बेहतरीन लगे।
इन दौरों में हमें यह भी बताया गया कि केरल के सरकारी स्कूल सप्ताह में पाँच दिन लगते हैं। प्रत्येक शनिवार को शिक्षकों की ट्रेनिंग, वर्कशॉप, ओरियंटेशन और हेल्थ चेकअप के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा और भी कई बहुत सी अच्छी बातें होती दिखाई दीं। कुल मिलाकर यह हमारे लिए सीखने का बेहतरीन अवसर रहा। बहुत सी बातें जो हमें बेहतरीन लगीं उसे अपने स्कूलों में किस तरह कार्य योजना बनाकर अपनाया जा सकता है, इस बात पर हमारा समूह चिंतन करता रहा। केरल के शिक्षा अधिकारियों और शिक्षक समुदाय द्वारा अपने लिए कुछ सुझाव माँगने पर हम सबने यही कहा कि ‘इतने सशक्त और बेहतरीन सार्वजनिक शिक्षा के माॅडल को राजनीति और जन विमर्श का एजेंडा होना चाहिए’ जिससे सभी इससे परिचित हो सकें। इसके लिए केरल के राज, समाज को प्रयास करना चाहिए। इसके साथ ही पूरे देश को केरल राज्य के शैक्षिक ढाँचे, उसकी प्रक्रिया और उससे जुड़ी प्रतिबद्धता से सीख कर मात्रात्मक ही नहीं गुणात्मक शैक्षिक उपलब्धियों को भी हासिल करना चाहिए।
- आलोक कुमार मिश्रा
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