भाषाई आयोजन और उत्सव: सीखने एवं रुचि जागृत करने का एक  अवसर

भाषाई आयोजन और उत्सव: सीखने एवं रुचि जागृत करने का एक  अवसर

Posted on: Sun, 03/03/2024 - 06:13 By: admin
Pradeep Pandey

 

 

भाषाई आयोजन और उत्सव: सीखने एवं रुचि जागृत करने का एक  अवसर

 

प्रदीप कुमार पाण्डेय

 

संस्कृत ज्ञान विज्ञान की जननीभाषा है। जननी भाषा का तात्पर्य यह है कि इसमें वे सभी विषय, संप्रत्यय, तत्व विद्यमान हैं, जिनका प्रारंभिक वर्णन अन्य कहीं और न प्राप्त होकर इसी भाषा में प्राप्त होते हैं। जिसकी सत्यापनीयता विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद करता है। इस संदर्भ में वेदव्यास जी महाभारत में लिखते हैं कि–

धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।

यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्॥

(महाभारत, आदिपर्व 62 । 53)

वेदों की परंपरा ज्ञानपरक से लोकपरक की ओर प्रवृत्त दिखाई देती है। यद्यपि इसमें विद्यमान विषयों को और भी सरल रूप में आरण्यक और उससे भी सहज रूप में उपनिषदों में व्याख्यायित किया गया है। तब (उपनिषद कालीन परंपरा) से अब तक के (विद्यालयीय शिक्षण) व्यवस्था में संस्कृत के पठन–पाठन के अनेक स्वरूप दिखाई देते हैं। विद्यालयीय स्तर पर संस्कृत भाषा के अध्ययन अध्यापन की बात करें तो अलग–अलग राज्यों में यह अलग–अलग रूपों में दिखाई पड़ता है। कहीं–कहीं संस्कृत की स्थिति देखकर आपको प्रसन्नता होगी तो कहीं इसकी स्थिति देखकर असंतोष भी होगा। खैर, अभी इसके कारणों पर न जाकर एक प्रसन्नतापूर्ण और सकारात्मक दृष्टि आपके बीच रख सकूं, इसके लिए ही यह लेख लिख रहा हूं। दिल्ली सरकार के अंतर्गत पढ़ने वाले छात्रों के अनुभवों को आपसे सांझा कर रहा हूं, जो यह बताते है कि भाषाई आयोजन और उत्सव विद्यालय में किसी भाषा को सीखने के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है।

विद्यालयों में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर अध्ययन के लिए प्रायः कई भाषाएं विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं। जिसमें छात्रों एवं अभिभावकों द्वारा संस्कृत एक विशिष्ट एवं मुख्य विकल्प के रूप में देखी जाती है। छात्रों को यह एक और भाषा सीखने हेतु अवसर के रूप में मिलता हैं। किंतु सीखने सिखाने की इस प्रक्रिया में एक भाषा कब विषय रूप में परिवर्तित हो जाती है, इससे प्रायः सभी परिचित हैं। संस्कृत ही नहीं अपितु अन्य भाषाएं भी विषय के रूप में ही प्रायः पढ़ाई जाने लगी हैं। यही से शुरुआत होती है की कोई भाषा, विषय कैसे बन जाती है। अगर संस्कृत या अन्य किसी भी भाषा के बारे के हम विचार करें तो निष्कर्ष यही आएगा कि विद्यालय में भाषा, भाषा रूप में पढ़ाई जाए। वस्तुतः छात्रों को देखें तो उन्हें सबसे ज्यादा आनंद इस बात से प्राप्त होता है कि कोई कक्षा उनके लिए कितनी आनंददायक रही। इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि किस विषय का अध्ययन कितनी देर तक उन्होंने किया और कौन सा विषय किस लिए पढ़ाया जा रहा है। यदि कोई भी भाषा और विषय कुछ इस प्रकार से पढ़ाई जाए, जो उनके लिए आनंद का विषय बने तो वे निश्चित रूप से इसमें भाग लेते हैं। खैर, परिणाम सर्वत्र एक जैसा नहीं दिखता है। लेकिन प्रायः ऐसा देखने में आता है कि कई भाषा या विषय कुछ इस तरह से छात्रों के लिए परोसे जाते हैं, जो सीखने हेतु परिवेश निर्मित न करके अपितु छात्रों के मन में अरुचि उत्पन्न कर देते हैं। छात्रों पर निश्चित रूप से इसका प्रभाव पड़ता है, जब छात्र लंबे समय तक रोचक कक्षाएं नहीं पाते हैं तो कहीं ना कहीं वह इससे दूरी बनाने लगते हैं। इन्हीं न्यूनताओं के कारण छात्र यह कहते हैं कि मुझे वह विषय पसंद नहीं है या मुझे उस भाषा में रुचि नहीं है। कमाल की बात यह है कि किसी भी विषय को यदि अच्छे से पढ़ाया जाए तो उसके बहुत सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में भाषाई परिवेश निर्माण हेतु भाषाई आयोजन और उत्सव बहुत महत्वपूर्ण हैं। किसी भी भाषा में यदि हम समय-समय पर कोई न कोई आयोजन करते रहते हैं तो छात्रों पर निश्चित रूप से इसका प्रभाव पड़ता है। कई छात्र जो अंतर्मुखी होते हैं, वे भी अभिव्यक्ति परक होने लगते हैं। कई ऐसे छात्र जिनकी किसी भाषा या विषय में रुचि प्रायः स्पष्ट नही होती है, वहां ऐसे कार्यक्रमों से उनकी रुचि में बदलाव दिखता है। वे अब इसे सकारात्मक रूप में देखने लगते हैं। कई छात्र भाषा के लालित्य से दूर रह जाते हैं, ऐसे आयोजनों के बाद वे बताते हैं कि अब उन्हें वह भाषा कैसी लगती है? और क्यों ऐसे आयोजन जब ना तब होते रहने चाहिएं। ऐसे ही कई आयोजनों के बाद मैंने छात्रों से बातचीत की है जिसमें सभी छात्रों ने उन्मुक्त कंठ से ऐसे आयोजनों की प्रशंसा करते हुए यह बताया कि अब वह कितने प्रसन्न और आत्मविश्वास से परिपूर्ण हैं। इससे पहले इस विषय में उनकी कोई खास रुचि नहीं होती थी लेकिन अब उन्हें यह विषय खासा पसंद आने लगा है। पहले वे इस विषय की गंभीरता से परिचित नहीं थे, नहीं पता था कि कोई भाषा और उसका साहित्य कितना विशाल है या यूं कहें कि वे छात्र उस भाषा के भाषिकरस से वंचित थे। अब ऐसे उत्सवों के बाद छात्र जब बात करते हैं और बताते हैं कि इस दौरान उनके अनुभव में किस प्रकार का परिवर्तन आया तो निश्चित रूप से हर्षप्रद लगता है। विद्यालयों में भाषाई आयोजन का परिवेश निर्माण करना बहुत ही आवश्यक है। यह सिर्फ प्रारंभिक स्तर पर ही नहीं, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर भी उतने ही आवश्यक हैं। हां! प्रारंभिक स्तर पर सबसे अधिक आवश्यक है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रारंभिक आयु में छात्रों के अंदर भाषाएं सीखने की क्षमता सबसे अधिक होती है। इस दौरान वे कई सारी भाषाओं में अपनी विशेषता प्राप्त कर सकते हैं। यह वह दौर होता है जब बच्चे भाषा में अनेक प्रयोग करते हैं। वे नए शब्दों को सीखते हैं, दोहराते हैं, सुनते हैं, गुनगुनाते हैं, बोलते हैं, लिखते हैं, बताते हैं। इस तरह के कई सारे प्रयोग वह दिन प्रतिदिन सुनने वाले नए शब्दों के साथ करते हैं।

 

कक्षा 6 में बहुतायत छात्र यह विकल्प चुनते हैं किंतु सही रूप में पठन–पाठन के अभाव में अधिकांश छात्र इस भाषा से अपरिचित रह जाते हैं। जिसके कारण छात्रों के लिए यह भाषा, भाषा रूप में न होकर विषय के रूप में परिवर्तित हो जाती है। अब इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं जैसे– विद्यालय में भाषिक परिवेश का अभाव, प्रशासन के द्वारा उचित महत्त्व न दिया जाना, कालांश आवंटन में न्यूनता, वार्षिक परीक्षा के परिणामपत्र में संस्कृत के अंकों की गणना न किया जाना, शिक्षकों की संभाषणात्मक दक्षता और अभिभावकों का सहयोग आदि समस्याएं देखने को मिलती हैं। ऐसे में संस्कृत भाषा एक विषय के रूप में परिवर्तित हो जाती है। खैर, परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, पर संस्कृत भाषा अपनी विशेषताओं के कारण सदैव प्रासंगिक बनी रही है।

 

ऐसी अनेक समस्याओं के बाद भी मैंने अनुभव किया कि जब किसी भी भाषा को केंद्र बनाकर विद्यालय में तरह–तरह के उत्सव और आयोजन किए जाते हैं तो इसका सीधा प्रभाव इस भाषा में छात्रों के रुचि पर पड़ता है। छात्र जब स्वयं ऐसे कार्यक्रमों में सहभागिता करते हैं तब वे इससे दूर न जाकर, बल्कि सहज रूप में इसे अपनाने लगते हैं। इसलिए किसी भी भाषा के अध्ययन और अध्यापन के लिए इस तरह के आयोजन और उत्सव अतीव महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।

कक्षा 8 की छात्रा सृष्टि बताती है कि उसने पहली बार संस्कृत महोत्सव में भाग लिया है। जिसमें उसने संस्कृतवंदना और संस्कृतगीत में अपनी प्रस्तुति दी है। इस प्रस्तुति के बाद उसने बताया कि उसे काफी आनंद आया और उसका आत्मविश्वास बढ़ा है। उसने पहली बार संस्कृत गीत मंच पर गाया है जबकि इससे पहले वह संस्कृत भाषा में अरुचि के कारण अपने आपको एक संकोची छात्रा के रूप में पाती थी।

 

12वीं की छात्रा किरण बताती है उसने एक कार्यक्रम में भाग लिया जहां उसने नृत्य प्रस्तुति दी। वह यह देखकर हैरान थी कि उस उत्सव में सभी कार्यक्रम संस्कृत भाषा में ही किए जा रहे थे। चाहे मंच संचालन हो या अभिवादन, स्वागत हो या फिर कोई प्रस्तुति, अतिथि भाषण हो या धन्यवाद ज्ञापन, पूरा कार्यक्रम संस्कृत भाषा में ही संपन्न हुआ। उसने बताया कि ऐसे कार्यक्रम में भाग लेकर उसे संस्कृत का महत्व और उसकी सुंदरता का एहसास हुआ। उसने विशेष रूप से बताया कि उसमें एक बड़ा परिवर्तन आया है जो है संस्कृत भाषा में उसकी रुचि। वह आगे भी संस्कृत की पुस्तकों का अध्ययन करती रहेगी।

जब कोई कार्यक्रम किसी भाषा में छात्रों की रुचि जागृत कर दे तो इसे एक बड़े परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है।

10वीं के छात्र राहुल ने नाट्य प्रस्तुति के अपने अनुभवों को साझा किया। उसने बताया कि अभ्यास के दौरान जब वह बार-बार संवाद बोल रहा था तो इससे उच्चारण में स्पष्टता, संवाद कथन में उतार–चढ़ाव, चेहरे पर हाव-भाव और आत्मविश्वास जैसे सकारात्मक परिवर्तनों को उसने अनुभव किया।

उसने यह भी बताया कि उसे मीडिया में अपना करियर बनाना है जिसके लिए यह सभी कौशल अपेक्षित हैं। संस्कृत के पाठों को यदि ठीक–ठीक पढ़ने का भी अभ्यास किया जाए तो ऐसे कौशल स्वतः ही विकसित हो जाएंगे।

ऐसा ही एक अनुभव 11वीं की छात्रा अनीशा ने साझा किया। उसने बताया कि जब वह कार्यक्रम के लिए तैयारी कर रही थी तो सभी शिक्षक आपसी बातचीत और निर्देश संस्कृत भाषा में ही सांझा कर रहे थे। यह देखकर वह बहुत प्रभावित हुई। उसने आगे बताया कि कैसे लोग संस्कृत भाषा से अनजान रहकर कितना कुछ सीखे बिना रह जाते हैं। वह आनंदित होकर बता रही थी कि कार्यक्रम के दौरान उसने अनुभव किया कि संस्कृत के बिना हम कुछ नहीं हैं। अभ्यास के दौरान मैंने जितने भी गीत, संवाद आदि तैयार किए थे, वे सभी मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूंजते रहते हैं। मैं अब स्वयं को अधिक आनंदित महसूस करती हूं। ऐसे कार्यक्रम के कारण संस्कृत भाषा के उस स्वरूप से मैं परिचित हो पाई, जिससे मैं अब तक अनभिज्ञ थी।

 

मेरे पूछने पर अनेक छात्रों ने मुझसे अपना विचार सांझा किया कि किस तरह विद्यालय में होने वाले इन आयोजनों ने उन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। निष्कर्ष रूप में कहें तो विद्यालयों में समय–समय पर ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन होते रहने चाहिएं जिसमें भाषिक नीति–रीति का पालन किया जाए। पूरा कार्यक्रम लक्षित भाषा में आयोजित हो जिससे की भाषिक माहौल विकसित हो। ऐसे कार्यक्रमों से छात्रों को प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक लाभ प्राप्त होंगे एवं उस भाषा में उनकी रुचि भी जागृत होगी। ऐसे में जब इस तरह के आयोजन प्रारंभिक स्तर पर होते हैं तो छात्रों को अनेक विकल्प मिलते हैं कि वे कहां-कहां से किस-किस तरह से उन शब्दों को सीखें और उसका प्रयोग करें। कुछ छात्र भाषिक तत्वों को कथा के माध्यम से सुनते हैं, सीखते हैं, तो किसी को गीत पसंद आ जाता है, किसी की नाटक में रुचि होने लगती है, तो किसी को बोलना और दोहराना बहुत अच्छा लगता है, कोई संवादपरक तत्वों से सीखना प्रारंभ कर देता है, तो किसी को पढ़ना बहुत पसंद आने लगता है। इसलिए ऐसे अनेक अवसर निश्चित रूप से छात्रों को मिलते रहने चाहिएं॥

 

~~~~~~~ जयतु संस्कृतं, जयतु भारतम् ~~~~~~~