
पढ़ना अब सिर्फ विकल्प नहीं, ज़रूरत है
आजकल मैं कुछ बच्चों को "करिकुलम, पेडागोजी एंड इवेलुएशन " नाम का एक पेपर पढ़ा रहा हूँ। मैं अक्सर कक्षा में कुछ रीडिंग सामग्री लेकर जाता हूँ, जिसे बच्चों को पढ़ना होता है, और फिर उन रीडिंग्स के आधार पर चर्चा होती है। अधिकतर बच्चे इन रीडिंग्स को पढ़ते हैं, लेकिन कुछ विद्यार्थी ऐसे भी हैं जो यह कहते हैं कि उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं है। कक्षा में ऐसे बच्चों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन समाज में पढ़ने में रुचि न रखने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है, जो एक चिंता का विषय है।
मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि यहाँ पढ़ने से मेरा तात्पर्य परीक्षा के लिए पढ़ाई करने से नहीं, बल्कि समझ विकसित करने के लिए पढ़ने से है। इस अर्थ में, पढ़ना और पढ़ते रहना एक जीवनपर्यंत प्रक्रिया है।
शिक्षाविद मानते हैं कि किताबें पढ़ना, जो "ऑर्गेनाइज्ड फॉर्म ऑफ लर्निंग" का हिस्सा है, जटिल समाज में जीने के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता है। यहाँ जटिल समाज से मेरा तात्पर्य यह है कि हमारे जीवन पर केवल आसपास की घटनाओं का ही प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि ऐसी कई घटनाएँ, जिन्हें हम तुरंत देख, सुन या महसूस नहीं कर सकते, हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटेन में कपड़ा मिलों की स्थापना ने भारत में हजारों बुनकरों का रोजगार छीन लिया था।
दुनिया में तेजी से फैल रही AI क्रांति हमारे जीवन को किस तरह प्रभावित करेगी, यह हम पूरी तरह स्पष्ट रूप से नहीं जानते। कुल मिलाकर, समाज दिन-प्रतिदिन और जटिल होता जा रहा है। ऐसे में, इस समाज में जीने के लिए निरंतर पढ़ते रहना एक अपरिहार्य आवश्यकता है। लेकिन मुझे निराशा होती है कि लोगों की पढ़ने में रुचि उसी अनुपात में घटती जा रही है। रील्स को एक तरह से किसी भी विषय पर आवश्यक ज्ञान का शॉर्टकट मान लिया गया है।
एक मिनट की रील गणित के किसी सवाल को चुटकियों में हल करने का तरीका बता सकती है, तो वही रील बागवानी या व्यंजन बनाने का नुस्खा भी सिखा सकती है। बहरहाल, हमारे आसपास, परिवार और समाज में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने जीवनभर पढ़ाई को प्राथमिकता नहीं दी, फिर भी वे एक बेहतर जीवन जी पाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पढ़ते रहना क्यों जरूरी है?
हमारे दैनिक जीवन में, सामान्य कार्यों के लिए भी हमें ज्ञान की आवश्यकता होती है। कल्पना कीजिए कि आपके सामने ऐसी थाली रख दी जाए, जिसमें परोसे गए व्यंजन आपने पहले कभी न देखे हों और न ही उसके बारे में सुना हो—आप असमंजस में पड़ जाएँगे। दैनिक जीवन में हजारों कार्यों को निपटाने के लिए हमारे पास "लोक ज्ञान" (फोक नॉलेज) के रूप में ज्ञान का एक भंडार होता है। लोक ज्ञान से तात्पर्य उस अनौपचारिक, पारंपरिक, और सांस्कृतिक रूप से रचे-बसे ज्ञान से है, जो किसी समुदाय के लोग औपचारिक शिक्षा या वैज्ञानिक विधियों के बजाय अपने दैनिक अनुभवों, अवलोकन, और सामाजिक सहभागिता के माध्यम से साझा करते हैं। यह ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से या अभ्यास के माध्यम से हस्तांतरित होता है और हमारे जीवन को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लेकिन तेजी से जटिल होते समाज में लोक ज्ञान कई बार पर्याप्त मार्गदर्शन नहीं दे पाता। ऐसे में हमें "विशेषज्ञ ज्ञान" (स्पेशलाइज्ड नॉलेज) की आवश्यकता पड़ती है। इस जटिल समाज में विशेषज्ञ ज्ञान की माँग लगातार बढ़ रही है, और इसे बिना पढ़े प्राप्त करना संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, हाल ही में समाचार पत्रों में ऐसी कई घटनाएँ सामने आई हैं, जहाँ पढ़े-लिखे लोग भी ऑनलाइन ठगी का शिकार हुए हैं। ठगी के शिकार हुए लोगों को फोन पर उनके बच्चों की रोने की आवाज़ सुनाई गई, और रोते हुए बच्चों ने अपने माता-पिता से पैसे माँगे। अब ‘वॉइस क्लोनिंग’ एक स्पेशलाइज्ड नॉलेज है। जब तक यह विशिष्ट ज्ञान लोक ज्ञान का हिस्सा बनेगा, तब तक बहुत से लोग ठगी का शिकार होते रहेंगे। लोक ज्ञान एक मानक साँचे (स्टैंडर्ड टेम्पलेट) की तरह होता है, जो अधिकांश मामलों में हमारी मदद करता है। लेकिन कई बार हम ऐसी परिस्थितियों में फँस जाते हैं, जहाँ हमारे मुँह से अनायास निकलता है—"ऐसा कैसे हो सकता है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था!"
जटिल होती जा रही सामाजिक व्यवस्था में, यदि हम पढ़ने को जीवनपर्यंत आदत के रूप में नहीं अपनाते, तो एक गरिमापूर्ण ज़िंदगी जीना लगातार कठिन होता जाएगा। जटिल सामाजिक संरचना में गरिमा के साथ जीने के लिए, सीखते रहना और सीखने के लिए पढ़ते रहना अब भोजन, जल और साँस लेने जितना ही आवश्यक हो गया है।
इसके अलावा, पढ़ने की आदत न केवल ज्ञान बढ़ाती है, बल्कि आलोचनात्मक चिंतन और विश्लेषणात्मक क्षमता को भी विकसित करती है। यह हमें जटिल समस्याओं को समझने और उनके समाधान खोजने में सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति पर्यावरणीय संकटों, जैसे जलवायु परिवर्तन, को समझना चाहता है, तो उसे वैज्ञानिक अध्ययनों, नीतिगत दस्तावेज़ों, और ऐतिहासिक डेटा को पढ़ना होगा। लोक ज्ञान हमें यह बता सकता है कि पेड़ लगाना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह समझना कि जलवायु परिवर्तन के लिए कौन से नीतिगत कदम प्रभावी होंगे, विशेषज्ञ ज्ञान की आवश्यकता है।
दुर्भाग्यवश, आज के समाज में पढ़ने की आदत को कम महत्व दिया जा रहा है। सोशल मीडिया और त्वरित जानकारी के युग में लोग लंबे लेखों, किताबों, या गहन अध्ययनों को पढ़ने से कतराते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि रील्स और छोटे वीडियो तुरंत संतुष्टि प्रदान करते हैं, जबकि पढ़ना समय और धैर्य माँगता है। लेकिन यह समझना होगा कि त्वरित जानकारी कभी भी गहरे ज्ञान का स्थान नहीं ले सकती।
अंत में, मैं यह दोहराना चाहूँगा कि पढ़ना एक जीवनपर्यंत यात्रा है, जो हमें न केवल सूचित करती है, बल्कि हमें एक जटिल और तेजी से बदलते समाज में जीने के लिए सशक्त बनाती है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि लोक ज्ञान और विशेषज्ञ ज्ञान दोनों की अपनी-अपनी जगह है, लेकिन जटिल समस्याओं का सामना करने के लिए विशेषज्ञ ज्ञान अनिवार्य है। इसलिए, हमें न केवल स्वयं पढ़ते रहना चाहिए, बल्कि अगली पीढ़ी को भी पढ़ने की आदत डालने के लिए प्रेरित करना चाहिए। तभी हम एक सूझबूझ से भरे समाज का निर्माण कर पाएँगे, जो जटिल चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होगा।
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‘फ्यूचर ऑफ रीडिंग’ पर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अरविंद नारायणन ने लिंक्डइन पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसे परांजय गुहा ठाकुरता ने ट्विटर पर साझा किया। इस पर शशि थरूर ने भी एक टिप्पणी की। नीचे दिए गए लिंक पर आप इस पूरी बातचीत को देख सकते हैं।
https://x.com/ShashiTharoor/status/1928900841970561387?t=LQW8gk8uJ5Kz_iqoWz7Xsg&s=08
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