क्या आप भी विकसित करना चाहते हैं पढ़ने-लिखने की आदत?
यह वर्ष का सबसे उपयुक्त समय होता है 'न्यू ईयर रेजोल्यूशन' के लिए! हम में से कई लोग ऐसा व्रत लेते हैं कि हम अपने दैनिक जीवन के रूटीन में कुछ ऐसी बातों को शामिल करेंगे जो हमें सफल बनाने में मदद करेगी। ज्यादा पढ़ने या लिखने को अगर आप 'न्यू ईयर रेजोल्यूशन' का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो फिर यह लेख आपके लिए है!
पढ़ना क्यों चाहिए, इस बात पर मैं इस लेख में जिक्र नहीं करने जा रहा हूं लेकिन हम कैसे पढ़ते रह सकते हैं इस बारे में चर्चा करेंगे! मैं ऐसे कई लोगों से मिलता हूं जो पढ़ना चाहते हैं, उनके पास किताबें भी है, वे दूसरों को भी प्रेरित करते हैं पढ़ने के लिए, पढ़ने को एक अच्छी आदत मानते हैं, वे किताबों को उठाकर पढ़ना शुरू भी करते हैं लेकिन कई किताबों को पूरा नहीं पढ़ पाते हैं। उनके आस-पास दर्जनों किताबें होती है जिसके कुछ हिस्से को तो उन्होंने पढ़ा है लेकिन उसे वे पूरा नहीं कर पाए। इन व्यक्तियों में से मैं भी एक था।
'रीड विद अ टीचर' ने एक व्यापक परिवर्तन लाया! जैसे ही पढ़ने को लेकर आपका कमिटमेंट पब्लिक हो जाता है फिर आप पढने लगते हैं! पढ़ने को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने के लिए कोई न कोई पब्लिक कमिटमेंट चुन लीजिये। हो सकता है कि एक किताब पढ़कर हर महीने में एक बार आप एक छोटा सा वीडियो शेयर करें सोशल मीडिया हैंडल पर। कई पढ़ने-लिखने वाले लोग इन बातों को दिखावा मानते हैं। मुझे लगता है कि किताब पढ़ने की आदत बनाए रखने के लिए अगर दिखावा करना भी परे तो यह कोई बुरी बात नहीं है। किसी के साथ मिलकर पढ़ने की अगर कोई योजना बना पाएं तो इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता है।
एक दूसरा तरीका जिसे पिछले करीब 1 साल में मैंने आजमाया है और बहुत कामयाब रहा है, वह है हर रोज दो पेज पढ़ना। इस अवधारणा कि समझ मुझे 'एटॉमिक हैबिट' पढ़ते हुए बनी थी। इस किताब में इस विषय पर एक बेहतरीन विश्लेषण किया गया है कि अगर हम किसी आदत को अपने 'लाइफ स्टाइल' का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो उसके छोटे स्वरूप को हमें पकड़ना होगा। अगर कोई दौड़ने की आदत को अपनाना चाहता है तो उसे स्पोर्ट्स शूज पहनने की आदत विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। यहीं से मैंने उस आइडिया को पकड़ा था और हर रोज सिर्फ दो पेज पढ़ने की आदत विकसित की। इस अवधारणा के पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण बात मुझे समझ आया कि हर दिन किए जाने वाले काम का स्वरूप बहुत छोटा होता है इसलिए कई बार बहुत व्यस्त रहते हुए भी हम वह कर सकते हैं। और जिस दिन मौका मिले तो आप अधिक समय भी दे सकते हैं । दो पेज पढ़ने में अमूमन मुझे 3 से 4 मिनट का समय लगता है जो मैं निकाल पाता हूं। और कई बार फिर 50 पेज भी पढ़ लेता हूं। इस आदत के जरिए पिछले 1 साल में मैंने करीब 8 से 10 हिंदी और अंग्रेजी साहित्य की किताबें पढ़ी है। 'दो पेज हर रोज' आप चाहे तो कोशिश कर सकते हैं इसे अपनाने की।
पढ़ने का समय नहीं मिलना कई मामलों में हकीकत भी हो सकता है। 'ऑडियोबुक' इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। हालांकि कई मित्रों ने यह साझा किया कि किताबों को सुनते हुए उन्हें नींद आ जाती है लेकिन हो सकता है कि कुछ लोगों के साथ ऐसा ना हो। ऑडियो बुक से अमूमन लोग कंफ्यूज होते हैं कि यह सिर्फ उन किताबों के बारे में है जो पढ़कर कोई और सुना रहा है। लेकिन आजकल किसी भी पीडीएफ को ऑडियोबुक के रूप में सुना जा सकता है और इसमें हमारा मदद करता है-'टेक्स्ट टू स्पीच ऐप'! मेरे लिए तो यह रामबाण है। अधिकतर वो किताबें जिसमें गहन समझ की जरूरत पड़ती है मैं ऑडियोबुक के माध्यम से ही सुनना पसंद करता हूं। हाल ही में एक कमाल की बात जानने को मिली। मानव के विकास के इतिहास में 'पढ़ना' एक बहुत ही आधुनिक कौशल है जबकि सुनना विकास की प्रक्रिया की शुरुआत से ही चली आ रही है। जब भाषा और शब्द नहीं थे 'आवाज' और 'सुनना' उस वक्त भी था। इस संदर्भ में किताबों को सुनना, 'पढ़ने के लिए समय नहीं मिलना' जैसी चुनौती से सामना करना हमें सिखा सकता है।
लिखने को लेकर किसी और लेख में विस्तार से लिखेंगे! फिलहाल सिर्फ इतना कि शायद अच्छा लिखने के लिए पढ़ना प्राथमिक शर्त है। दूसरा,अच्छा लिखने के लिए पहले बहुत सारा बेकार लिखना पड़ता है। अगर कभी आपको लगता है कि आप बेकार लिखते हैं तो आप मान कर चलिए कि आप अच्छा लिखने की राह पर हैं।
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