न्यूयॉर्क में आज सुबह से ही रिमझिम बारिश हो रही थी। हमें करीब 10:00 बजे ही बैटरी पार्क पहुंचना था और वहां से फेरी लेकर स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी देखने जाना था। जब आप अमेरिका की कल्पना करते हैं तो उस कल्पना की तस्वीर स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी होती है। तो हमारे इस उत्साह को रिमझिम बारिश कुछ खास कम नहीं कर पाई। फेरी को करीब 5 मिनट लगता है स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी तक का रास्ता तय करने में, हम सभी बहुत उत्साहित थे, अटलांटिक महासागर के इस हिस्से में हम फेरी के ऊपर थे और हल्की- हल्की बारिश पूरे वातावरण को बहुत आनंददायक बना रही थी। हवा तेज चल रही थी और तापमान करीब-करीब 2 डिग्री सेल्सियस के आसपास था। मन के उत्साह के सामने सर्दी का जरा भी एहसास नहीं हो रहा था। भीगते हुए ही सही, फेरी के ऊपर हमने कुछ तस्वीरें ली, और फिर स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी के सामने जाकर उस ऐतिहासिक तस्वीर को उतारने की कोशिश कि जहां एक ही फ्रेम में मैं और स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी दोनों आ जाये। बाकी सभी लोग भी ऐसा ही प्रयास करते नजर आ रहे थे। मुझे तो इस जगह की ऐतिहासिकता इसके भौगोलिक परिवेश से ज्यादा प्रभावित कर रही थी।
1886 में फ्रांस के तरफ से अमेरिका को यह तोहफा दिया गया था । इस वर्ष अमेरिका ने अपनी स्वतंत्रता के 100 साल पूरे किए थे। दुनियाभर में स्वतंत्र विचार के पक्षधर रहे लोगों के लिए इससे सुंदर जगह और क्या हो सकती है। 1886 से अपने हाथ में मशाल लिए स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी दुनियाभर के लोगों को यह बता रही है कि विचारों की स्वतंत्रता एक खूबसूरत दुनिया बनाने के लिए बहुत जरूरी है।
कितना सुंदर शब्द है यह लिबर्टी- स्वतंत्रता, हम सभी लोगों के लिए अगर हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रिय कुछ है तो वह है स्वतंत्रता। आपने गौर किया होगा आपको वह हर बात बुरी लगेगी जो आपके स्वतंत्रता को बांधती है। शायद इसलिए जब हम किसी को सजा देते हैं तो उससे उसकी स्वतंत्रता छीन लेते हैं। लेकिन किसी को जेल में रखकर ही स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती है, सभी स्वतंत्रताओं में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेरे ख्याल में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अपने देश में भी और दुनिया के बाकी कई देशों में भी विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर लोगों के लिए हमेशा से कठिनाइयां खड़ी की जाती रही है।
और यह महज एक संयोग ही था कि दुनिया में विचारों की स्वतंत्रता मैसेज देने वाली स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी को देखने के बाद हमें 9/11 मेमोरियल पर जाने का मौका मिला। रोंगटे खड़े कर देने वाली यह जगह है। एक आयताकार आकार में, बड़े तालाब की तरह यह मेमोरियल बना हुआ है जिसकी दीवारों से हमेशा पानी नीचे गिरती रहती है, इस मेमोरियल के दीवारों पर उन लोगों का नाम अंकित है, जिन्होंने मानवता से घृणा करने वाले, धार्मिक कट्टरपंथी विचारधारा से प्रभावित, लोगों के नृशंस हमले में अपनी जान गवाँई थी। एक नाम के ऊपर एक ताजा सफेद गुलाब का फूल रखा हुआ था शायद कोई प्रियजन आज इस जगह फिर से आया होगा, और यहां एक फूल चढ़ा गया होगा।
धार्मिक कट्टरपंथी विचारधारा इस वक्त भारत की ही नहीं दुनिया के बांकी देशों के लिए भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। धार्मिक कट्टरपंथी विचारधारा विचारों की स्वतंत्रता के खिलाफ होती है। कट्टरपंथी विचार के लिए यह पहला शर्त होता है कि आपमें विचार करने की शक्ति को विकसित नहीं होने दिया जाए। और इस वजह से कट्टरपंथी लोग लिबरल एजुकेशन के बिल्कुल खिलाफ होते हैं। धार्मिक कट्टरपंथी विचारधारा से बाहर निकलने में यूरोप को 1000 साल से अधिक लग गया था। आज भी दुनिया के कई देश इस विचारधारा के गिरफ्त में है, हमें भी काफी सतर्क रहने की जरूरत है हम कहीं इसकी ओर फिसलते ना चले जाएं।
हमारा अगला पड़ाव था -संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय । हम बहुत उत्साहित थे कि दुनिया के 193 देशों के झंडों के साथ अपना तस्वीर खिंचवाएंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। बारिश के कारण झंडों को उतार कर रख दिया गया था। हमने मुख्यालय के बिल्डिंग के साथ ही फोटो खिंचवाकर संतोष किया। वापस होते वक्त रास्ते में न्यूयोर्क का सेंट्रल लाइब्रेरी दिख गया। आश्चर्य इस बात की थी कि किस तरह यहां लाइब्रेरी को टूरिस्ट अट्रैक्शन की जगह बनाया गया है, यहां के करीब-करीब हर शहर में आपको लाइब्रेरी टूरिस्ट अट्रैक्शन की जगह के रूप में दिखेगा। यह कहीं ना कहीं पढ़ने लिखने की संस्कृति को दिखाता है। लाइब्रेरी के प्रवेश द्वार पर लिखे हुए शब्द दिल को छू गया। ये शब्द थे-
Peace, Love & Revolution मेरा न्यूयॉर्क यात्रा दुनिया को इससे सुंदर और कौन सा शब्द बता सकता है- Peace, Love & Revolution
न्यूयॉर्क से फिलहाल इतना ही। अगली कड़ी में कुछ और बातें । हर दिन एक नई कहानी है यहाँ। एक बार फिर से आप सभी से विदा लेता हूं और आपको छोड़ता हूं कुछ तस्वीरों के साथ।
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