यह एक ऐतिहासिक तस्वीर है। आज इस तस्वीर को लेकर मीडिया में काफी चर्चा है। इस तस्वीर को मैं भारत के उन सपनों के तस्वीर से जोड़कर देखता हूं जिसका सपना गांधीजी देखा करते थे और जिसका सपना उस समय भारत को स्वतंत्र करवाने के लिए लड़ रहे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था । अंग्रेज के हाथों में केंद्रीकृत सत्ता का लगातार भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान विरोध किया गया और इस विरोध के स्वर में सभी पार्टियां एकमत थी। प्रांतीय स्वायत्तता की कल्पना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रहा जहाँ हर सूबे की अपनी सरकार होगी और उन सरकारों के पास बहुत सारे फैसले लेने के अधिकार होंगे। कुछ बड़े मुद्दे जैसे कि विदेशों से संबंध, संचार व्यवस्था, रक्षा इत्यादि को लेकर केंद्र की आवश्यकता महसूस की जा रही थी बाकी इस बात को लेकर हमेशा से स्वतंत्रता सेनानियों के बीच एक तरह की सहमति थी कि आजाद भारत में प्रांतीय स्वायत्तता वाली संघ की स्थापना की जाएगी।
स्वतंत्रता के वक्त उपजे कुछ विशेष हालातों में और खासकर विभाजन ने स्वतंत्रता सेनानियों की इस कल्पना को साकार नहीं होने दिया था ।संविधान सभा में भी उन व्यक्तियों की आवाज ज्यादा मुखर हो गई जो एक मजबूत केंद्र चाहते थे और उन परिस्थितियों में एक ऐसी सरकार की जरूरत भी थी। लोकतंत्र अपने शैशव अवस्था में था और उसे ज्यादा सुरक्षा प्रदान किए जाने की आवश्यकता थी।
75 साल से अधिक बीत जाने के बाद भारत में लोकतंत्र मजबूती से अपनी जड़े जमा चुकी है, और अब वक्त आ गया है जब स्वतंत्रता संग्राम के समय हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस नए भारत का सपना देखा था उसको साकार किया जाए । उन्होंने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जहां क्षेत्रीय दल ही शासन व्यवस्था के केंद्र बिंदु में होंगे। लोकतंत्र प्रतिनिधित्व पर आधारित एक शासन व्यवस्था है, क्षेत्रीय दलों के पास जब शासन व्यवस्था का बागडोर होता है तो समाज के अलग-अलग वर्गों को शासन व्यवस्था में शामिल होने का मौका मिल पाता है या यूँ कहें कि इस प्रकार की शासन व्यवस्था ज्यादा प्रतिनिधित्व दे पाती है।
पिछले करीब दो दशकों में भारत ने इस तरह की मिली-जुली सरकार को देखा है और जिस तरह की कहानी मीडिया में बताई जाती है उसके कहीं विपरीत इन्हीं मिली-जुली सरकार के कार्यकाल में भारत सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करता रहा। और साथ ही लोकतंत्र का जो मूल मंत्र है कि समाज के हर वर्ग का शासन में भागीदारी मिले, मिली जुली सरकार के चलते साकार हो पाया । करीब करीब समाज के हर वर्ग को शासन में भागीदार बनने का मौका मिला।
हमें एक बात और स्पष्ट रूप से जाननी होगी कि जब भी हम मजबूत सरकार की बात करते हैं, तो मजबूत सरकार कमजोर लोकतंत्र का निर्माण करती है और ‘मजबूर’ सरकार मजबूत लोकतंत्र का निर्माण करती है। मजबूत लोकतंत्र का मतलब है वहां की जनता को मिली मजबूती। तो हमें तय करना होगा कि हम आखिर क्या चाहते हैं। एक ऐसी जम्हूरियत जहाँ जनता मजबूत हो या एक ऐसी जम्हूरियत जहाँ लगातार जनता की आवाज कमजोर होती रहे और सरकार मजबूत बनती रहे। हमारी जो गलत अवधारणा है मजबूत सरकार को लेकर, वह हमें लोकतंत्र के खिलाफ खड़ा करती है और लोकतंत्र के खिलाफ खड़े होने का मतलब है कि हम अपनी आजादी के खिलाफ, हम अपने गरिमा के खिलाफ और हम मानवीय मूल्यों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
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