हम इंतजार कर सकते हैं हमारे बच्चे नहीं!

हम इंतजार कर सकते हैं हमारे बच्चे नहीं!

Posted on: Sun, 02/20/2022 - 03:16 By: admin

हम इंतजार कर सकते हैं हमारे बच्चे नहीं!

 

बच्चों  की पढ़ाई के दृष्टिकोण से देखें तो 5 साल का वक्त बहुत लंबा और अहम होता है। शुरुआती कक्षाओं में जो बच्चे पढ़ रहे हैं उनके लिए 5 साल में यह तय हो जाता है कि उनका आधार मजबूत होगा या नहीं। पढ़ाई में उनका मन लगेगा या नहीं। स्कूल में वे बने रहे रह पाएंगे या नहीं। सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी लेवल पर पढ़ने वाले बच्चों के लिए 5 साल तो उनके जीवन का रुख तय कर देता है। जो विद्यार्थी स्कूल कॉलेज से पढ़ कर निकले हैं, 5 साल एक बहुत बड़ा वक्त होता है, वे या तो किसी नौकरी में आ जाते हैं या उनका हौसला टूट जाता है।

 

मैं 5 सालों का जिक्र बार-बार इसलिए कर रहा हूं कि आप के 1 वोट से जो सरकार चुनी जाती है वह 5 साल चलती है और अगर एक गलती हो गई और आप एक ऐसी सरकार को चुन लेते हैं जिसकी प्राथमिकता शिक्षा नहीं है तो आप अपने बच्चों का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। इसलिए मैं कहता हूं कि आप इंतजार कर सकते हैं, आपके बच्चे नहीं।आप अपनी भूल अगले 5 साल में सही कर लेते हैं और कई बार लोगों ने किया भी है लेकिन इस बीच जो आपके बच्चों का नुकसान होता है वह कभी सही नहीं हो पाता है।

 

जिस कदर शिक्षा को चुनावी राजनीति की परिधि पर रखा गया है, या उचित तो यह कहना होगा कि इसे परिधि से बाहर रखा गया है,उसमें यह लगने लगता है कि जैसे राजनीति का शिक्षा से कोई लेना-देना ही नही है। मैं तो मानता हूं कि यह राजनीतिक छद्म की सफलता है कि वह ऐसे विचार लोगों के मन में पैदा करता है कि राजनीति का शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।

 

जबकि आपके कस्बे में स्कूल कैसा होगा? वहां शिक्षक होंगे या नहीं होंगे? शिक्षक संविदा पर काम करेंगे या उनकी नौकरी पक्की होगी? शिक्षकों का प्रशिक्षण कैसा होगा? स्कूल में किताब-कॉपी,यूनिफॉर्म इत्यादि मिलेगा या नहीं? साफ-सफाई, पानी-बिजली की व्यवस्था स्कूल में रहेगी या नहीं? किन विषयों को पढ़ाया जाएगा? पढ़ाने का तौर तरीका क्या होगा? समय पर परीक्षाएँ आयोजित की जाएँगी या नहीं,  परीक्षा का परिणाम समय पर घोषित किया जाएगा या नहीं? ये तमाम बातें राजनीति से तय होती है। और जैसा कि मैंने लिखा है राजनीतिक छद्म की यह सफलता है कि हम शिक्षा के आधारभूत प्रश्नों और राजनीति से उसके रिश्ते को नहीं देख पाते हैं।

 

शिक्षा के आधारभूत प्रश्नों और राजनीति से उसके संबंधों को जनता की आँखों से ओझल कर दिए जाने का ही परिणाम है कि देश भर में सरकारी स्कूल व्यवस्था, सरकारी स्कूल की इमारतें खंडहर में बदल चुकी है। और मामला सिर्फ स्कूलों तक ही सिमटा नहीं है विश्वविद्यालयों का भी लगभग यही हाल है। शिक्षकों और प्राचार्यो की नियुक्ति करीब-करीब बंद की जा चुकी है। और अगर होती भी है कभी नियुक्तियां तो अधिकतर नियुक्तियां संविदा पर होती है। कुल मिलाकर एक ऐसा माहौल बनाया गया ताकि लोगों तक यह संदेश पहुंचाया जा सके कि सरकारी स्कूल और कॉलेज बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे सकती है। जनता का एक बड़ा वर्ग इस सत्य को स्वीकार कर चुका है। राजनीतिक छलावे से जुड़े इस विषय को नहीं समझ पाने की वजह से अमूमन लोगों ने सरकारी स्कूल और कॉलेज ठीक से नहीं चल पाने की वजह वहां काम करने वाले शिक्षकों में ढूंढते हैं। 

 

शिक्षा के आधारभूत प्रश्नों और राजनीति से इसके गहरे संबंधों के बीच जो अदृश्य रिश्ता है उसे स्पष्टता से देखे जाने की जरूरत है, तभी हम अपने बच्चों के लिए एक बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर 5 साल के बाद हमें एक वोट देने की जो आज़ादी है उसके इस्तेमाल से हम बड़े बदलाव ला सकते हैं। कुछ राज्यों में लोगों ने ऐसा किया है, हम वहां से सीख सकते हैं।

 

लोकतंत्र में जो मुद्दे राजनीतिक बहस का विषय नहीं बनते हैं यकीन मानिए उन मुद्दों से राजनीति अपने आप को दूर कर लेती है। अगर शिक्षा जैसे जन सरोकार से जुड़े विषय पर आपके क्षेत्र के नेताओं के बीच किसी तरह की बातचीत नहीं हो रही है,किसी तरह की प्रतिस्पर्धा नहीं है इसका मतलब है कि शिक्षा की बदहाल स्थिति से उनका कोई लेना देना नहीं है। लेकिन आपका है क्योंकि आपके बच्चे उन स्कूलों में पढ़ते हैं उन कॉलेजों में जाते हैं जहां से उनका भविष्य तय होता है। खंडहर में बदलती सरकारी स्कूल और कॉलेज की इमारतें आपके बच्चों के भविष्य की इमारत को कैसे तैयार कर सकता हैं इस सवाल को ध्यान में रखते हुए लोकतंत्र के पर्व में आपको अपने वोट का इस्तेमाल करना चाहिए।