CHILDREN’S MINDS BY MARGARET DONALDSON
मेरे लिए यह साइकॉलजी की पहली किताब है जिसको मैंने इतना रुचि लेकर पढ़ा। B.ED, M.ED मे कोर्स का हिस्सा होने के कारण मैंने साइकॉलजी पहले भी पढ़ा है लेकिन जैसा कि मैंने लिखा है वह सिर्फ इसलिए क्योंकि वह कोर्स का हिस्सा था। लिखते हुए मुझे याद आ रहा है कि एक और दिलचस्प किताब मैंने पढ़ी थी ‘ थिंकिंग स्लो एंड थिंकिंग फास्ट’, हालांकि इस किताब का एजुकेशनल साइकोलॉजी से कोई लेना देना नहीं है। मेरे ख्याल से अगर आप CHILDREN’S MINDS पढ़ें तो 3 घंटे में इस किताब को पढ़ा जा सकता है। लेकिन इसी किताब में एक जगह जिक्र आता है कि पढ़ने के पीछे एक बड़ा मकसद होता है कि शब्द हमारे अंदर विचारों की प्रक्रिया को प्रभावित कर सके (रिफ्लेक्सीव प्रोसेस) और इसके लिए किताबों को धीरे- धीरे पढ़ना ही ज्यादा उचित है।
MARGARET DONALDSON विख्यात साइकोलॉजिस्ट Piaget, के रिसर्च से प्रभावित रही हैं, उनके साथ काम किया है लेकिन कमाल की बात है कि उन्होंने प्याजे के कई सिद्धांतों को अपने इस किताब में चैलेंज किया है। और पहले ही पन्ने पर एक जगह वह लिखती हैं कि विज्ञान में कोई भी सिद्धांत अंतिम नहीं होता है। ‘No theory in science is final’. खैर हम तो ऐसा मानकर चलते रहते हैं कि विज्ञान की थ्योरी फाइनल ही समझी जाती है लेकिन इस किताब की यह पंक्ति इस अवधारणा को या स्टीरियो टाइप कहें अब इसको, को तोड़ती है।
अपनी इस किताब में MARGARET DONALDSON, कई जगहों पर Piaget के थ्योरी को चैलेंज करती हैं। उदाहरण के लिए Piaget का प्रसिद्ध प्रयोग जिसमें वह बताते हैं कि छोटे बच्चों के लिए दूसरों का पॉइंट ऑफ व्यू समझना बहुत मुश्किल होता है, को चैलेंज करते हुए मार्गरेट ऐसे रिसर्च का हवाला देती हैं जहां बच्चे दूसरे के पॉइंट ऑफ व्यू को समझने में सक्षम साबित हुए हैं। दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की अहमियत को दर्शाते हुए वह लिखती हैं ‘the greater the gap between teacher and learner the harder teaching becomes’ यानी शिक्षक और बच्चे के बीच जितनी दूरी होगी एक दूसरे को समझने के संदर्भ में शिक्षण का काम उतना ही मुश्किल हो जाएगा।
छोटे बच्चों में भाषा सीखने के संदर्भ में यह प्रख्यात भाषाविद Chomsky के सिद्धांतों को भी चैलेंज करती हैं। 1965 में चोम्स्की ने अपने प्रयोग से साबित किया था कि मनुष्य के अंदर एक लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (LAD) होता है जिसके कारण वो किसी भी तरह के भाषा के स्ट्रक्चर को समझ पाता है। MARGARET DONALDSON इस संदर्भ में भाषा सीखने के एसोसियनिस्ट थ्योरी को ज्यादा कारगर मानती हैं। वह कहती हैं कि भाषा सीखने का जो कौशल है वह मानसिक विकास के अन्य कौशलों से अलग नहीं है।
बच्चे हमारे बातों को किस तरह से इंटरप्रेट करते हैं इस संदर्भ में वह लिखती हैं कि यह तीन बातों पर निर्भर करता है:
पहला की भाषा से संबंधित बच्चे की जानकारी कितनी है।
दूसरा हमारे इरादे के बारे में वह क्या अंदाजा लगा पाते हैं और
तीसरा की अगर बताने वाला वहां उपस्थित ना हो तो बच्चे का हाव-भाव कैसा होगा। वह कहती है कि इस संदर्भ में बच्चों और बड़ों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है। इन्हीं बातों को आधार बनाकर वयस्क भी सुनी हुई बातों को इंटरप्रेट करते हैं।
हमारी शिक्षा व्यवस्था में माइंड और हैंड को लेकर जो एक डुअलिटी है, किस को बेहतर माना जाए- हाथ से काम करना या दिमाग से काम करना। कहीं ना कहीं शिक्षा व्यवस्था इस खाई को और ज्यादा गहरी करती है, इस संदर्भ में A N Whitehead को कोट करते हुए वह लिखती हैं “ In teaching you will come to grief as soon as you forget that your pupils have bodies, it is a moot point whether the human hand created the human brain of the brain created the hand certainly the connection is intimate and reciprocal”
नीचे की पंक्ति पढ़ते हुए तो मैं आश्चर्य में पड़ गया ।1978 में लिखते हुए वह जिक्र करती है कि कैसे वहां (Britain) के शिक्षक मानते थे
When children reach School it is already too late- or that nothing can be done without direct intervention in the homes of the ‘underprivileged’. मार्गरेट इस बात से सहमत नहीं होती हैं। आश्चर्य इसलिए मुझे लगा कि अपने आसपास आज भी हम अपने स्कूलों में इस तरह की बातों को सुनते हैं जहां पर यह जिक्र आता है कि पहले पेरेंट्स को अवेयर करना जरूरी है। उनकी जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को पढ़ना- लिखना सिखाएं। बच्चों को पढ़ना- लिखना सिखाने में वह स्कूल को महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देखती हैं। बच्चों के जीवन में स्कूल के महत्व के बारे में लिखते हुए वह Carl Jung को कोट करती हैं, और लिखती हैं “ School is in fact a means of strengthening in a purposeful way the integration of consciousness and the development of consciousness is what children need more than anything else”
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