दो तस्वीरें, दो जहाँ

दो तस्वीरें, दो जहाँ

Posted on: Sun, 11/17/2024 - 06:38 By: admin
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दो तस्वीरें, दो जहाँ

 

पिछले सप्ताह की यह दो तस्वीरें हैं और बहुत खूबसूरती से मेरी जिंदगी के दो अहम हिस्सों को कैप्चर कर रही हैं। हमारी पीढ़ी के अधिकतर लोग, जो गाँव से शहर आए हैं, उनमें से ज्यादातर किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं, और मेरे साथ संयोग ऐसा रहा कि मैं खुद किसान रहा हूँ। मैं अपनी जिंदगी के पहले दो दशक को एक पूर्णकालिक किसान और अंशकालिक छात्र, यानी फुल-टाइम फार्मर और पार्ट-टाइम स्टूडेंट के रूप में देखता हूँ।

आजकल जब मेरी बेटी पेट (पालतू जानवर) के लिए जिद करती है, तब अचानक मुझे याद आता है कि मेरे पास भी एक पेट  था। खेती करने के लिए मेरे पास एक बैल था। आज के संदर्भ में उसे पेट नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वह खेती के काम में मदद करता था, मुझे एंटरटेन करने के लिए नहीं था। लेकिन हम साथ बहुत समय बिताते थे। उसके लिए चारे का इंतजाम करना, घास लाना, उसके साथ खेत जाना, इत्यादि।

एक खास बात यह लगती है कि मैं कभी उन दो दशकों को इस तरह से नहीं देखता हूँ कि पढ़ाई का बहुत नुकसान हो गया था। बल्कि ऐसा लगता है कि वही असली पढ़ाई थी। अब जब शिक्षा के साहित्य से जुड़ा हूँ और शिक्षा से जुड़े कुछ दर्शनशास्त्र को पढ़ने का मौका मिला है, तो पता चला कि "अर्थपूर्ण जुड़ाव" की बात तो हमेशा से दार्शनिक और शिक्षाशास्त्री करते आए हैं। उसमें सबसे बड़ा नाम जॉन डीवी का है और जिसे बाद में हमारे देश में गांधी जी  ने भी नई तालीम के नाम से काफी आगे बढ़ाया। तो स्कूल भले ही कम गया, लेकिन एक अर्थपूर्ण गतिविधि में मैं लगातार जुड़ा रहा और उसके जरिए जो सीखा, स्कूल उसकी भरपाई नहीं कर सकता।

अभी जब एक-दो दिनों के लिए गाँव में था, तो मेरे परिवार का एक 5 साल का बच्चा अपना अधिकतर समय तितलियों को पकड़ने में लगाता था। उसके माँ-बाप बहुत परेशान थे कि बच्चा गाँव आकर बहुत बर्बाद हो जाता है, किताब तो कभी हाथ में उठाता ही नहीं है। और मैं देख कर हैरान था कि जिस फाइन मोटर और ग्रॉस मोटर स्किल को सिखाने में स्कूल वर्षों लगाते हैं, कैसे यह बच्चा खेल-खेल में, मजे-मजे में, उन क्षमताओं को डेवलप कर रहा था। तितली को पकड़ पाना फाइन मोटर स्किल के उच्चतम स्तर का उदाहरण हो सकता है, और उसके पीछे-पीछे भागना ग्रॉस मोटर स्किल के उच्चतम स्तर का उदाहरण हो सकता है। जब मैंने उससे कहा कि एक तितली मुझे भी दे दो, मैं इसे दिल्ली लेकर जाऊंगा, तो उसने समझदारी से मुझे बताया कि वह इसे ऐसे पैक करेगा ताकि यह सांस ले सके। उसने कहा कि वह इसे एक बोतल में डालेगा और बोतल को जगह-जगह से काट देगा ताकि यह मरे नहीं।

5 साल के बच्चे को विज्ञान की यह अवधारणा किसने सिखा दी? अपनी किताब बच्चों की भाषा और शिक्षक में कृष्ण कुमार कहते हैं कि बच्चे प्रकृति में जितना समय गुजारेंगे, उनकी भाषा की क्षमता उतनी ही ज्यादा विकसित होगी। लेकिन बाजार आधारित शिक्षा का हमारा नजरिया इस कदर आधुनिक पेरेंट्स के ऊपर हावी हो गया है कि प्राकृतिक वातावरण में समय गुजारने को समय की बर्बादी माना जाता है। सीखने के एकमात्र स्रोत के रूप में स्कूल और किताब को देखा जाता है। और जब भी बच्चे इनसे दूर होते हैं, तो माता-पिता को एक खास तरह की चिंता घेर लेती है। लंबी छुट्टी लेकर गाँव जाने वाले बच्चों को तो स्कूल एक तरीके से नालायक घोषित कर देता है और उससे भी ज्यादा उनके माँ-बाप को, कि इन माँ-बाप को अपने बच्चों की पढ़ाई की कोई फिक्र नहीं है। मैं अभी भी मानता हूँ कि उन महीने-दो महीने में, जब माँ-बाप बच्चों को अपने गाँव और समाज के प्राकृतिक वातावरण में छोड़ते हैं, प्रकृति और समाज से इंटरेक्ट करते हुए वे बच्चे जितना सीखते हैं, स्कूल शायद वर्षों में उतना नहीं सीखा पाता।

खैर, तस्वीर पर वापस लौटता हूँ। दूसरी तस्वीर TEDx के एक मंच की है, जिसके जरिए लोग अपनी बातों को दुनिया भर में किसी खास विषय में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के साथ साझा करते हैं। कैसे हम एक प्रोग्रामड सोसाइटी का हिस्सा बनते जा रहे हैं, जहां सिर्फ हमारा मोबाइल और कंप्यूटर ही नहीं, बल्कि एल्गोरिदम के जरिए हमारा दैनिक जीवन भी कंट्रोल हो रहा है। कुल मिलाकर, हमारा अपने ऊपर कंट्रोल लगातार कम हो रहा है और यह खिसक कर उन कुछ हाथों में जा रहा है, जिनके पास बिग कैपिटल और डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी का कंट्रोल है। मैंने अपनी बातचीत में इसको प्रमुखता से उठाया और साथ में, लगातार लिखने को एक ऐसे काउंटर टूल के रूप में प्रस्तुत किया, जो कुछ हद तक हमें इस नई स्थिति को समझने और इस पर वापस नियंत्रण हासिल करने में मदद कर सकता है।

कुछ दिनों में यह बातचीत TEDx के प्लेटफार्म पर अपलोड कर दी जाएगी। मेरे लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक घटना है। इसका मतलब है कि मेरे पास अब कुछ महत्वपूर्ण स्पेस है, जहां पर मैं अपनी आवाज उठा सकता हूँ। और दो प्रमुख समूहों के साथ तो मेरा सीधा रिश्ता है—एक किसान समुदाय के साथ और दूसरा शिक्षा से जुड़े समुदाय के साथ। 28 करोड़ बच्चे हमारे स्कूलों में पढ़ रहे हैं और करीब एक करोड़ अध्यापक उन्हें पढ़ा रहे हैं। मैं इस समुदाय का एक हिस्सा हूँ। यह कहते हुए बहुत दुख होता है, लेकिन सच्चाई है कि शिक्षा के पेशे को गया गुजरा बना दिया गया है। जहां कहीं भी मुझे मौका मिलेगा, मैं इस ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करूंगा और कोशिश करूंगा कि इसे एक बार फिर से एक आकर्षक और सशक्त पेशे के रूप में स्थापित किया जाए।

खेती-किसानी बाहर से बहुत सुंदर लगती है, आकर्षण होता है, लेकिन इससे जुड़े लोग एक बेहद कठिन और असहाय जीवन जीते हैं। उनकी जिंदगी की कहानियों में बीमारी, गरीबी और बेबसी बहुत आम हैं। जब भी मौका मिलेगा, मैं अपने अनुभवों को समेटते हुए किसानों की जिंदगी को और करीब से देखने और जानने का प्रयास करूंगा और उसे कलमबद्ध करूंगा।