LOCKDOWN #3

LOCKDOWN #3

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:41 By: admin

फोन की घंटी बहुत देर से बज रही हैं। फोन बेड के कोने वाले टेबल पर रखा हुआ है। राशि बेड पर लेटी हुई, न सो रही है न जाग रही है, लेकिन उठकर फोन उठाने का उसका मन नहीं कर रहा है। 

फोन की घंटी बजती ही चली जा रही है। तभी दूसरे कमरे से आवाज आती है 

“अरे क्या हुआ तुम फोन क्यों नहीं उठा रही हो”

राशि जवाब नही देती है।

पुश अप, बीच मे ही रोक कर अखिल एक बार फिर से आवाज लगाता है 

“अरे क्या हुआ राशि फोन क्यों नहीं उठा रही हो”

यह कहते हुए अखिल उस कमरे में आ जाता है जहां राशि बेड पर लेटी हुई थी।

” अभी तो 10:00 ही बजे हैं और तुम फिर से सो गई”

 राशि सब सुन रही थी । लेकिन उसका उठने का मन नहीं था। अखिल की आवाज आने पर वह तकिए को और जोर से पकड़ कर अपने मुंह को छुपा लेती है। तकिया थोड़ा भींग सा गया था। न जाने कब से वह सुबक रही थी।

ये लो तुम फिर से शुरू हो गई,अरे कुछ दिनों की बात है। सब ठीक हो जाएगा, सब फिर अपने घरों से बाहर निकलेंगे। यह लॉकडॉन कोई हमेशा के लिए थोड़ी ना है, कहते हुए अखिल राशि के बगल में बैठ कर उसके सर पर अपना हाथ फेरने लगा।

राशि का मन विचारों के झंझावात से जूझता रहा। अभी कुछ दिन पहले ही तो उसने फैसला किया था कि वह घर-परिवार के अपने बनाए हुए परिभाषा पर जियेगी। उसने अपना बच्चा पैदा नहीं किया है तो क्या, एक प्यारा सा पति है, मां-बाप हैं, भाई बहन है, सब है, सिर्फ एक बच्चे के नहीं होने से क्या कोई परिवार, परिवार नहीं कहलाता है। प्रकृति में इतनी विविधता है और यही उसकी खूबसूरती है फिर परिवारों की व्यवस्था में विविधता क्यों नहीं हो सकती है। समाज आखिर एक तरह के ही पारिवारिक व्यवस्था को थोपने कि जिद्द पर क्यों अड़ी रहती है।

लेकिन यह बात वह समझाए तो समझाए किसे एक ऐसे समाज में जहाँ बेटी और बेटा दोनों पैदा होने के बाद पढ़े लिखे लोग भी बोलते है

“चलो भाई अब परिवार पूरा हो गया” जहाँ बेटे पैदा करने कि जिद्द के चलते न जाने कितनी बेटोयों का गर्भ में ही गला दबा दिया जाता है। उस समाज में बिना बच्चे के परिवार की कल्पना उसके जैसे क्रांतिकारी महिला ही कर सकती थी। इन सवालों से जूझते हुए 10 साल निकल चुके थे, धीरे-धीरे उसका संकल्प दृढ़ होता गया उसने ठान लिया था कि वह इस समाज में परिवार की एक नई परिभाषा देगी।

लेकिन संकल्प से शायद सवाल खत्म नहीं हो जाते हैं। सवाल, परिस्थितियां द्वारा पैदा की जाती है। कुछ दिनों से घर में बंद, एक बार फिर से वह उन सवालों से घिर चुकी है जिससे वह कुछ साल पहले पीछा छुड़ा चुकी थी। ना चाहते हुए भी उसका मन उन सपनों से भर जाता है कि आज घर में अगर एक बच्चा होता अखिल उसके साथ खेल रहा होता, घर में उतनी बोरियत नहीं होती, सब बच्चों का हालचाल पूछते, फोन करके सब यह कहते कि बच्चे का खास ध्यान रखना, मन लगा रहता। और यही सब सोचते-सोचते यकायक ही उसके आंखों से आंसुओं की धार निकलने लगती है। 

‘अरे पापा का फोन आ रहा है भाई,अब उठा तो लो एक बार’

 एक बार फिर से अखिल ने उसे जगाने की कोशिश की।

“और बेटे क्या हाल है घर- परिवार में सब कुशल” उधर से फोन पर पापा की मधुर आवाज राशि के कानों तक पहुंचती है। घर परिवार सुनते ही वह ठिठक सी जाती है,

 हां हाँ पापा सब ठीक है, हम लोग मजे में हैं, आप कैसे हो, कहते हुए वह  तौलिए से अपनी आंखों को पोंछने लगती है।

अरे तुम्हारे रिसर्च का काम बहुत दिनों से अटका पड़ा है, यह बिल्कुल सही समय है, उसे शुरू कर लो, कहते हुए पापा ने फोन मम्मी के हाथों में थमा दिया।

कुछ देर तक दोनों के बीच बातचीत होती रही, दोनों ने एक दूसरे को अपना ख्याल रखने के लिए कहा। 

फोन पर बात करते हुए वह अपने मोबाइल में व्हाट्सएप का स्टेटस चेक करने लगी। हर कुछ मिनटों में सैकड़ों मैसेज व्हाट्सएप पर आ जाते हैं। लॉकडॉन की वजह से हर चलने वाली चीज रुक गई है।लेकिन व्हाट्सएप पर चलने वाली मैसेज अपने तीव्रतम गति के साथ एक फोन से दूसरे फोन में आती-जाती रहती है। ग्रुप में आए हुए फॉरवर्ड मैसेज को उसने कब से देखना ही बंद कर रखा है। लेकिन  सुंदर लड़कियों को लोग पर्सनल मैसेज भी बहुत भेजते हैं। उन मैसेजेस को देखना पड़ता है, पढ़ना होता है कभी जवाब भी देना होता है, और कभी कभी उस नंबर को ब्लॉक भी करना पड़ता है।

यही सब करते हुए एक बज गया। तभी अचानक से उसे याद आया कि आज खाने के लिए तो उसने कुछ बनाया ही नहीं है। बेड से उठकर वह किचन की ओर निकल जाती है।

मन के अंदर वह द्वंध,सवाल और संकल्प का, हमेशा चलता रहता है । इसी वजह से सोने और जागने का फर्क मिट गया है। वह जागते हुए भी सोती रहती है और सोए हुए भी जागती रहती है। अखिल कभी-कभी यह कहते हुए मजाक भी कर लेता है

“अरे कि तुम जगी हुई हो या सो रही हो”

एक सवाल कई सवालों को पैदा करता है। अपने ही संकल्प पर अब उसे संदेह होता है जिसे वह संकल्प समझ रही थी कहीं वह बचने का उपाय तो नहीं था। घर से लगातार दूर रहना, काम में इस तरीके से डूब जाना कि बाकी कुछ याद ना रहे। अपने चारों और चकाचौंध भरी जिंदगी पैदा करना। हमेशा हंसते रहना, लोगों को छेड़ना, सबको खुशियां बांटना। कहीं यह सब वह उन सवालों से ऊब कर तो नही कर रही थी, वही सवाल, घर परिवार वाला। फिर उसे ख्याल आता है कि शायद द्वंद से ही तो जीते रहने का एहसास होता है। वह जिंदगी कितनी बोझिल और उबाऊ होती होगी जहां द्वंद नहीं होता है।

जिस मम्मी-पापा से वह बेइंतहा मोहब्बत करती है उनसे मिलने नहीं जा पा रही है, दिन-रात अखिल का चेहरा देखना, और फिर इस गम में बोझिल हो जाना कि शायद मैं इसके जीवन में खुशियां नही ला पाई। हर चीज तिनके-तिनके ऐसा लग रहा था, जैसे फिसलता जा रहा है, छूटता जा रहा है।

फोन की घंटी ने विचारों के इस झंझावात को फिर से तोड़ा। 

“मैंम, मैं कनाडा से बोल रहा हूं आपके काम के बारे में जानकर हम लोग काफी प्रभावित हुए हैं,जल्दी ही हम आपके साथ नए रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करना चाहते हैं। हमें आपसे मदद चाहिए होगी। उधर से फोन पर आवाज आती है। और फिर काफी देर तक राशि फोन पर बातचीत करती रही।