पिछले वर्ष मैंने अपनी बेटी का दाखिला एक सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा में करा दिया। अपनी बेटी को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में कराने का मेरा निर्णय सिर्फ़ आर्थिक कारणों से नहीं था। मैं चाहता था कि बेटी समाज की वास्तविकता और विविधता में रहकर सीखे। वह समझ सके कि हम जैसे मध्यवर्गीय या निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से अलग ढर्रे पर चलने वाली दुनिया भी अस्तित्व में है। वह जान सके कि दुनिया की बहुरंगी वास्तविकताएं और जरूरतें हैं। लोगों का आचार- विचार- व्यवहार बहुत हद तक इन्हीं सबसे निर्धारित होता है। वह यह भी जान सके कि इनमें से कुछ भिन्नताओं को हम इंसानों ने ही स्वार्थवश गढ़ा है जो विषमता और अन्याय को बढ़ाती हैं। इनका नाश भी हमें ही करना है। वहीं वह यह भी समझे कि बहुत सी विविधताएं स्वभाविक हैं और वे हमारे जीवन को स्मृद्ध ही करती हैं। डीएवी पब्लिक स्कूल जो उसका पिछला स्कूल था, मुझे बहुत वजहों से पसंद नहीं आया। एक तो आज के अंतर्राष्ट्रीय और ग्लोबल संस्कृति के युग में भी वहाँ जिस तरीके से वैदिक और आर्य समाजी संस्कृति और मंत्रोच्चार को थोपा जाता था, वह मुझे जंचा नहीं।
मेरी दृष्टि में धर्म-परंपरा के बारे में बच्चे घर में ज्यादा अच्छी तरह सीख सकते हैं न कि शिक्षा जैसे सार्वजनिक दायरे में। वैसे भी हम एक राष्ट्र के रूप में अपने सामूहिक जीवन को तार्किक और सेकुलर बनाने को प्रतिबद्ध हैं। स्कूलों को इसी दिशा में सायास प्रयास करने चाहिए न कि उल्टी दिशा में चलना चाहिए। उस स्कूल के इस धार्मिक सापेक्षता के कारण वहाँ पूरी तरह बहुसंख्यक धर्म के बच्चों की उपस्थित ही थी। अब एक विविधता पूर्ण देश और समाज में रहते हुए ऐसे एकरंगी जगह पर शिक्षित होने वाले बच्चे कैसे भिन्नताओं की कदर करना सीखेंगे? दूसरे, लगभग एक जैसी आर्थिक और साँस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चे भला दूसरी जीवनशैलियों और दृष्टियों से कैसे परिचित हो पाएंगे? इस आधुनिक ‘घेटो’ में बंधी शिक्षा से उपजी दूरी उनमें जहाँ अपने जैसे लोगों के प्रति ‘हम’ की भावना से लैस करती है और दूसरों के लिए ‘अन्य’ के रूप में परायापन बढ़ाती है। स्कूल ऐसी जगह है जहाँ बच्चे सिर्फ किताब में लिखे हुए को ही नहीं सीखते। बल्कि वहाँ का हर विचार-व्यवहार उसकी पाठ्यचर्या का हिस्सा होता है। मुझे कुछ निजी स्कूलों द्वारा प्रारंभिक कक्षाओं में अपने अलग पाठ्यक्रम व पुस्तकों पर भी कम भरोसा है। इसे मैं फिलहाल डीएवी स्कूलों के पाठ्यक्रम के संदर्भ में तो कह ही सकता हूँ जो बहुत जेंडर्ड और उच्च जातीय हिंदुत्व से लैस है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 पर आधारित एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें अपनी बहुत सी सीमाओं के बावजूद बेहतरीन हैं। ये किताबें राष्ट्र की विविधतापूर्ण, समावेशी संस्कृति को ज्यादा अच्छे से प्रतिबिम्बित करती हैं। वैसे भी उसे देश की सर्वोत्तम मेधा ने गहन विचार-विमर्श और सहमति से निर्मित किया है। अब मेरी बेटी की कक्षा में उसके धर्म के सहपाठियों के साथ-साथ मुस्लिम-सिख व भिन्न जातीय-आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चे भी हैं। वह अब अधिक विविध अनुभव क्षेत्र से रुबरू होती है। हालाँकि वह अभी बहुत छोटी है और अभी दुनियादारी इतना नहीं समझती। लेकिन उसके लिए आगे चलकर अब इन पहचानों से युक्त लोग हौव्वा न होकर उस जैसे इंसान ही होंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि वह आगे जाकर कुछ भी करे, कुछ भी बने लेकिन किसी से पहचान के आधार पर नफरत नहीं करेगी, दंगाई नहीं बनेगी। वैसी अपनी बेटी के लिए मेरी ये तमाम सद् इच्छाएं संभव नहीं हो पातीं अगर पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली में सरकारी स्कूलों का इतना सशक्तिकरण न हुआ होता। लाख वैचारिक पक्षधरता के बावजूद भला एक मध्यवर्गीय पिता अपनी बेटी को जर्जर आधारभूत संरचना वाले, पढ़ाई के माहौल से विमुख सरकारी स्कूल में
दाखिला क्यों कराता? नवउदारवाद के इस दौर में जब अमीरों के लिए महंगे स्कूल और गरीबों के लिए अभावग्रस्त सरकारी स्कूल का द्वैध स्थापित हो चुका है और शिक्षा एक क्रय शक्ति के अनुरूप कमोडिटी बन चुकी है तब पुनः इसे समान अवसर व अधिकार के रूप में बदलने का दिल्ली सरकार का प्रयास चौंकाने के लिए काफी है। भुला दिए गये मूलभूत लोकतांत्रिक जरूरत को सार्वजनिक विमर्श के केंद्र में लाने का प्रयास दिल्ली सरकार ने बजट का चौथाई हिस्सा शिक्षा पर आवंटित करके शुरू किया। आधारभूत संरचना में अभूतपूर्व सुधार, शिक्षक ट्रेनिंग, बच्चों को सीखने-सिखाने के लिए विशेष प्रयास, हैप्पीनेस-ईएमसी जैसे नये करीकुलम की शुरुआत जैसे बहुत से कदमों ने इसकी ताकीद की है। आज इन बदलावों को दिल्ली में हर कोई महसूस कर रहा है। सरकारी स्कूल ही सभी को समान और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उपलब्ध करा सकते हैं। निजी स्कूल तो उसे कीमत के आधार पर ही देंगे। आज एक पिता के रूप में मेरी खुशी का अंदाजा भी आप लगा सकते हैं। यह मेरे लिए सही अर्थों में स्कूलों की वापसी है।
- Log in to post comments