गुरु बनाम शिक्षक: गुरु पूर्णिमा पर एक विश्लेषण

गुरु बनाम शिक्षक: गुरु पूर्णिमा पर एक विश्लेषण

Posted on: Sun, 07/21/2024 - 11:22 By: admin
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                                                           गुरु बनाम शिक्षक: गुरु पूर्णिमा पर एक विश्लेषण

 

 

आज पूरे देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है! भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है जहाँ आधुनिक स्कूल व्यवस्था से अलग पढ़ने और पढ़ाने की एक परंपरा रही है। और इसी वजह से विद्वानों की भी एक परंपरा रही है। आधुनिक स्कूल व्यवस्था में पढ़ाने के काम को शिक्षक अंजाम देते हैं और यह अच्छी बात है कि उनके लिए एक अलग दिवस, शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 

शिक्षक गुरु हो सकते हैं, मेरे ख्याल से एक शिक्षक अपनी यात्रा के अंतिम शिखर को जब छूता है तो वह गुरु कहलाता है। और शायद ऐसे ही गुरुओं के लिए कबीर ने लिखा है!

 

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।  

बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।।

 

गुरु की उपस्थिति में, गुरु के आशीर्वाद से अपने जीवन में रूपांतरण महसूस करने वाले व्यक्ति गुरु की महिमा और कृपा को जानते हैं। जीवन की कई ऐसी उपलब्धियां हैं जो शायद गुरु की कृपा के बिना संभव नहीं हो। यहाँ मैं बड़ी नौकरी, बहुत सारा धन-दौलत, इसकी बात नहीं करता बल्कि एक ऐसा दृष्टिकोण जो जीवन में शांति लाता है, तृप्ति देता है, चेतना को विस्तार देता है, अपने आस-पास की परिस्थियों से सामंजस्य देता है, कृतज्ञता के भाव से भरता है, की बात कर रहा हूँ।

 

गुरु और शिष्य के इस रिश्ते में शिष्य, गुरु के प्रति पूर्णत: समर्पित होता है। लोकतांत्रिक ढाँचे में पले-बढ़े होने के बावजूद जैसे ही शिष्यत्व का भाव अंदर आता है तो शिष्य अपना स्थान गुरु के चरणों में ही देखता है। इस रिश्ते को कई बार डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क से समझना मुश्किल होता है। डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क का बराबरी पर बहुत ज़ोर रहता है जब कि गुरु-शिष्य की परंपरा में बराबरी हो नहीं सकती। लेकिन यहाँ गैर बराबरी थोपा हुआ नहीं होता है, बल्कि शिष्य इस गैर बराबरी को चुनता है।

 

गुरु के संदर्भ में जो बातें स्वीकार्य हैं, उन्हीं बातों को जब शिक्षक अपने हितार्थ साधने की कोशिश करता है, तो वहाँ दिक्कतें आनी शुरू होती हैं। अपने विद्यार्थियों से शिक्षक की यह अपेक्षा कि वह उन्हें गुरु की तरह सम्मान दे; अनुचित है। गुरु नौकरी नहीं करते हैं, गुरु का संबंध अपने शिष्य से कुछ वर्षों के लिए या कुछ घंटों के लिए नहीं होता है। गुरु जीवन भर के लिए होता है, उनका मार्गदर्शन अपने शिष्य को जीवन भर मिलता है। गुरु सिर्फ़ पढ़ाते वक्त गुरु नहीं होते बल्कि वे इसे जीते हैं। एक शिष्य अपने गुरु के जीवन के अलग-अलग पहलुओं से सीखता है, वह उनके जीवन से सीखता है।

 

शिक्षक होना एक पेशा है, कोई कुछ घंटों के लिए शिक्षक हो सकता है, या कुछ वर्षों के लिए। शिक्षक होना आसान है। पढ़ाना एक कला है, और जिसने भी इसका विकास किया है, वह शिक्षक है। हर शिक्षक के सामने गुरु होने की संभावना है, लेकिन हर शिक्षक गुरु नहीं है। गुरु होना कठिन है, इसलिए गुरु पाने की संभावना भी बहुत कम होती है। आपके आस-पास अगर ऐसे लोग हों, जिनका जीवन आपको प्रभावित करता है, जिनको देखकर अनायास ही उनका चरण छूने का भाव आता है, तो आप भाग्यशाली हैं, शायद आप गुरु के सानिध्य में हैं!

 

भारतीय जनमानस की गुरुओं के प्रति इस असीम श्रद्धा का कुछ तथाकथित बाबाओं ने बहुत दुरुपयोग किया है। जहाँ गुरु पूर्णिमा, गुरुओं को याद करने का दिन है, वहीं लोगों को ऐसे गुरुओं से सावधान भी रहना चाहिए जिनका जीवन उनके गुरु होने का प्रमाण नहीं देता है। और हम सब जानते हैं, हमारे आस-पास गुरु कम हैं, लेकिन गुरु होने का दावा करने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है।