नीट परीक्षा में धांधली: मूलभूत सुधारों की आवश्यकता

नीट परीक्षा में धांधली: मूलभूत सुधारों की आवश्यकता

Posted on: Sun, 06/16/2024 - 12:14 By: admin

 

नीट परीक्षा में धांधली: मूलभूत सुधारों की आवश्यकता

 

नीट परीक्षा में हुई धांधली ने एक बार फिर समाज के सामने पतन की ओर अग्रसर शिक्षा व्यवस्था की असलियत को लाकर रख दिया है।

 

हालांकि सरकारी भर्ती परीक्षाओं और पेपर लीक के मामले लगातार पिछले कुछ वर्षों से सुर्खियों में बने रहे हैं, लेकिन अमूमन इन भर्तियों में गरीब घरों से आने वाले लोग शामिल होते हैं, तो कभी इनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। आईआईटी, जेईई और सिविल सर्विसेज जैसी कुछ परीक्षाएं, जिनमें मध्यवर्गीय समाज की खास दिलचस्पी होती है, अभी तक सुरक्षित मानी जाती थीं। लेकिन अनियमितता इतनी बढ़ गई है कि अंततः यह नीट की परीक्षा को भी प्रभावित करने लगी।

 

पिछले करीब तीन दशकों से, जहां एक ओर विकास के नाम पर अन्य मूलभूत संरचनाओं के विस्तार एवं उन्नतिकरण को बढ़ावा दिया गया, वहीं दूसरी ओर शिक्षा और स्वास्थ्य को लगातार दरकिनार किया गया। एक ओर जहां सड़कें चौड़ी होती गईं, बिजली की व्यवस्था बेहतर हुई, रेल मार्ग और वायु मार्ग का विस्तार हुआ, वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूल और अस्पताल की इमारतें खंडहर में बदलती गईं।

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मध्यवर्गीय समाज शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को खरीद पाने की अपनी हैसियत का लगातार दिखावा करता रहा। हालांकि अब वह मानते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर हो रहे खर्च उनकी पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं और बहुत मुश्किल से वे इन बढ़ते हुए खर्चों को वहन कर पा रहे हैं। सरकारी स्कूल और अस्पताल की बिगड़ती हालत पर उन्होंने कभी आवाज नहीं उठाई। चमचमाती बिल्डिंग वाले निजी स्कूलों और अस्पतालों को उन्होंने चुना। लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में जब उन्हें लगा कि स्कूल बच्चों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दे पा रहा है, तो उन्हें सेवा देने के लिए देशभर में कोचिंग इंडस्ट्री का उदय हो गया। स्कूल के साथ-साथ अब अधिकतर मध्यवर्गीय अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग संस्थानों में भी भेजने लगे।

 

उन्हें यकीन था कि स्कूल और कोचिंग संस्थान मिलकर उनके बच्चों को मनचाहे संस्थानों में दाखिला दिलवा देंगे। लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। अब एक नए समूह का उदय हुआ जो तमाम स्टेकहोल्डर के साथ मिलकर सेटिंग करवाते हैं, और इसी समूह के कारनामे का परिणाम है कि अक्सर हमें अलग-अलग परीक्षाओं का पेपर लीक होने की खबर मिलती है। इस समूह ने उस सामंजस्य को खत्म कर दिया, जिसमें यह माना जाता था कि अगर बच्चे प्रतिभाशाली हैं, अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं, और उन्हें कोचिंग की सुविधा मिली हुई है, तो वे प्रतियोगी परीक्षाओं को पास कर बेहतर संस्थानों में दाखिला पा लेंगे। सेटिंग करवाने वाले समूह तक जिनकी पहुंच होगी, अधिकतर मामलों में वही बच्चे पास हो पाएंगे और इसमें उनकी प्रतिभा का कोई लेना-देना नहीं होगा।

 

अगर हम हर दिन 35 किलोमीटर हाईवे का निर्माण कर रहे हैं, हमने 34 के आसपास अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बना लिए हैं और इन सब में लगातार विस्तार हो रहा है। बुलेट ट्रेन के लिए कहा जा रहा है कि कुछ सालों में भारत में इसका परिचालन शुरू हो जाएगा। तो क्यों न मेडिकल की सीटें बढ़ाकर हम 1 लाख से 10 लाख कर दें? आज नीट की परीक्षा में 23 लाख बच्चे एक लाख सीट के लिए परीक्षा देते हैं, और इसमें फेल होने की संभावना पास होने की संभावना से 23 गुना अधिक है। हम 14 से 18 वर्ष के बच्चों की जिंदगी को लगातार बोझिल और उदासीन बनाते जा रहे हैं और कई बार यह बहुत ही दुखद घटनाओं में परिवर्तित हो जाता है। बच्चों पर इन अप्रत्याशित दबावों के कारण कई बार वे आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था, जो कि मूलतः परीक्षा व्यवस्था है, बच्चों से उनकी जिंदगी के सबसे अहम वर्ष छीन लेती है।

 

क्या समाधान है इसका?

 

मीडिया और सरकार बताएगी कि कड़े कानून बनाए जाएंगे, किसी भी तरह की अनियमितता को रोका जाएगा, दोषियों को कड़ी सजा दी जाएगी। ये तुरंत उठाए जाने वाले कुछ कदम जरूर हो सकते हैं, लेकिन यह कोई समाधान नहीं है। इसका समाधान छुपा है एक रॉबस्ट स्कूली व्यवस्था में। यूरोप और अमेरिका की तरह हमें एक बेहतरीन सरकारी स्कूल व्यवस्था का निर्माण करना होगा और स्कूल की पढ़ाई-लिखाई एवं वहां मिलने वाली सुविधाओं को इस स्तर पर पहुंचाना होगा कि स्कूल के अतिरिक्त बच्चों को किसी और तरह की सहायता की आवश्यकता न रहे।

 

कौन इंजीनियर बनेगा और कौन डॉक्टर, यह कोई एक परीक्षा तय न करे। 12 साल तक स्कूल में बच्चों के तमाम कार्यों की गहन प्रोफाइलिंग की जाए और इस तरह जो डाटा हमारे सामने आएगा उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से एनालाइज किया जाए, जिससे हमें समझ में आएगा कि किन बच्चों में किस पेशे में जाने की वास्तविक अभिरुचि है। जाहिर सी बात है कि इसके लिए हमें अपनी स्कूली व्यवस्था में व्यापक निवेश की जरूरत है। तो अगर सड़क और हवाई अड्डा देश के विकास के सूचक हैं, तो क्यों नहीं स्कूल और अस्पताल भी? बिना स्कूलों में व्यापक निवेश के हम शिक्षा से जुड़ी किसी भी समस्या का सिर्फ मरहम पट्टी कर सकते हैं, उसका समाधान नहीं निकाल सकते। समाधान एक बेहतरीन स्कूली शिक्षा में ही छुपा हुआ है।