एक शिक्षक के रूप में मेरा अमेरिका यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव में है। यहां के शिक्षा व्यवस्था के अलग-अलग पहलुओं से रूबरू होने का मौका मिला है। दुनिया के अलग-अलग देशों से आए हुए शिक्षकों से बातचीत करने का मौका मिला है । और हर वक्त यह कोशिश रही है मेरी कि उन अनुभवों को समेट लूँ, और इस अनुभव का प्रयोग अपने शिक्षण को बेहतर बनाने और जरूरत पड़े तो अपने यहां की स्कूली व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए करूं। हर देश की अपनी कुछ खास ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक,और आर्थिक पृष्ठभूमि है और शिक्षा व्यवस्था इन्हीं पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है।
अपने अनुभवों को आधार बनाते हुए मैं उन कुछ पहलुओं का जिक्र करना चाहूंगा जो मुझे लगता है कि अपने यहां के स्कूलों में लागू करना आसान है और बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
#1 Lesson Planning- अमेरिका आकर मैंने लेसन प्लानिंग के बारे में जाना हो,ऐसी बात नहीं है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भारत में सबसे पहले लेसन प्लानिंग ही सिखाया जाता है, करीब करीब हम सभी शिक्षकों ने यह सीखा हुआ है। सभी शिक्षकों से यह उम्मीद भी की जाती है कि वह कक्षा में लेसन प्लानिंग के अनुसार ही बच्चों को पढ़ाते हैं। शिक्षकों के बीच रहते हुए मेरा अनुभव रहा है कि इसको लेकर एक खास रेसिस्टेंस है, मुझे खुद हमेशा लगता है कि मुझे अगर कंटेंट के बारे में सब पता ही है तो मुझे क्या लेसन प्लानिंग करना है। सरकारी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमेशा अधिकतर लोग जैसे तैसे लेसन प्लान एक डायरी में उतार लेते हैं। कागजों पर हमारे यहां लेसन प्लानिंग हो रही है।
लेसन प्लानिंग को असली रूप में यहां के स्कूलों में मैंने लागू होते हुए देखा है, फिर तो लगा कि शिक्षकों के लिए यह एक वरदान है। किसी कंटेंट को कैसे पढ़ाना है,यूनिट के किस हिस्से के लिए कौन सी एक्टिविटी होनी है,किस तरह के सवाल पूछे जाने हैं, किसी एक्टिविटी के लिए कितना समय लगेगा, हर चीज पहले से तय होता है। इतनी तैयारी के साथ जब शिक्षक क्लास में जाते हैं उनका काम बेहद आसान हो जाता है, अन्यथा तो ऐसा मालूम होता है कि शिक्षक क्लास के अंदर युद्ध में है, क्लास रूम के अंदर उत्पन्न होने वाली स्थिति में कभी खुद घायल होते हैं तो कभी बच्चों को घायल करते हैं, एक अनवरत युद्ध सा चलता रहता है।
मेरे ख्याल में काम आसान नहीं है, इस तरह के लेसन प्लानिंग के लिए बहुत समय लगता है साथ ही expertise की भी जरूरत होती है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हो इस काम को थोड़ा सा आसान बनाया जा सकता है। दिल्ली के संदर्भ में अगर बात करें तो शिक्षा विभाग हर वर्ष के शुरुआत में पूरे साल पढ़ाई जाने वाली सिलेबस को अपनी वेबसाइट पर डालती है। मुझे लगता है कि इसी तरह सिलेबस के साथ-साथ लेसन प्लानिंग भी डाली जा सकती है। शिक्षकों के पास यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि या तो वे, विभाग द्वारा दिए हुए लेसन प्लानिंग का इस्तेमाल करें या अपना खुद का भी तैयार कर सकते हैं। इस वक्त दिल्ली सरकार के पास इस काम के लिए कई सारे विकल्प हैं जिसमें शामिल है कोर एकेडेमिक यूनिट,मेंटर टीचर,टीचर डेवलपमेंट कोऑर्डिनेटर, DIET तथा SCERT।
एक्सपर्ट की कोई कमी हो हमारे यहां ऐसी बात नहीं है जरूरत है कि विषय के अनुसार एक्सपर्ट को इकट्ठा किया जाए और फिर इस काम को पूरा करके हर शिक्षक के लिए उपलब्ध करवा दिया जाए। लेसन प्लानिंग के कई सारे मॉडल है यहां अमेरिका में मैं जिस स्कूल में था वहां इसके लिए LEARN मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है, LEARN का मतलब है।
L- Link, E -Educate, A-Active, R- Reinforce, N- Next time.
इसके कई सारे मॉडल हैं जो विषय के अनुसार अलग-अलग भी हो सकते है ।
आज फिलहाल इतना ही अगले पोस्ट में किसी और पहलू का जिक्र करेंगे। यह लिखने की जो आदत हो गई है कि आपको तस्वीरों के साथ छोड़ता हूं,अब बड़ी मुश्किल हो रही है तस्वीरें ढूंढ कर निकालना।
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