प्रिय विद्यार्थी,
आपके साथ दो सालों का साथ रहा है। कुछ ही दिनों में यह खत्म हो जाएगा, आप 11वीं में चले जायेंगे । इसमें दो राय नहीं है कि मैं आप सभी को बहुत मिस करूँगा। शुरुआत हमने 9वीं क्लास से की थी। शुरूआती कुछ दिन हमारे लिए कठिन थे, मैं आपको नहीं समझ पा रहा था, और आप मुझे नहीं समझ पा रहे थे। एक समझ विकसित करने में हमें काफी वक्त लगा । इस दौरान कई तरह के अच्छे और बुरे अनुभव रहे। इस बात का मुझे बेहद दुःख है कि 9 वीं के कुछ बच्चे इस सफर में हमारे साथ 10वीं तक नहीं आ पाए।
10वीं क्लास में आपके साथ कुछ और बच्चे भी आए…..एक नया समूह बना…..एक नए उत्साह के साथ हमने सीखने -सिखाने का काम शुरू किया। कई तरह के नए प्रयोग किये। शुरूआती विरोध के बाद करीब-करीब सभी बच्चों ने उत्साह के साथ भाग लिया। सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग था- लिखने का प्रयोग।
आप सभी ने अनेक मुद्दों पे अपनी राय रखी। इस प्रयोग के दौरान कुछ बच्चे बेहतरीन लेखक बन के सामने आए। विभिन्न सामाजिक मुद्दों पे आपने अपनी बात लिख के अभिव्यक्त किया।
लैंगिक भेदभाव, स्कूल से जुड़े विषय, जातिगत भेदभाव, धार्मिक मुद्दे, आदि विषयों पर आप सब ने क्या ख़ूब लिखा। आपको अगर याद हो तो हमने कोशिश की कि आप उन मुद्दों पर भी लिखें जो आपको उम्र के इस पड़ाव पर प्रभावित करता है, जो आपके मन में अपनी जगह बनाए हुए रहता है । इस कार्य में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली । एक बार जब मैंने कारण जानने की कोशिश की तो आप में से ही किसी एक ने बताया कि “हम उन बातों को लिख कर आप के साथ साझा नहीं कर सकते है, हमें उतना विश्वास अभी नहीं है आप पे।” शायद और ज़्यादा समय और संसाधन की ज़रुरत है, जब बच्चे पूर्ण रूप से शिक्षकों पर भरोसा कर सकें।
आपने गौर किया होगा कि सामाजिक विज्ञान के विषयों को पढ़ते समय, हम ज़्यादातर बातचीत किया करते थे। कई बार तो बातों-बातों में ही कोई पाठ खत्म हो जाता था। कई बच्चों को ऐसा भी लगता था कि सर ने पाठ तो पढ़ाया ही नहीं और कहते हैं कि वह पाठ खत्म हो गया।
हमने मिलकर एक कोशिश की….एक कोशिश यह बात समझने की, कि किताबों में लिखे हुए विषय का हमारे जीवन से गहरा सम्बन्ध है, किताबों में लिखी हुई बातें हमें अपने ही जीवन को बेहतर तरीके से समझने में मदद करती है। मकसद किताबों में लिखी बातों को समझना नहीं है, मकसद है उसको माध्यम बनाकर अपने जीवन और उसको प्रभावित करने वाली घटनाओं के बारे में एक बेहतर समझ विकसित करना।
कई बच्चों की यह शिकायत रहती है मुझ से कि मैं प्रश्न-उत्तर नहीं लिखवाता हूँ । आपके सवाल जायज़ हैं । लेकिन मैं ऐसा इसलिए नहीं करता हूँ ताकि आपको परेशान कर सकूँ या खुद बोर्ड पे लिखने के काम से बच जाऊँ । ज़रा सोचिए, जिन प्रश्नों का उत्तर मैंने लिखवा दिया, वह उत्तर तो मेरा हो गया न, जबकि उत्तर तो आपको देना है, उदाहरण के लिए, अगर सवाल है कि आपको खाने में क्या पसंद है ….. और मैंने उत्तर लिखवा दिया, दाल- चावल…. तो सभी बच्चे यही लिख लेंगे और याद कर लेंगे। लेकिन यह उत्तर तो गलत हो गया न, कई बच्चों का पसंदीदा खाना कुछ और भी हो सकता है, लेकिन उत्तर याद करने की संस्कृति के कारण आपने उस खाने को अपना पसंदीदा खाना बता दिया,जो आपका पसंदीदा खाना है ही नहीं। कुछ प्रश्नों के उत्तर एक से होंगे भी लेकिन यकीन मानिए आपके अभिव्यक्ति के तरीके ज़रुर अलग- अलग होंगे । उत्तर को याद करने की ‘बीमारी’ आपके अनूठेपन को खत्म कर देती है। अब शायद आप समझ गए होंगे कि मैं बोर्ड पे उत्तर क्यों नहीं लिखवाता हूँ।
मुझे याद है कि नवीं कक्षा में जब आप थे तो मैं अक्सर आप में से कुछ बच्चों को ‘स्टुपिड’ कह के बुलाता था। कुछ बच्चों को यह बात बेहद बुरी लगी, और लगनी भी चाहिए थी। आपने मुझ से शिकायत की कि मैं इस शब्द का प्रयोग नहीं करूँ, और मैं शुक्रगुज़ार हूँ आपका कि आपने मेरी मदद की इस आदत को छोड़ने में। मेरे कहने पर आप में से ही एक बच्चे ने इस बात का लेखा रखना शुरू किया कि मैं कितनी बार इस शब्द का प्रयोग करता हूँ और धीरे- धीरे यह कम हुआ और अब तो ख़त्म ही हो गया। इसका मतलब है कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ मैं आपको सिखाता हूँ, आप भी हमें कई बात सिखाते हैं।
पिछले दो सालों का यह सफ़र आपके साथ बहुत शानदार रहा । कुछ बच्चों से ज़्यादा बात-चीत का मौका नहीं मिला,इसका मुझे अफ़सोस रहेगा। मुझे पता है कि कुछ बच्चों को मेरे तरीके से कुछ परेशानी भी हुई, मैं इसके लिए उनसे माफ़ी भी चाहता हूँ । कुछ बच्चे बहुत ऊर्जा से भरे हैं, अपने लिए एक पहचान बनाने की आप सब में एक अजीब छटपटाहट है। सोशल मीडिया पर आप में से कई लोग सक्रिय हैं, आप में ऊर्जा तथा आत्म विश्वास भरा हुआ है । मुझे आप से काफ़ी उम्मीदें हैं, एक बेहतर शिक्षा आपकी ऊर्जा एवं आत्मविश्वास को और मजबूत करेगी । मैं इस बात के लिए भी आभार जताना चाहूँगा कि आप सब ने मुझे बेहद प्यार तथा सम्मान दिया ।
आपके उज्जवल भविष्य की कामना के साथ
आपका अध्यापक
मुरारी झा
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