राष्ट्रवादी अभिभावक

राष्ट्रवादी अभिभावक

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 06:55 By: admin

हाल ही में CBSE द्वारा दसवीं क्लास में आयोजित की जाने वाली बोर्ड परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया । शत- प्रतिशत बच्चे इस एग्जाम में सफल हुए । प्रिंसिपल साहिबा सभी शिक्षकों से मिलना चाहती थी , किसी कारणवश मैं उस दिन महोदया से मिल नहीं पाया और अगले दिन उनसे मिलने मैं स्कूल जा पहुंचा। पहली बार दसवीं क्लास के बच्चे बोर्ड परीक्षा में शामिल हुए थे , सभी बच्चे पास भी हुए थे, मन में यह उम्मीद संजोये बैठा था कि शायद महोदया मुबारकबाद देना चाहती होंगी। अभिवादन स्वीकार करने के बाद उनका अगला सवाल था कि बच्चे गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों में काफी अच्छे नंबर लाये हैं परंतु हिंदी में उनका नंबर कम कैसे रह गया। हिंदी में तो वैसे भी नंबर लाना आसान है , इसमें तो बाकी विषयों से और ज्यादा नम्बर आने चाहिए थे । इससे पहले कि मैं कोई उत्तर सोच पाता महोदया सवाल को और कठिन बनाती जा रही थी अंत में शायद वह भी यही चाहती थी कि मैं जवाब देने के बदले सॉरी फील करूँ और आगे से स्थिति में सुधार करने के लिए कोशिश करूँ। मैंने भी ऐसा ही किया। इस बात की भी संभावना थी कि अगर मैं कोई तार्किक उत्तर सोचकर दे भी देता तो शायद अगले दिन मुझे एक पत्र मिल जाता कि आपकी सेवा यहीं समाप्त की जा रही है।

इतना पढ़ते -पढ़ते आप यह समझ गए होंगे कि मैं हिंदी पढ़ाने वाला एक शिक्षक हूं और निजी स्कूल में पढ़ाता हूँ। प्रिंसिपल महोदया के सवाल, सवाल कम और आरोप ज्यादा लग रहे थे। उनसे बातचीत के बाद मन में विचारों का बादल उमड़ने लगा। बच्चों के नंबर आखिर कम कैसे आ गए? मुझे पता है इसका जवाब, लेकिन यह जवाब मैं प्रिंसिपल महोदया को नहीं दे सकता। इसकी दो बजहें हैं । पहला कि मैं शिक्षक बना हुआ रहना चाहता हूं और दूसरा कि मेरा जवाब शायद उनकी समझ मे ना आये।

बच्चों के नंबर कम आएंगे इसका अंदाजा मुझे हर उस दिन हो जाता था जिस दिन स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग आयोजित की जाती थी। 40 बच्चों में से शायद 5 या 7 बच्चों के पेरेंट्स मुझसे मिलने आते थे बाकी पेरेंट्स सिर्फ गणित , विज्ञान और अंग्रेजी और कभी-कभी सामाजिक विज्ञान के शिक्षक से मिलकर वापस चले जाते थे। मुझे इस बात से ज्यादा परेशानी नहीं होती थी कि ये पेरेंट्स मुझसे क्यों नहीं मिलते थे। मेरी परेशानी इस बात से ज्यादा थी कि इनमें से ज्यादातर पेरेंट्स ‘राष्ट्रवादी’ पेरेंट्स थे। ज्यादातर बच्चे नव धनाढ्य मध्यवर्ग से आते थे और बच्चों के पेरेंट्स को मैं राष्ट्रवादी इसलिए कहता हूं क्योंकि अक्सर हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं, हिंदी, हिंदू हिंदुस्तान जैसी बातों में भरोसा करते है, संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री के हिंदी में दिए हुए भाषण से अपना सीना गर्व से फुला लेते हैं , लेकिन स्कूल आकर अपने बच्चों को हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षक से नहीं मिलते हैं । अगर एकाध- बार कभी भूले भटके आ भी जाते हैं तो पूछ लेते हैं

 

हाऊ आर यू सर?

हाउ इज माय डॉटर डूइंग इन योर सब्जेक्ट?

 

उनके सवालों का जवाब जैसे ही में हिंदी में देना शुरू करता था वह बोल पड़ते थे

आई एम सारी , माई हिंदी इज वेरी पुअर।

यह कहते हुए उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट होती थी। उस मुस्कुराहट से यह मालूम होता था कि उनके कहने में सॉरी का भाव कहीं नहीं छिपा हुआ है। इन सबके बावजूद वे राष्ट्रवादी पेरेंट्स है। मैं अपने प्रिंसिपल महोदया को यह कैसे समझाऊं कि ज्यादातर बच्चे हिंदी में इसलिए अच्छे नंबर नहीं ला पाए क्योंकि उनके मां-बाप ‘राष्ट्रवादी’ हैं। माफ् करियेगा छद्म राष्ट्रवादी हैं।

सुबह से क्लास में खड़े होकर पढ़ाते पढ़ाते आखिरी पीरियड में जब मैं डेस्क का सहारा खड़े होने के लिए लेने लगता था तभी दरवाजे के सामने से सुपरवाइजर गुजरती थी और सीधे होकर खड़े होने का निर्देश देती हुई आगे निकल जाती थी। क्या संयोग होता था कि कभी-कभी उसी वक्त मैं ‘कबीर’ को पढ़ा रहा होता था। सुपरवाइजर के गुजर जाने के बाद एक बार फिर डेस्क से अड़ जाता था लेकिन चेहरे पर डर का भाव रहता ही था और मुंह से कबीर के दोहे की व्याख्या करता रहता था । ‘डर’ और ‘कबीर’ कैसे इन दोनों को मैं एक साथ कर लेता था मुझे खुद समझ नहीं आता था । लेकिन तभी राष्ट्रवादी पेरेंट्स याद आ जाते थे। अपने बच्चों को हिंदी बोलने पर डाँटने वाले राष्ट्रवादी पेरेंट्स।

अंक कम आने का रिश्ता अंक से भी है। थोड़ा सा मुश्किल हो रहा होगा आपको समझने में, कोई बात नहीं , आपकी सहूलियत के लिए मैं अंक नहीं कहकर डिजिट कहता हूँ। हमारे समाज में आजकल युवाओं से पूछा जाने वाला दक्ष सवाल है- आपकी तनख्वाह में कितने डिजिट हैं ? जी हां , राष्ट्रवादी पेरेंट्स भी इसी दक्ष प्रश्न को ध्यान में रखकर अपने बच्चों का दाखिला उन स्कूलों में करवाना चाहते हैं, जिसके नाम के पीछे कम से कम इंटरनेशनल लगा हो। वैसे मामला अब वर्ल्ड और ग्लोबल तक पहुँच चुका है। राष्ट्रवादी पेरेंट्स का स्कूल के रिसेप्शनिस्ट से यह सवाल रहता है कि

व्हिच फौरन लैंग्वेज डू यू ऑफर?

हिंदी जैसे विषय में बच्चों के कम नम्बर लाने के लिए मैं बच्चों को नहीं उनके राष्ट्रवादी पेरेंट्स को जिम्मेदार मानता हूँ।