फ्रिज खुलने की आवाज आते ही, हॉल में बैठी मंजू देवी बोल उठी…
“बहु दूध जरा संभाल के ही खर्च करना”
बिना कोई जवाब दिए, सुनैना अपना काम करती रही।
उधर मंजू देवी एक बार फिर से बोल उठी
“बेटे रमण,चाय पीने से पहले पानी पी लो,
जैसे तैसे उठते हुए वह किचन की ओर चली जाती है, चाय के बर्तन में उबल रहे दूध पर एक नज़र डालते हुए वह एक गिलास पानी लेकर बाहर चली आती है । दूध के साथ-साथ सुनैना भी उबल रही होती है लेकिन मंजू देवी की नज़रों से दूर। 15 साल हो गए हैं उसे इस घर में आए, उसके साथ अभी भी ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे घर उसका नहीं है, वह यहां काम करने वाली हो, बात-बात पर रमण की मां अपनी टिप्पणी से उसे यह एहसास दिलवाती रहती है।
चाय पीने के बाद,रमण ,गुस्से से उबल रहे सुनैना,को शांत करने का कुछ कोशिश करता है। उसके हर कोशिश का सुनैना एक ही जवाब देती है…
“तुम नहीं समझ सकते हो”
रमण जैसे ही कहता है
“अरे देखो हमारी बिटिया कितनी खुश है और जो भी हो इस लॉकडॉन में हम सब एक साथ तो हैं”
सुनैना तपाक से बोल पड़ती हैं…”वह अपने मां बाप के साथ है, तुम अपने मां- बाप के साथ हो”
फिर वह खामोश हो जाती है।
उधर रमण घर का कुछ-कुछ काम करने लगा था। लेकिन उसके पास हमेशा यह मौका रहता था कि अगर चाहे तो नहीं करे। पिछले कुछ दिनों से कभी बर्तन धोते हुए तो कभी पोछा लगाते हुए न जाने कितनी बार फोटो खिंचवा चुका है। लगता है जैसे मोबाइल कैमरे के जमाने में विकसित हुई फोटो खिंचवाने की संस्कृति का उसके ऊपर गहरा असर है। सुनैना इन दिखावों से और चिढ़ी हुई रहती है।
पोछा लगते हुए अभी 5 दिन ही हुए हैं, शुरुआत में उसे लगा कि वह हट्ठा कट्ठा है, आसानी से कर लेगा, कल से कमर में काफी दर्द हो रहा है उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है, आज जब वह फिर से पोछा लगा रहा था, उस वक्त दर्द और तेज हो गया तब उसे समझ में आया की पोछा लगाने की वजह से कमर में दर्द हो रहा है। मन में ख्याल आया कि सुनैना यह काम 15 सालों से कर रही है।
इस ख्याल के साथ जैसे ही अगली बार वह पोछा लगाने के लिए झुका, थोड़ी सी कराह उसके मुंह से निकल गई। माँ अगर आस-पास हो तो कई बार बच्चे जानबूझकर भी उनसे प्यार पाने के लिए इस तरह की हरकतें करने लगते हैं, लेकिन रमण तो 40 का हो गया था, बच्चा तो वह नहीं था, लेकिन माँ आसपास थी।
मंजू देवी, तो ना जाने इसी पल का इंतजार कर रही थी।
पिछले 5 दिनों से मंजू देवी जिन बातों को अपने मन में दबाए हुए बैठी हुई थी, मौका आ गया था, उगल देने का। वह बोल उठी…
हम लोग घर में नहीं हैं क्या,कि तुम यह सब काम करते रहते हो, अभी छोड़ दो यह सब। उनकी बातों में थोड़ा सा गुस्सा भी था थोड़ा सा प्यार भी था। लेकिन दोनों अलग-अलग लोगों के लिए था। रमण और सुनैना अपने-अपने हिस्से की बातें सुन रहे थे।
घर के किसी भी काम में जब भी वह अपने बेटे को हाथ बटाते हुए देखती हैं उन्हें लगता है कि उनके बेटे का जीवन बर्बाद हो गया, बहुत गलत लड़की से शादी हो गई, यूं तो साफ-साफ कभी बोल नहीं पाती है, लेकिन कभी-कभार गांव से जब बहन का फोन आता है, चुपके से बालकनी में जाकर अपने मन की भड़ास निकाल लेती है।
आम दिनों में सुनैना सुबह 7:00 बजे ही घर से निकल जाती थी 6 बजे तक थक हार कर ऑफिस से वापस आती थी फिर घर के कामों में लग जाती थी। सुनना उन दिनों में भी पड़ता था,लेकिन इतना नहीं। सुनैना का असली गुस्सा रमण से है। उसके नजर में घर के कामों के प्रति रमण का रवैया अभी भी फोटो तक ही सीमित है । वह जिम्मेदारी नहीं लेता है।
रमण जैसे ही सुनैना के कमरे में आता है, दिन वाली बात फिर से छिड़ जाती है। वही पोछा लगाने वाली बात, सुनैना बोल उठी…
“जरूरी था ऐसे चिल्ला चिल्ला कर सबको बताना”
हाँ लेकिन मैंने तो कहा कि मैं तो अभी 5 दिनों से करने लगा हूं, सुनैना तो यह काम 15 सालों से कर रही है, बोलते हुए रमण ने अपने आप को डिफेंड किया।
लेकिन फिर मम्मी ने क्या कहा…..
“पिछले 5 सालों से तो झाड़ू पोछा लगाने वाली ही आ रही है काम करने के लिए”
मंजू देवी की यह बात सुनैना को बहुत चुभ गया था।
मामले को टालने के लिए रमण एक बार फिर से कराहने की आवाज निकालता है और कहता है
“बहुत दर्द हो रहा है, कोई दवाई है तो थोड़ा सा लगा दो”
दर्द के साथ अगर मेरे जैसे सुनने को मिलता तो कब का मर गए होते, कहते हुए सुनैना, सामने लगी ड्रेसिंग टेबल के ड्राउर से एक मरहम निकाल ले आती है।
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