पगडंडी से परे: शिक्षा में नेतृत्व का महत्व
पिछला सप्ताह हम सबके लिए काफी रोमांचक रहा। रोमांच से मेरा मतलब है कि हमारी भावनाएं कभी हर्ष के शिखर पर होती हैं, तो कभी उदासी की गहरी खाइयों में। हम में से बहुत से लोग अब तक इससे उबर नहीं पाए हैं और शायद इसमें अभी समय लगेगा। यह अवसर एक ऐसे व्यक्ति का सेवानिवृत होकर हमसे विदा लेने का था, जिसने पिछले कुछ वर्षों में हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित किया है।
पिछले डेढ़ दशक में मैंने कई विदाई समारोह देखे और उनमें शामिल हुआ हूँ, लेकिन मुझे याद नहीं आता कि किसी की सेवानिवृत्ति ने हमें इस प्रकार से प्रभावित किया हो। यह अनूठा इसलिए भी है क्योंकि यह किसी एक या दो व्यक्तियों का मामला नहीं था; जिनसे भी बात कीजिए, 200 से अधिक लोग, जो उनके साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़े थे, लगभग सभी ने यही महसूस किया।
इस विषय पर लगातार विचार कर रहा हूँ और समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि इस जादू की असल वजह क्या थी। मेरे विचार से, शिक्षा में नेतृत्व की भारी कमी है। हमारे आस-पास जो लोग हैं और जिनके साथ हमें अक्सर काम करने का मौका मिलता है, वे नेतृत्व की भूमिका में नहीं, बल्कि निरीक्षक की भूमिका में होते हैं। क्या करना है और कैसे करना है, इसके पहले से ही तय नियम और कानून हैं। ऐसे में नेतृत्व की भूमिका में काम करने वाले लोगों के लिए यह आसान होता है कि वे केवल नियमों का पालन सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करें, जिससे असली नेतृत्व कहीं पीछे छूट जाता है।
नेतृत्व से मेरा क्या तात्पर्य है? कल्पना कीजिए कि किसी जंगल में 200 लोगों का एक समूह है। वहां पहले से एक पगडंडी है, जिस पर सभी लोग चल रहे हैं। निरीक्षक की भूमिका निभाने वाले लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि सब उसी पगडंडी पर चलें। यह आसान है, लेकिन पगडंडी पर चलने वाले लोग केवल उसके आसपास के कुछ पेड़ों को ही देख पाते हैं। वहीं, अनगिनत पेड़, फल-फूल और अन्य जीव-जंतु, जो जंगल के विभिन्न हिस्सों में हैं, उन्हें देखने का मौका पगडंडी पर चलने वालों को नहीं मिलता।
इसी समूह को एक लीडर कह सकता है, "मैं तुम्हारे आसपास हूँ। यह जंगल तुम्हारे सामने है। जो लोग इसे एक्सप्लोर करना चाहते हैं, वे करें। जब भी मेरी जरूरत पड़े, मुझे आवाज दें। कुछ नई चीजें खोजें, कुछ नए पेड़, फल, या किसी नए जीव के बारे में बताएं।" यह निर्णय खतरों से भरा होता है। जंगल में फैले 200 लोगों को फिर से संगठित करना आसान नहीं होता, लेकिन नया काम हमेशा लीक से हटकर होता है, जिसमें जोखिम शामिल होता है। एक लीडर यह जोखिम उठाता है और इस प्रक्रिया से मिलने वाले सभी फायदों को अपनी टीम के साथ बाँटता है।
अगर हम अपने शिक्षा तंत्र में देखें तो एक बना-बनाया पगडंडी है, जिस पर हजारों लोग सुरक्षित रूप से चलते आए हैं और आगे भी चलते रहेंगे। लेकिन इस व्यवस्था में कई ऐसे पहलू छूट जाते हैं जिनकी खोज नहीं की गई है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में नवाचार की इतनी कमी है। नवाचार के लिए नेतृत्व देने वाले लोगों में हिम्मत जरूरी है, जो हमारी शिक्षा व्यवस्था में दुर्लभ है।
नवाचार के लिए जरूरी है कि हर शिक्षक समूह के साथ काम करने वाला व्यक्ति, जिसे हम प्रिंसिपल या प्रधानाध्यापक के नाम से जानते हैं, यह कहने की हिम्मत रखे: “तुम कुछ नया खोजो। जो होगा, देखा जाएगा, मैं हूँ ना!”
एक अनौपचारिक बातचीत में, मैंने एक बार पाण्डे सर से पूछा था कि आप में इतनी हिम्मत कहाँ से आती है। उन्होंने अपने एक प्रिंसिपल का उदाहरण देते हुए बताया। वे एक इवनिंग स्कूल में काम कर रहे थे, और शाम के 5 बजे के आसपास एक शिक्षा अधिकारी स्कूल विजिट पर आए। उन्होंने प्रिंसिपल से रजिस्टर मंगवाया और शिक्षकों की उपस्थिति चेक करने लगे। प्रिंसिपल ने विनम्रता से उन्हें रोका और कहा कि यह उनका काम है। कुछ शिक्षकों के नाम पूछने पर, प्रिंसिपल ने बताया कि उन्हें किसी काम से बाहर भेजा गया है और वे सभी मेहनती और समर्पित शिक्षक हैं। पाण्डे सर ने बताया कि उस दिन के बाद से उन्होंने उन शिक्षकों में प्रिंसिपल के प्रति ऐसा समर्पण देखा, जिसे उन्होंने कभी नहीं देखा था, और उन्होंने ठान लिया कि मौका मिलने पर वह भी अपने टीम के साथ इसी तरह खड़े रहेंगे।
उनकी टीम के सदस्यों का उनके प्रति इस अपार स्नेह का यही कारण है कि उन्होंने हमेशा, खासकर मुश्किल हालातों में, अपने टीम के सदस्यों का साथ दिया, उन पर विश्वास किया और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कुल मिलाकर, यही तो एक लीडर का काम होता है। लेकिन हमारे आसपास ऐसे लीडर्स की संख्या कम है। लेकिन जिस तरह उन्होंने अपने प्रिंसिपल से सीख कर इसे अपने नेतृत्व कौशल में शामिल किया, मुझे लगता है कि आने वाले समय में इस व्यवस्था में ऐसे और लीडर्स मिलेंगे। मैं हमेशा कहता हूँ कि उन्होंने एक पीढ़ी को नेतृत्व के लिए प्रेरित किया है।
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