यह वर्ष 2015 की बात है दिल्ली में नई सरकार का गठन हो चुका था और स्कूलों में कुछ हलचल शुरू हो गयी थी। 54 स्कूलों को मॉडल स्कूल बनाने का निर्णय लिया गया और संयोगवस जिस स्कूल में मैं पढ़ा रहा था, वह स्कूल भी मॉडल स्कूल बन गया।
इन स्कूलों में एक प्रोग्राम लाया गया जिसका नाम रखा गया ‘लर्निंग मैनेजर’ प्रोग्राम। संयोगवश, मुझे भी लर्निंग मैनेजर बनाया गया । लर्निंग मैनेजर शब्द थोड़ा भारी भरकम सा लगता है।काम यह था कि बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ आप अपने साथी अध्यापकों के साथ मिलकर पढ़ने-पढ़ाने से संबंधित मुद्दों पर बातचीत करें, स्कूल में टीचर प्रोफेशनल डेवलपमेंट पर काम करें। ट्रेनिंग के लिए इसी सिलसिले में स्कूल से बाहर आना-जाना शुरु हुआ। करीब 1 साल तक इस रोल में रहने के बाद मैंने एक रिसर्च पेपर भी लिखा- ‘strengthening the agency of teachers through learning manager’
इसी बीच 2016 में दिल्ली सरकार मेंटर टीचर प्रोग्राम ले कर आई। लर्निंग मैनेजर प्रोग्राम का अब आगे क्या किया जाए और मेंटर टीचर प्रोग्राम को कैसे आगे बढ़ाया जाए इस संबंध में मीटिंग का एक सिलसिला शुरु हुआ और मुझे भी इनमें से कई मीटिंग में भाग लेने का मौका मिला।
इन्हीं मीटिंग में मेरी मुलाकात आतिशी मैडम से हुई।
TV पर जिस चेहरे को आपने देखा है अगर उससे वास्तविकता में मिलने का मौका मिलता है तो एक तरह की घबराहट और उत्सुकता बनी रहती है। वैसे घबराहट बना रहना तो शिक्षकों के स्वभाव का हिस्सा है। पहली मीटिंग में ही जिस तरह मैंने अतिशी मैडम को शिक्षकों की बात को सुनते हुए देखा, वह हैरान करने वाला था। इससे पहले एक शिक्षक के रूप में जब मैं किसी अधिकारी के साथ मीटिंग में भाग लेता था वहां हम सुनने के लिए उपस्थित होते थे। लेकिन यहां दिल्ली सचिवालय के कॉन्फ्रेंस रूम में मीटिंग के दौरान एडवाइजर टू dy.cm शिक्षकों को सुन रही थी यह अपने आप में आश्चर्य में डाल देने वाली बात थी। हैरानी इस बात की भी थी कि हम तो यह सुनते आ रहे हैं कि शिक्षकों की सुनता कौन है।
उसके बाद कभी किसी स्कूल में तो कभी SCERT में तो कभी अरविंदो आश्रम में दर्जनों मीटिंग में आतिशी के साथ काम करने का मौका मिला।
दो- तीन बातें गौर करने वाली है।
पहला कि शिक्षा में सुधार से संबंधित मीटिंग में वह शिक्षकों को शामिल कर रही थी। शामिल ही नहीं वह शिक्षकों को सुन रही थी। एक वाक्ये का यहां जिक्र करता हूँ। लर्निंग मैनेजर प्रोग्राम को जब दिल्ली के सभी स्कूलों में लागू करने की बात हुई तो लर्निंग मैनेजर का चुनाव कैसे किया जाए इस बात पर हम लोगों के बीच अलग-अलग मत थे। इस प्रोग्राम का नाम बदलने को लेकर के हम सभी सहमत थे,लेकिन नया नाम क्या होगा यह अभी तक तय नहीं हुआ था।
अतिशी बार बार यह कह रही थी कि हम कुछ ऐसा चाहते हैं जिसमे सस्टेनेबिलिटी हो। सरकार में हम आज हैं कल हो सकता है हम नहीं रहें लेकिन हम चाहते हैं कि सुधार लंबे समय तक के लिए हो। इसी बात को ध्यान में रखते हुए वह कह रही थी कि स्कूलों में टीचर्स प्रोफेशनल डेवलपमेंट का काम वाइस प्रिंसिपल को सौंप दिया जाए। मेरा स्टैंड था कि जैसे ही कोई काम किसी के ऊपर थोप दिया जाएगा,तो फिर वह जल्दी ही स्कूल के एक रिचुअल का हिस्सा बनकर रह जाएगा। इसलिए यह मौका शिक्षकों को दिया जाना चाहिए।उन शिक्षकों को जो आगे आकर काम करना चाहते हैं, उनमे कुछ करने की ललक होगी,बदलाव की एक चाहत होगी क्योंकि उन्होंने खुद यह चुना है।
इस मुद्दे पर घंटों बहस चलती थी। यह प्रोग्राम अपने अंतिम रूप में जब आया उसमें व्यवस्था थी कि कोई शिक्षक ही टीचर डेवलपमेंट कोऑर्डिनेटर की भूमिका में होंगे। मैं यह देखकर हैरान था। एक शिक्षक को बराबरी का दर्जा देना,उसकी बातों को भी अहमियत देना,अतिशी बहुत अच्छे से जानती हैं।
यह इस संदर्भ में और महत्वपूर्ण हो जाता है जहां आप ऐसे स्कूल के वातावरण में काम करते हैं कि प्रिंसिपल के सामने अगर आप सीट पर बैठे रह गए तो आप की शामत आ जाती है।
आतिशी डिप्टी सी एम की एडवाइजर जरूर थी, लेकिन अपने काम करने के अंदाज में वह हमेशा लोकतांत्रिक रही। ब्यूरोक्रेसी के सामने मैंने उनको कई बार शिक्षको की तरह ही मजबूर होते हुए देखा है। वह हमेशा प्रसुएड करने विश्वास करती है।
दर्जनों मीटिंग में मैं उनके साथ रहा लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह सेंट स्टीफन और ऑक्सफ़ोर्ड से पढ़ी हुई हैं। मुझसे आप थोड़ी देर बात करेंगे तो मैं आपको बता दूँगा की मैं TISS में पढ़ा हुआ हूँ । कुछ ही दिन पहले मैं अमेरिका से हो के आया हूँ। उनकी पढ़ाई- लिखाई के बारे में सारी जानकारी मीडिया से मिल रही है। इसके पीछे दो वजहें हो सकती है,पहला उच्च कोटि की विनम्रता और दूसरा कि जब वह शिक्षकों से बात करती थी तो शिक्षकों की सुनती थी शिक्षकों को सुनाती नही थी।
मैं अपने अनुभव से यह बता सकता हूँ कि वह किस तरह की लीडर है। उनके साथ काम करते हुए आप एंपावर्ड फील करते हैं, थ्रेटेण्ड नही। यही वजह है आज जब उनको एडवाइजर के पद से हटाया गया, पार्टी लाइन से हटकर लोग उनके समर्थन में आ खड़े हुए हैं। आपने गौर किया होगा किे शुरुआत में मैंने उनको आतिशी मैडम कह कर संबोधित किया है और अंत होते-होते मैं सिर्फ अतिशी शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ। यह सांकेतिक है, यह एंपावरमेंट है एक शिक्षक का, ऐसा ही एंपावरमेंट वह दिल्ली के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों, अध्यापकों और अभिभावकों में लाना चाहती है। उनके इसी स्वभाव में पीपल ओरिएंटेड पॉलिटिक्स का पूरा राज छुपा है।-She is here to empower the people. और इसी बात से तो इतनी घबराहट है।
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