सरकारी कर्मचारियों का एंडूरेंस टेस्ट

 सरकारी कर्मचारियों का एंडूरेंस टेस्ट

Posted on: Sun, 05/26/2024 - 11:45 By: admin

 

                                      सरकारी कर्मचारियों का एंडूरेंस टेस्ट

 

भारत में करीब ढाई करोड़ लोग केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकार के अधीन नौकरी करते हैं, जिन्हें आमतौर पर हम सरकारी कर्मचारी के नाम से जानते हैं। एक आम धारणा है कि ज्यादातर सरकारी कर्मचारी आराम पसंद होते हैं, एक बार नौकरी में आ जाने के बाद उनकी नौकरी पक्की होती है, इत्यादि।

 

बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे तंत्र में इन सरकारी कर्मचारियों के कार्य की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कुछ अंतराल पर लगातार उनकी परीक्षा ली जाती है। और परीक्षा भी ऐसी, जो खेल-खेल में हो जाए, जहाँ वे परीक्षा देते भी हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है। इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों की शारीरिक, मानसिक क्षमता, नेतृत्व कौशल इत्यादि को परखना वाकई एक कठिन काम है। कौन सी संस्था ऐसा काम करती है?

 

निस्संदेह, हमारी सबसे शानदार संवैधानिक संस्था, चुनाव आयोग! विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में पिछले 75 साल से लोकतंत्र की अनवरत धारा बहाते रहने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के कंधे पर है। और लोकतंत्र की इस शानदार गाथा का श्रेय अगर किसी संस्था को सबसे अधिक जाना चाहिए तो वह चुनाव आयोग है।

 

लेकिन फिर सवाल उठता है कि चुनाव आयोग को तो ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है कि वह इतनी बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों की गुणवत्ता की परीक्षा समय-समय पर आयोजित करवाता रहे। लेकिन चुनाव आयोग यह जिम्मेदारी अघोषित रूप से निभाता रहता है| कर्मचारियों की उम्र चाहे 21 वर्ष हो या 60 वर्ष, इस कठिन परीक्षा से बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों को हर एक-डेढ़ साल पर गुजरना पड़ता है।

 

कैसी होती है यह परीक्षा? शारीरिक क्षमता की परीक्षा की अगर हम बात करें, तो हम ज्यादा से ज्यादा यह सोच सकते हैं कि थोड़ा दौड़ा कर देखा जाएगा, थोड़ा बहुत कूद-फान करवाया जाएगा, एक ड्रिल जैसा, जैसा कि हम पुलिस और मिलिट्री में देखते हैं। मानसिक और नेतृत्व क्षमता को परखने के लिए हम अक्सर कुछ पेन-पेपर टेस्ट आयोजित कर लेते हैं, इत्यादि।

 

लेकिन चुनाव आयोग यह टेस्ट एकदम अलग हटकर करवाता है । टेस्ट देने वाले को यह पता भी नहीं चलता है। यह टेस्ट है, चुनाव की प्रक्रिया जिसे अधिकतर सरकारी कर्मचारियों को निभाना होता है। इसको चरणबद्ध तरीके से समझने पर हम इस टेस्ट की खूबसूरती को समझ पाएंगे और शायद दुनिया भर में एंडूरेंस टेस्ट का ऐसा कोई मिसाल नहीं होगा।

 

मान लेते हैं कि किसी जगह 10 जून को चुनाव होना है। किशोर जी (काल्पनिक नाम) जिनकी उम्र 57 वर्ष है, अपने घर से सुबह 8:00 बजे निकलते हैं 9 तारीख को, और 10:30 बजे चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रशिक्षण केंद्र पर पहुंचते हैं। 10:30 से शाम के 6:00 बजे तक वे वहां लगाए हुए एक टेंट में अपने अन्य साथियों के साथ चुनाव से संबंधित मशीनों को प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। शाम को करीब 6:00 बजे मशीन प्राप्त करने के बाद वे अपने साथियों के साथ चुनाव आयोग द्वारा प्रदान की गई वाहनों, अक्सर बसों में और कई बार नॉन एसी बसों में, निर्धारित मतदान केंद्र पर पहुंचते हैं। मतदान केंद्र पर पहुंचते-पहुंचते रात हो जाती हैं। एक-डेढ़ घंटे लेकर वे वहां आधारभूत व्यवस्था जैसे कि मेज और कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज, इन सबको व्यवस्थित करते हैं। मेज और कुर्सी इतने कमजोर होते हैं कि उन्हें इधर से उधर करने में कई बार उनके टूट जाने का भी खतरा रहता है। यह सब करते-करते रात के करीब 10:00 बज जाते हैं। मतदान कक्ष में सामान को व्यवस्थित करने के बाद उनकी नजर कोने में पड़े एक मैले-कुचैले गद्दे, एक बेडशीट और एक तकिये पर पर  जाती है। आज रात उन्हें यहीं सोना (जागना) है। वे किसी तरह 47 डिग्री तापमान वाले शहर में फर्श पर गद्दा बिछाकर लेट जाते हैं। ऊपर लगा हुआ पंखा इस रफ्तार से घूम रहा है जैसे वह संदेह की हालत में हो कि अगला चक्कर पूरा करना है या नहीं। लेकिन किशोर जी निश्चिंत हैं, उन्हें रात में यहीं रहना है। रात है फिर भी हवा गर्म है और पीने की पानी भी गर्म है। किसी तरह करवट बदलते हैं, थोड़ी देर बाद वे पाते हैं कि चीटियों की कई धार उनके बिस्तर से गुजरने लगी हैं। वे उठकर बैठ जाते हैं, और ऐसे ही करवट बदलते-बदलते सुबह 3:00 बजे उठ जाते हैं, नींद से नहीं, उस बिस्तर से।

 

ऐसा मालूम होता है कि चुनाव की इस प्रक्रिया में यह एक आवश्यक शर्त है कि कर्मचारी पिछली रात सोए न हों। कई बार अपराधियों से राज उगलवाने के लिए पुलिस उन्हें सोने नहीं देती है, ऐसा कई फिल्मों में दिखाया गया है।

 

सुबह 4:00 बजे से मतदान की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, और 7:00 बजे से मतदान शुरू हो जाता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के ब्रेक की व्यवस्था नहीं है, न लंच के लिए कोई ब्रेक, न चाय के लिए। फिर भी बीच-बीच में आपसी सहोयोग से कर्मचारी थोड़ा-बहुत  खाना-पीना कर  पाते हैं | सुबह 7:00 से शाम के करीब 8:00 बजे तक किशोर जी अपनी कलम चलाते रहते हैं। कुछ नहीं तो कम से कम हजार बार तो उन्होंने उस मतदान केंद्र का नाम ही कई अलग-अलग कागजों पर लिखा होगा। अगर कुछ बच्चे इस बात से हतोत्साहित हो जाते हैं कि गलती करने पर उनके टीचर उन्हें 100 बार लिखने के लिए कहते हैं, तो उन्हें यह जानकर शायद थोड़ी राहत होगी कि उनके टीचर को हजार बार लिखने के लिए भी कुछ काम मिलता है। चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो जाने के बाद, वे चुनाव की सामग्री लेकर रात को करीब 9:00 बजे एक बस में सवार हो जाते हैं, और एक नॉन एसी बस में (कुछ लोगों को एसी बस में जाने की सुविधा भी मिल जाती है, यह एक भाग्य की बात है) करीब 2 घंटे तक सफर करने के बाद वे इन चुनावी सामग्रियों को जमा करने के लिए बनाए गए केंद्र पर पहुंचते हैं। और वहां करीब 3 घंटे इंतजार करने के बाद, रात को करीब 2:00 बजे चुनाव सामग्री निर्धारित जगह पर जमा करवा पाते हैं। ऑफिसर उन्हें इस हिदायत के साथ जाने की इजाजत देते हैं कि “आपको कभी भी बुलाया जा सकता है।” करीब 1 घंटे इंतजार करने के बाद जैसे-तैसे उन्हें एक कैब मिलती है, जो सुबह 5:00 बजे उन्हें उनके घर पहुंचा देती है। यह प्रक्रिया 9 तारीख को सुबह 8:00 बजे शुरू हुई थी और 11 तारीख को सुबह 5:00 बजे खत्म हो रही है। इस बीच करीब-करीब 45 घंटे, बिना सोए, बिना पर्याप्त खाना खाए और बिना आराम किए, पूरी मुस्तैदी के साथ वे अपना काम करते हैं।

 

आमतौर पर एक दिन में 8 घंटे काम के लिए निर्धारित किए गए हैं, जिसमें कई बार आधे से 1 घंटे का लंच ब्रेक भी होता है। लेकिन क्या आपने कहीं सुना है कि 45 घंटे काम की अवधि हो सकती है? निश्चित रूप से यह काम नहीं है, एक टेस्ट है, और बड़ी खुशी की बात है कि अधिकतर कर्मचारी, या यूं कहें कि सभी कर्मचारी, इसमें फ्लाइंग कलर के साथ पास होते हैं। उनमें से कई लोग इस एहसास के साथ वापस आते हैं कि लोकतंत्र की अनवरत धारा को बहते रहने को सुनिश्चित करने में उन्होंने एक शानदार भूमिका निभाई है।

 

चुनाव आयोग, जो इस देश की सबसे खूबसूरत लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने की संस्था है, जिसके केंद्र में मानवीय मूल्य और मानवीय गरिमा का विषय है, उसके बारे में यह तो सोचा ही नहीं जा सकता कि 45 घंटे की यह लंबी कार्य अवधि, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि कर्मचारी सोएं ना, अमानवीय है, और मानवीय गरिमा के खिलाफ है। यह निश्चित रूप से एक अघोषित टेस्ट है, जिसके जरिए हर कर्मचारी को प्रत्येक एक-डेढ़ साल में गुजरना होता है। शायद दुनिया में शारीरिक, मानसिक और नेतृत्व क्षमता के आकलन के लिए इससे बेहतरीन टेस्ट डिजाइन नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग न सिर्फ इस देश के खूबसूरत लोकतंत्र को बनाए रखने की जिम्मेदारी संभालता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि राज्य के कर्मचारी कैसे अपनी अधिकतम क्षमता के साथ राज्य के कार्यों में योगदान दें। अंत में कर्मचारियों को एक ड्यूटी सर्टिफिकेट भी मिलता  है, जिसे फिटनेस सर्टिफिकेट कहना ज्यादा उचित होगा।