“मैं अगर आपको कहूँ कि उस दूसरे कमरे में जाकर जेंटलमैन को बुला लाइये, अगर वहाँ तीन लोग खड़े हो, जिसमें से किसी एक ने सूट और टाइ पहन रखा हो तो आप सूट वाले को बुला लाएँगे। ये कैसे होता है, कब हमने जेंटलमैन की परिभाषा गढ़ दी”
यह पहला मौका था जिसने मुझे शिक्षा मंत्री के उनके शिक्षा के बारे में एक अलग और विस्तृत सोच से परिचय कराया। इस तरह के विचार आप अक्सर क्रिटिकल पेडगॉजी के फील्ड में काम कर रहे शिक्षाविदों के बातों में ही पाते हैं। भारतीय राजनीति या यूं कहें की लोकतांत्रिक राजनीति में ऐसा महज संयोग ही होता है कि जुनून और ओहदा का आपस मे मेल हो जाये। शिक्षा मंत्री के रूप में उनके जुनून की कई कहानियाँ शिक्षा विभाग के लोगों के बीच कही और सुनीं जाती है।
जून महीने में कई बार जब हम सुबह सो कर उठते थे, ट्विटर पर यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाता था कि मन्त्री जी सुबह 6 बजे किसी स्कूल में पहुंच चुके हैं। एक ही सवाल मन मे आता था, how is it possible?
बच्चों के बीच जा कर बैठ जाना, शिक्षकों से हाथ मिलाना, उनके लिए एक सहज बात है। इन बातों का महत्व इसलिए है कि आज भी स्कूली व्यवस्था में कई प्रिंसिपल ऐसे हैं जो अपने शिक्षकों से हाथ नहीं मिलाते हैं। कई शिक्षक ऐसे हैं जो बच्चों के पास जाकर बैठने में हिचकिचाते हैं। ओहदे का सवाल होता है।
महिपालपुर के स्कूल से मैथ लैब का उद्घटान कर के लौट रहे थे, गाड़ी के ठीक सामने आकर सिक्योरिटी गार्ड, उन्हें गाड़ी से उतर कर एक फोटो के लिए रिक्वेस्ट करती है, बगल में खड़ी प्रिंसिपल और शिक्षा अधिकारियों की तो जैसे जान हलक में अटक गई लेकिन तभी वे गाड़ी से उतरते हैं, और उनके साथ फोटो खिंचवाते हैं। विनम्रता तो जैसे उनके हर व्यवहार से झलकती है।
हाल ही मे NIEPA में गांधी के जीवन और उनकी शिक्षा पर दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया था। देशभर से कई विद्वान इसमें शामिल होने के लिए आए थे । 2 दिनों तक बहुत ही गहन चर्चा हुई थी। मंत्री जी वेलेडिक्ट्री सेशन के लिए आए थे। पूरी विनम्रता से सभा में मौजूद लोगों को वे कहते हैं
“गांधी जी का शिक्षा के संबंध में जो विचार हैं उसके बारे में मैं बहुत कुछ नहीं कह सकता हूं लेकिन गांधी के विचार और उनके जीवन का शिक्षा व्यवस्था में कैसे इस्तेमाल हो मैं इसके बारे में बताऊंगा” उन्होंने एक वाकया साझा किया कि एक बार किसी कक्षा में वे गए थे जहां गांधी जी के सफाई के बारे में क्या विचार थे, इस बात पर शिक्षक और बच्चे बातचीत कर रहे थे और उसी कक्षा में हर जगह मकरी के जाले लगे हुए थे। इसी बात को रेखांकित करते हुए वे कहते हैं कि कैसे विचारों को धरातल पर उतारने की जरूरत है।
मुझे लगता है कि एक मंत्री के रूप में अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने इसी बात पर बहुत जोर दिया कि शिक्षा से संबंधित बेहतरीन विचार लोगों के पास है लेकिन कैसे उसे बच्चों तक पहुंचाया जाए, अपनी पूरी ताकत उन्होंने इसी बात पर लगा दी और शायद इसी का नतीजा है कि पिछले 5 साल में दिल्ली में 25000 नए क्लासरूम बन गए हैं, हजारों शिक्षक और प्रधानाध्यापकों को देश और विदेश के बेहतरीन संस्थाओं से प्रशिक्षण लेने का मौका मिला है।
संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी आस्था इस कदर देखने को मिलती है कि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने एक कैंपेन करके दिल्ली के करीब 10 लाख बच्चों तक संवैधानिक मूल्यों को पहुंचाया। उनकी लगातार यह कोशिश है कि कैसे ये संवैधानिक मूल्य लोगों के जीवन का हिस्सा बने। एक अवसर पर शिक्षक और प्रिंसिपल को संबोधित करते हुए वे कहते हैं कि NCERT के सभी किताबों का जो पहला पृष्ठ है उसमें संविधान की उद्देशिका लिखी हुई है। जिस किसी ने भी ऐसा सोचा होगा उसके पीछे यह मकसद जरूर रहा होगा कि संवैधानिक मूल्य हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा होना चाहिए।
देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मंत्री होने का खिताब उन्हें भारत के राष्ट्रपति से तो मिला ही हुआ है लेकिन जब भी मेरी बात मेरे उन मित्रों से होती है जो दुनिया के 40 अलग-अलग देशों में रहते हैं तो फिर वे कहते हैं
Oh my God, Your Education Minister, Can’t believe it !
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