Can we stop failing our students?

Can we stop failing our students?

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 06:36 By: admin

अगर आप बच्चों से प्यार करते हैं तो अमेरिकी स्कूल में बच्चों के चेहरे पर जो खुशी आपको देखने को मिलती है उसे देखकर आप उत्साहित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। ऐसा नहीं है कि यहां चैलेंजिंग बच्चे नहीं हैं, विविधता के लिहाज से तो सबसे ज्यादा विविध यहां की क्लास रूम है। दुनिया के अलग-अलग देशों से लोग यहां आकर बसते हैं ऐसा नहीं है कि सभी लोग नौकरी करने के लिए ही आए हैं,और बसे हुए हैं, कई लोग यहां शरणार्थी बनकर भी आाते हैं। मुझे बताया गया कि कई बार इराक, अफगानिस्तान और दुनिया के बाकी हिस्सों से अचानक ही कुछ लोग किसी खास वजह से यहां आ जाते हैं उनके बच्चों का स्कूल में दाखिला करवा दिया जाता है लेकिन बच्चों को इंग्लिश नहीं आती होती है। स्कूल जबरदस्त कोशिश करती है कि हर तरह के बच्चों को अकोमोडेट कर लिया जाए।

मैंने बहुत पता करने की कोशिश की, कि वे बच्चे कहां हैं जो फेल हो जाते हैं, या बच्चों को फेल करने की किस तरह की योजनाएं हैं स्कूल के पास। बहुत ही रेयर घटना है यह। हो सकता है कि हमने हर तरह की स्कूल नहीं देखे हो आंकड़े कुछ और बता सकते हैं लेकिन जिस स्कूल को मैंने देखा है उसमें बच्चे फेल नहीं होते है। एक ऐसी व्यवस्था से आकर यह देखना मेरे लिए अचंभित होने जैसा था, मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव रहा है की हमें तो बच्चों को फेल करने में बहुत मजा आता है। बात-बात पर बच्चों को यह बताते रहते हैं यह करो नहीं तो फेल हो जाओगे। और उन बच्चों को तो खास कर जो ठीक-ठाक पढ़ाई नहीं करते हैं। यह बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे कोई मरीज हॉस्पिटल में भर्ती हो और विजिटर उनको यह बताएं कि आप जल्दी ही मरने वाले हैं। हम अपने ‘कमजोर’ बच्चों को बार-बार यह याद दिलाते हैं कि वह जल्दी ही फेल होने वाला है,स्कूल से बाहर निकलने वाला है। चैलेंजिंग बच्चों को स्कूल से बाहर निकाल देने को हम शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी सभी समस्याओं का हल मानते हैं। हमारी नीतियां क्या कहती है ? या सरकार का क्या रुख है,मैं इस संबंध में बात नहीं कर रहा हूं मैं स्कूल के अंदर की संस्कृति की बात कर रहा हूं जहां इस बात की लगातार कोशिश होती है की चैलेंजिंग बच्चों को push out कर दिया जाय, स्कूल से बाहर निकाल दिया जाए। हर दिन प्रिंसिपल के पास इस तरह के रिकमेंडेशन आते रहते हैं।

कई सारी बातें जिम्मेदार हो सकती है इसके लिए, हो सकता है कि शिक्षक के पास उस तरह की ट्रेनिंग नहीं होगी कि चैलेंजिंग बच्चों के साथ कैसे निपटा जाए। हो सकता है कि संसाधन की कमी हो। लेकिन इस तरह के बच्चों के लिए हमारे अंदर सम्मान की भावना हो इसके लिए कैसी ट्रेनिंग चाहिए।

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अमेरिका के स्कूलों में एक संरचनात्मक व्यवस्था है जिसमें यह जरूरी नहीं होता है कि सभी बच्चे एक ही तरह के कोर्स में पास हों। वह अपनी क्षमता के अनुसार अलग-अलग तरह का कोर्स चुन सकते हैं, स्टैंडर्ड, रेगुलर, AP जैसे, अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है । इसका मतलब है कि बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार अलग-अलग तरह की कोर्स चुन सकते हैं अगर किसी को बहुत पढ़ने का मन है तो वह AP चुन सकता है अगर कोई पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ी देर सोना भी चाहता है तो वह रेगुलर चुन लेता है। बच्चों के लिए यह जरूरी नहीं होता है कि वह सभी विषयों में पास हो तभी वह अगली कक्षा में जाएंगे वह बिना पास हुए भी अगली कक्षा में जा सकते हैं और फिर बाद में उन विषयों का पेपर दे देते हैं जिसमें उन्हें अच्छे अंक प्राप्त नहीं हुए थे।

मुझे यह व्यवस्था बहुत ही तर्कसंगत लगा। मुझे लगता है कि हमें भी राइट टू एजुकेशन से आगे बढ़कर राइट टू स्कूलिंग तक जाना होगा। 12 साल स्कूल में बिताना बच्चों का अधिकार होना चाहिए। ठीक है, कुछ बच्चे गणित अच्छा नहीं करेंगे लेकिन वह म्यूजिक बेहतर कर सकते हैं। कोई अंग्रेजी ठीक से नहीं पढ़ेगा लेकिन वह संस्कृत बेहतर पढ़ सकता है। अमेरिका की स्कूल यहां के athelete के लिए ब्रीडिंग ग्राउंड है । हमें भी अपने यहां की स्कूलों में इस तरह की क्षमता से भरे हुए बच्चों को रोकना होगा, हो सकता है जो गणित में फेल हो रहा हो वह वेटलिफ्टिंग में भारत के लिए गोल्ड मेडल ले आए। इंजीनियर डॉक्टर तो हायर भी किए जा सकते हैं, ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट को आप कहां से हायर करेंगे।

इस संबंध में दिल्ली की सरकार अपने स्कूलों में बहुत कुछ पहल कर रही है। बच्चों को अब कई सारे वोकेशनल कोर्सेज को पढ़ने का मौका मिल रहा है। खेलकूद से जुड़ी हुई संरचनात्मक ढांचे का विस्तार हो रहा है। यह वाकई स्वागत योग्य कदम है लेकिन हमें एक कदम और आगे जाना होगा हमें सुनिश्चित करना होगा कि 12 साल की पढ़ाई किए बिना हमारे बच्चे स्कूल नहीं छोड़े। बच्चों को स्कूल से बाहर निकालने का विकल्प ही हमें बंद करना होगा। स्कूल बच्चों का है, वहां होना उनका अधिकार है।

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