स्कूल रिफार्म सीरीज के लेख की तरफ एक बार फिर से लौटते हैं। और आज बात करते हैं शिक्षकों के बारे में। अमेरिकी शिक्षक निसंदेह बहुत ही पेशेवर हैं। ज्यादातर शिक्षक अपने काम का आनंद लेते हुए दिखे। और अगर कोई आनंद नहीं भी ले रहे थे तो खूब पढ़ा जरूर रहे थे। क्लास रूम के अंदर पढ़ाने के लिए शिक्षकों के लिए जितनी भी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा सकती है वह सारी सुविधाएं यहां के क्लासरूम में उपलब्ध है। इन उपलब्ध सुविधाओं के कारण एक तरह से उनका काम काफी आसान हो जाता है। उनके पास यह विकल्प नहीं बच जाता है कि वह कोई बहाना बनाए कि वह ठीक से बच्चों को क्यों नहीं पढ़ा रहे हैं।
क्या हम अपने यहां के शिक्षकों को इस तरह से विकल्प विहीन कर सकते हैं कि उनके पास कोई विकल्प ना बच जाए यह कहने कि, की वे क्यों नहीं पढ़ा रहे हैं? स्कूली शिक्षा में कोई भी आमूलचूल परिवर्तन शिक्षकों के जरिए ही आएगा। और इस मामले में निजी तथा सरकारी स्कूलों में कोई खास अंतर नहीं है। जिस प्रकार से हमारे यहां शिक्षकों का
‘deprofessonalisation’ हो गया है उसके कारण अच्छे शिक्षकों को ढूंढना एक बहुत ही मुश्किल काम हो गया हैl
यह समस्या बहुत ही जटिल और गहरी है । पहले हमें इस बात पर विचार करना होगा कि वह कौन लोग हैं जो शिक्षक बनने के लिए आ रहे हैंl मेरे पास कोई शोध का आंकड़ा तो नहीं है लेकिन अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अधिकतर लोग वे हैं जो बाकी किसी पेशे में सफल नहीं हो पाए या नहीं जा पाए। यकीन नहीं आता है तो आप अपने बच्चों से पूछ लीजिए या अगर आप शिक्षक हैं तो अपनी क्लास में बच्चों से पूछ लीजिए कि क्या वे आगे बढ़कर शिक्षक बनना चाहते है-स्कूल शिक्षक।
इस को एक बेहतर पेशे के रूप में युवाओं के सामने विकल्प के रूप में रखने के लिए हमें निश्चित रूप से इस पेशे को ज्यादा आकर्षक बनाना होगा। हमें शिक्षकों की उस परिकल्पना से बाहर आना होगा जहां उनके काम को सेवा के काम के रूप में देखा जाता है । शिक्षकों के बारे में जब भी आपके दिमाग में कोई चित्र बनता है वह अक्सर गरीब शिक्षकों का ही बनता है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मैं अक्सर लोगों को देखता हूं यह कहते हुए की आपका काम बच्चों के जीवन को परिवर्तन करने का काम है …आप एक बड़े मकसद के काम में लगे हुए हैं… पैसे का तो इस पेशे में कोई बात ही नहीं होना चाहिए। मुझे नहीं पता की कॉरपोरेट ट्रेनिंग के दौरान कभी इस तरह की बातें की जाती है या नहीं। लेकिन जब तक हम इसे कंपीटिटिव नहीं बनाएंगे, बेस्ट टैलेंट को हम कैसे स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में खींच पाएंगे। अगर शिक्षकों के पास अपने कैरियर में उतना ही आगे बढ़ने का मौका मिले जितना किसी इंजीनियर या डॉक्टर को मिलता है तो युवाओं के पास एक विकल्प होगा। लेकिन हम कर क्या रहे हैं हम तो अपने युवाओं को शिक्षक तो दूर की बात -गेस्ट टीचर बना रहे हैं। मुझे तो गेस्ट टीचर की पूरी परीकल्पना शिक्षक के पेशे के साथ हुई एक भद्दा मजाक के रूप में लगता है। हमारे युवा, प्रतिभावान शिक्षक हमारे बराबर, कई बार हम से ज्यादा काम करते हैं स्कूलों में और फिर भी गेस्ट टीचर कहलाते रहते हैं। यह कितना बड़ा अपमान है,हमारे युवा शिक्षक साथिओं के साथ। हम कैसे अपने युवाओं को शिक्षा के क्षेत्र में आने के लिए आकर्षित कर सकते हैं।
देश के सभी राज्यों को दिल्ली से सीखने की जरूरत है । शिक्षकों के सम्मान के लिए यहां के विधानसभा में बिल पास करवाया गया कि हमारे गेस्ट टीचर को स्थाई नौकरी प्रदान की जाए।अफसोस की बात है कि राजनीतिक वजह से यहं अभी तक फंसा हुआ है।
दूसरा बड़ा मुद्दा है कि हमारे शिक्षक तैयार कहां होते हैं? शिक्षक प्रशिक्षण के लिए जो कॉलेज बने हुए हैं उसकी हालत स्कूली शिक्षा से भी बदतर है। देश में लाखों शिक्षकों की हर वर्ष जरूरत है लेकिन हमारे पास मुट्ठी भर संस्थान है जहां पर शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम को गंभीरता से ली जाती है ।
तीसरा महत्वपूर्ण विषय है कि शिक्षक बन जाने के बाद अपने कैरियर में उनको आगे बढ़ने के लिए किस तरह के मौके उपलब्ध है। करीब-करीब नहीं के बराबर, हमारे कई शिक्षक साथी सोचते हैं कि इससे बेहतर है कलर्क बन जाना। मेंटर टीचर प्रोग्राम, एकेडमीक कोर यूनिट प्रोग्राम, तथा टीचर डेवलपमेंट कोऑर्डिनेटर प्रोग्राम को लागू करके दिल्ली सरकार ने इस क्षेत्र में बेहतरीन कदम उठाए है। जरूरत है कि शिक्षकों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाए। इसके लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाए। मुझे लगता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त शिक्षक जिस तरह से समाज को प्रत्यक्ष रुप से फायदा पहुंचा सकते हैं उतना शायद किसी और पेशे के जरिये संभव नहीं है।
इन सबके अलावा और ऐसा क्या किया जा सकता है कि शिक्षक लगातार आगे बढ़ते रहने के लिए, कुछ और पढ़ते रहने के लिए, अपने आप को अपडेट रखने के लिए कोशिश करते रहें। मुझे लगता है इसका जवाब छुपा है पर्फॉर्मेंस बेस्ड रिवॉर्ड सिस्टम में। प्रशासनिक रूप से यह मामला थोड़ा जटिलता से भरा हुआ जरूर है लेकिन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके इसको काफी आसान बनाया जा सकता है। आज टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में ऐसी कई सारी कंपनियां है जो शिक्षकों के लिए कस्टमाइजड टेस्ट डिजाइन कर सकती है। अमेरिका में टीचिंग लाइसेंस को बनाए रखने के लिए शिक्षकों को इस तरह का टेस्ट हर कुछ सालों में देना पड़ता है।
शिक्षकों से जुड़ी हुई इन समस्याओं पर जब तक हम विचार नहीं करेंगे शिक्षा के क्षेत्र में कोई आमूलचूल परिवर्तन लाना संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि परिवर्तन शिक्षकों से होकर आएगा। मुझे इस बात की खुशी है कि ‘दिल्ली शिक्षा क्रांति’ इन बातो को गंभीरता से लेती है और शिक्षकों से जुड़े हुए विषय पर लगातार काम कर रही है।
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