मध्यवर्गीय अपेक्षाओं को अभिव्यक्ति देती आधुनिक स्कूली शिक्षा में हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए काम करना दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है। हिंदी दिवस पर हिंदी की महिमा उनकी समस्याओं का समाधान तो नहीं कर सकता लेकिन शायद उनकी समस्याओं को समझने में और उसके आसपास बातचीत शुरू करने में जरूर मदद कर सकता है। कई स्कूलों में गलती से भी हिंदी में बोल देने पर बच्चों को फाइन भरना पड़ जाता है। ऐसे माहौल में हिंदी शिक्षण हिंसाग्रस्त सीमावर्ती इलाके में ‘ध्यान लगाने'(meditation) के प्रयोग जैसा है। हिंदी दिवस पर एक दूसरे को व्हाट्सएप फॉरवर्ड भेजने वाले अभिभावक अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में पढ़ाने पर गर्व महसूस करते हैं।
स्कूलों में हिंदी पढ़ा रहे शिक्षकों का जिस प्रकार हाशियाकरण हो रहा है इसे बिंदुबार तरीके से समझते हैं।
अभिभावक जब स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला करवाने आते हैं तो वे यह जानने में उत्सुक नहीं रहते हैं कि स्कूल में हिंदी विषय पढ़ाया जाता है या नहीं। स्कूल प्रशासन से उनका सवाल होता है
” व्हिच फॉरेन लैंग्वेजेजज डू यू ऑफर” (आपके यहां किन विदेशी भाषाओं की पढ़ाई करवाई जाती है) पेरेंट्स टीचर मीटिंग के दिन गणित, विज्ञान व अंग्रेजी के शिक्षक से मिलने के बाद जाते-जाते हिंदी शिक्षक से भी मिलने पहुंच जाते हैं। कई बार कम टाइम का हवाला देते हुए सिर्फ गणित और विज्ञान के शिक्षक से मिलकर ही स्कूल से वापस चले जाते हैं। हिंदी शिक्षक से मिलने पर भी उनका सवाल वही रहता है… डोंट माइंड माई हिंदी इज नॉट वेरी गुड
हाऊ इज माई चाइल्ड डूइंग इन हिंदी?
शिक्षक जब बच्चे के हिंदी विषय में परफॉर्मेंस के बारे में बताते हैं …अनसुने तरीके से कई बार व्हाट्सएप पर मैसेज चेक करते हुए अभिभावक सुन लेते हैं लेकिन उनकी कोई खास दिलचस्पी उसमें नहीं होती है।
नौवीं कक्षा में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के पास विकल्प होता है कि वे या तो संस्कृत चुने या हिंदी। और यहां नंबर का खेल महत्वपूर्ण होता है। ऐसा माना जाता है कि संस्कृत विषय में अधिक नंबर लाना हिंदी के वनिस्पत बहुत आसान है। आठवीं में जो बच्चे ‘तेज-तर्रार’ होते हैं,नंबर के खेल में आगे बने रहने के लिए संस्कृत चुनना पसंद करते हैं। अपेक्षाकृत ‘कमजोर और मेडियोकर’ बच्चों के हवाले हिंदी थमा दी जाती है। अंग्रेजियत के माहौल में ‘कमजोर और मेडियोकर’ बच्चों के साथ कक्षा में हिंदी पढ़ाते हुए शिक्षक और ज्यादा हाशियाकरण का शिकार होते जाते हैं। और इस हाशियाकरण की प्रक्रिया पर स्कूल प्रशासन उस वक्त मुहर लगा देती है जब परीक्षा परिणाम में संस्कृत के मुकाबले हिंदी में बच्चों के कम नंबर आते हैं। इस वजह से स्कूल के क्यूपीआई पर फर्क पड़ता है। क्यूपीआई कमजोर करने की जुर्रत करने के बदले स्कूल प्रशासन हिंदी शिक्षकों के हाथ में ‘कारण बताओ’ नोटिस ठहरा देता है। नोटिस के जवाब में शिक्षक सिर्फ इतना ही लिख पाते है…आगे से ऐसा नहीं होने देंगे। और यह पंक्ति वे हर वर्ष लिखते है।
हिंद देश के निवासी हम सभी एक हैं…का लाज रखते हुए मध्यमवर्गीय समाज के अपेक्षाओं को अभिव्यक्ति देने के लिए बने हुए आधुनिक स्कूल हिंदी भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था अपने यहां बनाए हुए हैं। अन्यथा प्रशासनिक कार्यों में हिंदी भाषा का प्रयोग दूर-दूर तक नहीं होता है। मीटिंग्स और सर्कुलर की भाषा भी अंग्रेजी है। हिंदी के शिक्षकों को भी प्रार्थना पत्र अंग्रेजी में ही लिखना पड़ता है।
हिंदी के हमारे शिक्षक एक प्रतिकूल वातावरण में काम कर रहे हैं। हम उनकी समस्याओं को अगर नहीं समझेंगे और उनके लिए एक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए प्रयास नहीं करेंगे तो…हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा… जैसे गीतों में ही हिंदी सुंदर लगेगी और हिंदी पढ़ने-पढ़ाने के कार्य मे जुटे हुए अध्यापक लगातार हाशियाकरण का शिकार बनते चले जाएंगे।
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