साहित्य के आईने में हिंदी की खूबसूरती
कल से देश भर में हिंदी पखवाड़ा मनाया जा रहा है। हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी को लेकर कई तरह के विवाद सामने आते रहे हैं और ये विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि संविधान सभा में भी इस पर जमकर बहस हुई थी। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यह विवाद चलता ही रहता है। मेरे ख्याल में हर भाषा की अपनी खूबसूरती होती है, और कई बार भाषा की खूबसूरती उसे समृद्ध बनाने वाले साहित्य में छिपी होती है। इस मामले में हिंदी एक बेहद खूबसूरत भाषा है।
मैंने कालिदास के संदर्भ में सुना था कि जो लोग संस्कृत नहीं जानते और उनकी रचनाओं जैसे अभिज्ञान शाकुंतलम्, कादंबरी इत्यादि को नहीं पढ़ सकते, उनका जीवन अधूरा है। इसी प्रकार, प्रेमचंद को पढ़े बिना जीवन कैसा हो सकता है? चाहे व्यक्ति का जीवन कितना भी संपूर्ण हो, अगर उसने प्रेमचंद को नहीं पढ़ा है, तो उसके जीवन में कुछ न कुछ कमी अवश्य है।
मैं इतिहास का छात्र रहा हूँ, परंतु साहित्य में भी मेरी गहरी रुचि रही है। अब तो मुझे ऐसा लगने लगा है कि बिना साहित्य जाने कोई इंसान कैसे बन सकता है? खासकर, एक शिक्षक बिना साहित्य के ज्ञान के कुछ पढ़ा भी कैसे सकता है? इतिहास किसी संदर्भ को समझने की व्यापक दृष्टि देता है, जबकि साहित्य उस संदर्भ को जीवन में उतारता है। मैं अक्सर उदाहरण देता हूँ कि इतिहास सैटलाइट व्यू है, तो साहित्य स्ट्रीट व्यू।
आजकल, टेक्नोलॉजी पर बोलते हुए भी साहित्य से खूबसूरत उदाहरण मिलते हैं, जो अन्यत्र शायद संभव न हो। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का हमारे जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव और आने वाले बदलाव पर बात करते हुए मैं अक्सर राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक 'वोल्गा से गंगा तक' का उल्लेख करता हूँ। इसमें उन्होंने लिखा है कि तांबे का इस्तेमाल करने वाले लोग पत्थर के औजारों का प्रयोग करने वाली पीढ़ी से लेनदेन बंद कर देते हैं। यह उदाहरण तकनीकी बदलाव को समझने में बेहद मददगार साबित हुआ था।
पिछले कुछ वर्षों में मैंने हिंदी साहित्य के तमाम बड़े विद्वानों जैसे धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, यशपाल, प्रेमचंद, मनोहर श्याम जोशी, आचार्य चतुरसेन, विनोद कुमार शुक्ल और अन्य कई लेखकों की रचनाएँ पढ़ी हैं। इन लेखकों को पढ़ते हुए मैंने महसूस किया कि हिंदी एक समृद्ध और खूबसूरत भाषा है, और इसका साहित्य इसकी खूबसूरती को और भी निखारता है। इन दिनों मैं हरिशंकर परसाई की संपूर्ण रचनावली पढ़ रहा हूँ। कहा जाता है कि आजादी से पहले का भारत समझने के लिए प्रेमचंद, और आजादी के बाद का भारत समझने के लिए हरिशंकर परसाई उपयुक्त हैं।
स्कूलों में भाषा की कक्षाओं में जब भी जाता हूँ, तो शिक्षकों और बच्चों से यह बात साझा करता हूँ कि हम ऐसा क्या कर सकते हैं कि बच्चों में साहित्य के प्रति प्रेम पैदा हो। अन्य विषय जैसे गणित, विज्ञान, और सामाजिक विज्ञान हमें जीवन यापन के कौशल सिखाते हैं, लेकिन साहित्य हमें जीवन जीना सिखाता है। साहित्य पढ़ते हुए मैंने महसूस किया है कि यह विज्ञान और सामाजिक विज्ञान से भी अधिक वैज्ञानिक चेतना का विकास कर सकता है।
हिंदी पखवाड़े के इस अवसर पर मैंने इस लेख में हिंदी से अपने लगाव पर चर्चा की है। हिंदी साहित्य का आनंद ले रहा हूँ और भले ही हिंदी लिखते समय कुछ गलतियाँ करता हूँ या कुछ शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पाता हूँ, फिर भी हिंदी से मेरा लगाव अटूट है।
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