आज न्यूयॉर्क में हमारा दूसरा दिन है । कल रात को ही जब हम वापस होटल पहुंचे थे तो इस बात की तैयारी शुरू हो गई थी कि अगले दिन क्या-क्या देखने जाना है। न्यूयार्क के इस यात्रा में मेरे साथ स्तुति भी हैं,जो दिल्ली सरकार में स्पेशल एजुकेशन की शिक्षिका है साथ ही एक फुल ब्राइट स्कॉलर है। हम भारतीयों को तो बॉलीवुड फिल्मे बहुत प्रभावित करती ही है। स्तुति को याद आया कि करण जौहर का एक बहुत ही फेवरेट स्पॉट है न्यूयॉर्क में जहां वे अक्सर अपनी फिल्मों की शूटिंग करते है। कल हो ना हो फिल्म की शूटिंग में इस जगह का खास इस्तेमाल किया गया है हमने इंटरनेट पर सर्च किया और पता चला है कि यह जगह मैनहट्टन ब्रिज तथा ब्रुकलिन ब्रिज के बीच डुम्बो नाम का जगह है। मोबाइल में कुछ तस्वीर देखने के बाद हम सब यहां चलने के लिए उत्सुक हो गए।
यह जगह वाकई बहुत खूबसूरत है, बैकग्राउंड इमेज में बड़ी-बड़ी इमारतें आपकी तस्वीर को काफी सुंदर बना देता है। इस तरह के जगह पर आकर आपको लगता है कि आप मॉडलिंग के पेशे में क्यों नहीं है या फोटोग्राफी का कोर्स क्यों नहीं किया हुआ है। अजीब अजीब हरकतें करते हुए हम सब फोटो खिंचवाने लगे। तस्वीर खिंचवाने के बाद उसको देखते थे पसंद नहीं आया तो डिलीट कर देते थे और फिर से खिंचवाने की कोशिश करते थे हर बार यह कोशिश होती थी कि इस बार वाली तस्वीर पिछली बार वाले से ज्यादा सुंदर होगा। कुछ खास फर्क नहीं पड़ता था। पहली बार एहसास हो रहा था कि यह भी एक बड़ा तकनीक है दोनों ही काम तस्वीर खिंचवाना भी और तस्वीर खींचना भी इसके लिए खास तरह के प्रशिक्षण की जरूरत होती है।
वैसे मॉडलिंग करने वाले लोगों के लिए मेरे मन में खास इज्जत होता है। इसकी दो वजहें है, एक कि मॉडलिंग करने वाले लोग बहुत हिम्मत वाले होते हैं, वह हमेशा अपने समाज में प्रचलित रिवाजों से आगे जाने की हिम्मत दिखाते है। दूसरा कि उनको अपने काम के लिए बहुत मेहनत करना पड़ता है,एक तरह का साधना करना पड़ता है, उनको अपने खान-पान पर बहुत नियंत्रण रखना होता है।
ब्रुकलिन ब्रिज पर चलते हुए न्यूयॉर्क का नजारा बहुत ही शानदार लग रहा था। हॉलीवुड की फिल्में देखने वाले हमारे मित्र उन फिल्मों की सूची हमें गिनवा रहे थे जिसमें इस ब्रिज पर शूटिंग की गई है । चेतावनी के बावजूद इस ब्रिज के ऊपर भी आपको कई सारी ऐसी चीजें लिखी हुई मिल जाएगी जो लोग अपने याद को अमर बनाने के लिए अक्सर इन इमारतों पर लिख देते हैं। मुझे लगता था कि यह सिर्फ भारत में होता है लेकिन यह एक अंतर्राष्ट्रीय पागलपन है। बहुत सारे तस्वीर यहां पर खिंचवाने के बाद हमारा अगला गंतव्य था सेंट्रल पार्क। सेंट्रल पार्क जाने के रास्ते में एक बिल्डिंग पर भारत और अमेरिका का झंडा फहराते हुए दिखा। अपने देश से इतनी दूर अगर आप अपने देश से संबंधित किसी भी चीज को देखते हैं तो बहुत उत्साहित हो जाते हैं, पर यहां तो हमारा राष्ट्रीय झंडा न्यूयॉर्क एक ऊंची बिल्डिंग पर बहुत ही गौरव के साथ लहरा रहा था। हमने फटाफट यहां भी अपनी एक तस्वीर ली और पता करने पर मालूम हुआ कि यह ताज ग्रुप का एक होटल है।
सेंट्रल पार्क अपनी मशहूरीयत के अनुसार ही बहुत बड़ा है और बहुत खूबसूरत है। पार्क के अंदर ही कई बड़े तालाब है जो इसकी खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देता है, यहां की गिलहरियों पर मेरा खास ध्यान गया अपने यहां की गिलहरियों की तुलना में यहां की गिलहरियां ज्यादा मोटी होती है, शायद अमेरिकी अर्थव्यवस्था का इसके ऊपर भी प्रभाव है। दोपहर का समय था, हल्की हल्की बारिश भी हो रही थी, सुबह से ही चलते -चलते हम सब थक चुके थे हमने यही एक रेस्टोरेंट में लंच किया। और अब अगला नंबर था एंपायर स्टेट बिल्डिंग का। न्यूयॉर्क में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए हम यहां का मेट्रो रेल जिसे की subway कहा जाता है,का इस्तेमाल कर रहे हैं। Subway मेट्रो स्टेशन पर बिछी रेल की पटरीयों को जब आप देखते हैं तो लगता है कि स्वच्छ भारत की तरह, स्वच्छ अमेरिका मिशन की यहाँ भी जरूरत है। पटरियों के बीच चूहों को आते जाते देखकर हमें भारत के रेलवे पटरीयों की बहुत याद आ रही थी। शायद चूहा अंतरराष्ट्रीय पशु है।
एंपायर स्टेट बिल्डिंग के 86th फ्लोर से, न्यूयोर्क का नजारा हतप्रभ कर देने वाला है। हमने कुछ तस्वीरें लेने की कोशिश की और यही वह जगह है जहां पर आकर एहसास होता है कि आपके कैमरे और खासकर मोबाइल कैमरे की इतनी ताकत नहीं है कि वह एंपायर स्टेट बिल्डिंग से दिखने वाले नजारों को कैद कर सके। ऐसा एहसास होते ही हमने फोन बंद करके अपने पॉकेट में रखा और अपनी आंखों में ही इन पलों को हमेशा हमेशा के लिए कैद कर लेने की कोशिश शुरू कर दी। एक आध बार हिमालय में बसे सुंदर जगह पर जाने का मुझे मौका मिला है,मुझे पता है कि प्रकृति की सुंदरता मंत्रमुग्ध कर देने वाली होती है। यकीन मानिए एंपायर स्टेट से शाम के वक्त न्यूयॉर्क का नजारा भी उसी तरह मंत्रमुग्ध कर देता है। यह शहर कहीं खत्म होती हुई नजर ही नहीं आती है,बस देखते ही रहने का जी चाहता है। हमें इस पल पर भरोसा नहीं हो रहा था शायद इसलिए भी क्योंकि हम सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक हैं। कोई इंजीनियर- डॉक्टर तो है नहीं, न ही आईटी प्रोफेशनल है।
हमेशा की तरह आप को छोड़ता हूं कुछ तस्वीरों के साथ अगले अंक तक के लिए।
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