Lockdown

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:38 By: admin

हल्का सा एक चपत पड़ते ही सोनू चिल्लाते हुए उठा, 

मम्मी, क्या हुआ…

रीना बहुत देर से उसे उठाने की कोशिश कर रही थी,

चल मेरे साथ बाहर आ, कहते हुए रीना बेड से नीचे उतर जाती है, उसने अपने पल्लू को ठीक किया, गर्दन तक घूंघट खींच लिया। सोनू को गोदी में लेकर वह बाहर निकली। बाहर बहुत अंधेरा था, बरामदे पे टँगी दीवार घड़ी में रात के दो बज रहे थे। आंगन के दूसरे कोने पे जाकर उसने सोनू को नीचे उतार दिया, 

Welfare Vs Identity Politics

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:37 By: admin

दिल्ली में चुनावों के तारीख की घोषणा हो चुकी है। भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति के इतिहास में शायद पहली बार जन सरोकार की राजनीति का सीधा मुकाबला पहचान की राजनीति से है। वर्षों से पहचान की राजनीति केंद्र और राज्य के चुनावों में अपना दबदबा बनाए हुई है। पहचान की राजनीति से मेरा मतलब है धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, राष्ट्र इन सब को आधार बना कर चुनाव लड़ना।

Oh My God, Your Education Minister, Can’t Believe It !

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:36 By: admin

“मैं अगर आपको कहूँ कि उस दूसरे कमरे में जाकर जेंटलमैन को बुला लाइये, अगर वहाँ तीन लोग खड़े हो, जिसमें से किसी एक ने सूट और टाइ पहन रखा हो तो आप सूट वाले को बुला लाएँगे। ये कैसे होता है, कब हमने जेंटलमैन की परिभाषा गढ़ दी”

महिलाओं की आर्थिक समृद्धि और सुरक्षा की ओर बढ़ता कदम।

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:34 By: admin

आज से करीब-करीब 15 साल पहले कल्याणी और मैं मुनिरका में रहकर पढ़ाई करते थे। कल्याणी को हर रोज करीब 3 किलोमीटर दूर मोतीलाल नेहरू कॉलेज जाना होता था। बस में 2 रुपये का टिकट लगता था । वो अक्सर जाने और आने का 4 रुपया बचाने के लिए पैदल ही चली जाती थी। कई बार एक स्टॉप आगे बढ़ जाने से टिकट 7 रुपये का हो जाता था तो हम अपने गंतव्य से एक स्टॉप पीछे ही उतर जाते थे। किसान परिवार की कोई मासिक आय नही होती थी, आज भी नही होती है। ऐसे में नियमित मासिक खर्च बहुत महंगी पड़ती थी।

सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों का विश्वास।

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:33 By: admin
  1. ये लो सिर्फ संस्कृत और ड्राइंग में तुम पास हो, कहते हुए मैम बच्चे के हाथ में पीले कलर का रिपोर्ट कार्ड पकड़ाती है। बच्चा खड़ा है, थोड़ी सी उदासी उसके चेहरे पे झलक रही है। सामने मम्मी अपने दो और बच्चों के साथ बैठी हुई है।
    मम्मी से यहां साइन करवा लो, यह कहते हुए टीचर एक अटेंडेंस सीट बच्चे के हाथ में पकड़ा देती हैं। मम्मी पेन पकड़कर जैसे- तैसे साइन करने की कोशिश करती है।

थोड़ा ध्यान दीजिए आप इस पर, घर पे कुछ पढ़ता नहीं है

जी मैम आगे से मैं ध्यान रखूंगी।

मजबूत सरकारी स्कूल व्यवस्था के गवाह हैं, सिंगापुर के स्कूल।#3

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:24 By: admin

आज का दिन था सिंगापुर के स्कूलों को देखने का l यकीन नहीं होता है कि इतने कम समय में कोई देश अपने यहां के स्कूलों को इतना बेहतरीन कैसे बना सकता है l कोई बहुत गौरवपूर्ण इतिहास नहीं रहा है सिंगापुर का। बहुत ही मुश्किलों का सामना यहाँ के लोगों ने किया। काफी सालों तक अंग्रेजों का राज रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के समय कुछ वर्षों तक जापानी साम्राज्य का हिस्सा रहा और फिर कुछ वर्षों तक मलेशिया का हिस्सा रहा। और अंत में 1965 में स्वतंत्र सिंगापुर के रूप में इस राष्ट्र की स्थापना हुई। एक बुजुर्ग बता रहे थे कि यहाँ के स्कूलों में 4-4 अलग-अलग तरह के राष्ट्रगान गाये गए हैं।

A school Teacher’s Singapore Diary#2

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 07:17 By: admin

शिक्षा से जुड़े हुए साहित्य को जब भी हम पढ़ते हैं तो पाते हैं कि शिक्षक के लिए कोई खास उत्साह समाज मे कभी नहीं रहा है। आज भी बहुत कुछ नहीं बदल गया है। कितने लोगों को आप अपने आसपास जानते हैं जो शिक्षक बनना चाहते हैं या अपने बच्चों(बेटों) को शिक्षक बनाना चाहते हैं। हालात यहाँ तक आ गयें है कि जो लड़के इस पेशे में हैं उनकी आसानी से शादी नहीं हो रही है।

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