उमीद की किरण

उमीद की किरण

Posted on: Sat, 10/31/2020 - 08:06 By: admin
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आज के इस दौर में, जहाँ कई कारणों से सरकारी विद्यालयों के प्रति समाज में अविश्वास पनपा हैI या यूं कहें की निजीकरण के दौर में जहाँ, सरकारी विद्यालय संसाधनों और अध्यापकों की तंगी से जूझ रहे हैंI जब सरकारी विद्यालयों में लगातार छात्रों की संख्या घट रही है, ऐसे में दिल्ली में शिक्षा का बजट 25% होना उम्मीद की किरण जगा रहा थाI दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों के क्रम में, दिल्ली शिक्षा विभाग के मेंटर शिक्षकों का एक समूह, जनवरी 2019 में महाराष्ट्र के जिला सतारा तथा जिला परभणी में राष्ट्रीय शैक्षिक भ्रमण पर भेजा गया, ताकि देश के कोने-कोने में हो रहे, सकारात्मक प्रयासों को प्रत्यक्ष रूप में देखकर कुछ सीखा जा सकेI उसी यात्रा में हम कुछ ऐसे सरकारी स्कूलों में गए जोकि ऐसे समय में सचमुच शैक्षिक क्रांति की एक मशाल जलाये हुए है I जहाँ सरकारी विद्यालाओं में कार्यरत शिक्षकों, स्थानीय लोगों और कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने मिलकर, कुछ स्कूलों में ऐसा कुछ कर दिखाया है, कि जिससे न केवल सरकारी स्कूलों में समाज का विशवास बढ़ा है, बल्कि “उम्मीद की नई किरण” भी दिखी है I

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इस यात्रा में हमारे साथ रहे गैर सरकारी संगठन “ग्यानप्रकाश फाउंडेशन” के लोग जो वहां जिला सतारा और जिला परभणी में विभाग के साथ सरकारी स्कूलों में अध्यापकों, स्कूल मनेजमेंट कमेटी और प्रशासन के बीच एक कड़ी का काम कर रहे हैं, और स्कूलों में होने वाले बदलावों में एक अहम भूमिका भी निभा रहे हैं

जिला सातारा महाराष्ट्र

स्कूल का नाम : जिला परिषद् प्राथमिक शाला शेळकेवाडी I

“बच्चे कतारों में नहीं थे हमने पूछा कि ऐसा क्यों?तो प्रिंसिपल ने बताया कि हमारे बच्चे लाइनों में नहीं, ग्रुप में बैठते हैं, हम पढ़ाते नहीं हैं, सीखने में मदद करते हैंI मैंने फिर से पूछा, कि ऐसे तो बच्चे शोर करते होंगे ? तो उनका जबाव था, कि बच्चे हैं तो शोर तो करेंगे ही, शोर ही तो बताता है, कि क्लास जिन्दा हैI”    

 

यह साधारण सी दिखने वाली स्कूल की इमारत “सिंपल लिविंग एंड हाई थिंकिंग” वाली बात को सार्थक सिद्ध करती हैI यह एक माध्यमिक विद्यालय हैI शिक्षण कार्य तो सभी स्कूलों में होता ही है, यहाँ हम सिर्फ उन गतिविधियों की बात करेंगे जो इस स्कूल को खास बनाती हैंI

“इस स्कूल की विशेषता है इस स्कूल रूपी संस्था का “लोकतांत्रिकरण” I यह मात्र स्कूल नहीं है, लोकतंत्र का जीवंत उदाहरण हैI”

कैसे ? समझते है:-

  • यहाँ हर साल एक छात्र मंत्रिमंडल का गठन किया जाता है, और वो भी प्रत्यक्ष वोटिंग के साथ I मतलब कुछ छात्र स्कूल के लिए निर्धारित मंत्रियों के पदों के लिए अपनी उम्मीदवारी पेश करतें हैंI उसके बाद बाकी छात्र पर्चियों की मदद से अपना वोट देते हैं, इस तरह चुना जाता है मंत्रिमंडल I जो वर्षभर विद्यालय में उन्ही के द्वारा निर्धारित कार्यों तथा कर्तव्यों का निर्वहन करता हैंI  
  • स्कूल में प्रार्थना सभा से लेकर बाकी सारी गतिविधियाँ, यहाँ तक कि टाइम टेबल भी बच्चों द्वारा लोकतान्त्रिक तरीके से बनाया जाता हैI
  • संस्कृति मंत्री बाल सभा, प्रार्थना सभा संभालता है, खाद्यमंत्री मिड-डे-मील और अर्थमंत्री बनाए गए फण्ड का हिसाब रखता है इसी तरह सारे काम बंटे हुए हैI टाइम टेबल फ्लेक्सिबल है, जरूरत के हिसाब से रोज बदलता है, वो भी मंत्रिमंडल में बहुमत के निर्णय के मुताबिकI
  • स्कूल में हाजिरी भी बच्चे खुद लगाते हैI नाम की एक पर्ची जो वो घर से बनाकर लाते हैं, उसे क्लासरूम में एक बोर्ड पर चिपकाना होता हैI जो सबसे पहले आयेगा वो एक नंबर पर चिपकायेगाI स्कूल समय पर पहुचना भी वहां एक स्पर्धा हैI 
  • यहाँ बताते चलें, कि एक फण्ड का गठन किया गया है, जिसमें बच्चे और उनके अभिभावक स्वेच्छा से दान करते हैं I जिसका नाम PALS (people action for life saving) है I इसके इस्तेमाल का निर्णय भी छात्रों द्वारा ही लिया जाता हैI
  • साल में एक या दो बार बाज़ार लगाया जाता है “अठावडे बाज़ार”I जिसमे बच्चे फल और सब्जियां बेचते हैंI सारी खरीद फरोख्त और नफा-नुक्सान का हिसाब, बच्चे ही रखते हैंI दरअसल गाँव के सारे लोग सब्जियां-फल बेचने का काम करते हैं, तो एक दिन के लिए वो इन्हें बाज़ार न ले जाकर, अपने बच्चों को दे देते हैंI मजे की बात यह है कि उस दिन गाँव वाले भी सब्जियां उन्ही से खरीदते हैI यहाँ के प्रिंसिपल श्री सावंत भारत जी बताते हैं, कि साल भर सीखे हुए गणित का प्रयोग बच्चे, इन बाजारों में करके देखते हैI
  • हर बच्चे का जन्मदिन मनाया जाता हैI और यह निर्णय SMC ने लिया है, कि बच्चों के जन्मदिन पर अभिभावक कुछ कच्चा सामान देकर जायेंगे, जिसे मिड-डे मील के दौरान पकाकर खिलाया जायेगाI ज्यादातर यह शीरा होता है, जो एक तरह का मीठा पकवान है I
  • अध्यापकों ने खुद से वर्कशीट बनाई हैं, और उन्हें लेमिनेट करवाकर रखा है I अध्यापक कम हैं तो जो क्लास खाली रहती है उसके बच्चे, वर्कशीट पर अपने आप काम करते हैं I और अच्छी बात यह है, कि सभी वर्कशीट के उत्तर, एक दूसरी शीट पर हैं, जिनको वर्कशीट के क्रमांक से मिलाकर ढूँढा जा सकता है I मतलब यह, कि असेसमेंट का झन्झट ही नहीं बच्चा खुद ही कर लेता है I
  • रोज़ थीम बेस्ड रंगोली बनाना, साइंस के किसी विषय पर प्रैक्टिकल और चर्चा, तथा SMC द्वारा स्थापित ओपन लाइब्रेरी, इस स्कूल के रोज़ की गतिविधियों का हिस्सा हैंI
  • लंगड़ी, पोशम्पा, कंचे, पत्थर की गोटियों जैसे सारे खेल किसी न किसी शिक्षण प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं I यह खेल बिलकुल साधारण हैं और छात्रो की पहुँच के भीतर भीI
  • यहाँ तीली-बंडल, कंकर पत्थर, लकड़ी के टुकड़े, कंचे, गत्ते, पुराने अखबार, मूंगफलियों के छिल्के, और भी बहुत कुछ टीचिंग ऐड की तरह इस्तेमाल होते हैं I

“अध्यापक दळवी श्रीकृष्ण बताते हैं की उत्तर देने के बजाय हम प्रश्न निर्माण पर जोर देते हैंI हम शब्द देते हैं, बच्चे कविता लिखते हैं, एक-एक शब्द जोडकर कहानी बनाना बच्चों में  भाषा की समझ विकसित करता है, हम एक शब्द देते हैं, बच्चे उससे बहुत सारे वाक्य बनाते हैंI”

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“अध्यापक दलवी श्रीकृष्ण बताते हैं की उत्तर देने के बजाय हम प्रश्न निर्माण पर जोर देते हैंI हम शब्द देते हैं, बच्चे कविता लिखते हैं, एक-एक शब्द जोडकर कहानी बनाना बच्चों में  भाषा की समझ विकसित करता है, हम एक शब्द देते हैं, बच्चे उससे बहुत सारे वाक्य बनाते हैंI”    

जब मैंने अध्यापक नामदेव जी से पूछा कि सारे पोस्टर जमीन पर पड़े हैं, आप इन्हें दीवारों पर क्यों नहीं टांगते? उनका जबाव था ‘सर पोस्टर जब तक जमीन पर हैं, बच्चों की पहुँच में है, यह टीचिंग ऐड है, दीवार पर तो यह पोस्टर हो जायेगा, जो हमारे किसी काम का नहीं’”

  • दशमल के सिखाने के तरीके पर, तो हम सब कायल हो गए I एक बराबर चीजों को, दस तथा सौ हिस्सों में टुकड़े करके रखा गया था, बाँटने के क्रम में जब एक शेष बचा तो दस हिस्से बांटकर दशांश और सौ हिस्सों में बांटकर शतांश समझाया गयाI बच्चे हर चीज को visualise करके सीखते हैंI   
  • इसके आलावा मलखंभ सिखाया जाता है जोकि स्कूल के बाद सिखाया जाता है जिसकी व्यवस्था SMC ने की हुई हैI

“बच्चे कतारों में नहीं थे हमने पूछा कि ऐसा क्यों? तो प्रिंसिपल ने बताया कि हमारे बच्चे लाइनों में नहीं ग्रुप में बैठते हैं, हम पढ़ाते नहीं हैं, सीखने में मदद करते हैंI मैंने फिर से पूछा, कि ऐसे तो बच्चे शोर करते होंगे ? तो उनका जबाव था, कि बच्चे हैं, तो शोर तो करेंगे ही, शोर ही तो बताता है, कि क्लास जिन्दा हैंI”

अध्यापकों में सकारात्मकता ऐसी कि जब मैंने पूछा, कि सर एक क्लास में दो अलग-अलग श्रेणी के बच्चे हैं, आपको मुश्किल नही होती ? तो अध्यापक बोले- नही सर यह तो और बढ़िया है, जब कभी कोई क्लास खाली रहती है तो बड़े बच्चे मदद करते हैंI और एक जैसे विषयों में हम मिश्रित समूह बना लेते हैं जोकि बच्चों को peer learning में मदद करता हैI

पारंपरिक शिक्षण से रचनात्मक शिक्षण का यह सफ़र, वहां के सत्रह स्कूलों में शिक्षा विस्तार अधिकारी श्रीमती. प्रतिभा भराड़े और अध्यापकों के सयुंक्त प्रयासो का परिणाम हैI प्रतिभा जी खुद रचनात्मक शिक्षण में विश्वास रखती हैं, इसीलिए उन्होंने टीचर ट्रेनिंग के ऐसे इंतजाम करवाए ताकि रचनात्मक शिक्षण की ओर बढ़ा जा सकेI अध्यापकों ने उनकी उम्मीदों से ज्यादा प्रयास किया और उनके प्रयासों से ही अब अध्यापक, अध्यापक की तरह नहीं केवल मार्गदर्शक की तरह कार्य करते हैं और बच्चे पढ़ते नहीं हैं सीखते हैंI

जिला परभणी तहसील मानवत महाराष्ट्र

इसी क्रम में हमारी टीम सतारा से परभणी जिला पहुँचीI परभणी जिला महाराष्ट्र का सुदूर जिला है जो ज्यादातर सूखे से जूझता हैI यहाँ की कहानी भी बिलकुल अलग हैI साधारण से दिखने वाले यह लोग, जो ज्यादातर बहुत संपन्न नहीं हैं, साधारण भारतीय परिवारों की तरह ही मेहनत करके अपना गुज़ारा करते हैंI लेकिन अपने बच्चों की शिक्षा के लिए कितने सचेत हैं, यह आप आगे की कहानी में समझेंगेI आज के समय में लगभग प्रत्येक राज्य में SMC के जरिये सभी सरकारें स्कूलों में कम्युनिटी पार्टीसिपेशन बढ़ाना चाहती हैंI किन्तु स्कूल इसे अपने काम में बाधा की तरह ही मानते हैI इसीलिए स्कूलों में SMC नाम मात्र की होती है, जो समय पड़ने पर रजिस्टर साईन करनें के आलावा किसी काम नहीं आतीI

किन्तु यहाँ तो ऐसा लगता था की कम्युनिटी ने स्कूलों को गोद ही ले रखा होI जिस तरह SMC का दखल, और स्कूल में इस दखल के लिए स्वीकार्यता थी, वह, अपने आप में अचंभित करने वाली थीI  “ग्यानप्रकाश फाउंडेशन” फाउंडेशन के ओंकार जी बताते हैं कि उनकी संस्था ने यहाँ SMC के गठन और कम्युनिटी पार्टीसिपेशन की तरफ ध्यान दिलवाया, वो भी नियमों के अनुसारI मानवत तहसील की सभी SMC का चुनाव प्रत्यक्ष होता है और महिलाओं की भागीदारी पचास प्रतिशत है I और इसी एक पहल ने आगे का रस्ता प्रशस्त कियाI

यह है : जिला परिषद् प्राथमिक शाळा सिद्धि इरळद तहसील मानवत महारष्ट्र

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चलिए बात करते हैं कि यहाँ की SMC ने किया क्या है:-

इस गाँव के संपन्न परिवारों के बच्चे, जब शहर में अंग्रेजी स्कूलों में पढने के लिए चले गएI तो स्कूल के फिक्रमंद हेडमास्टर जी ने SMC से बात की, कि क्यों न हम इसी स्कूल में अंग्रेजी माध्यम भी शुरू करेंI उन्होंने जब यह कहा, कि थोडा आप सहयोग करें, थोड़ी मेहनत स्कूल करेगा देखते है परिणाम क्या रहता है तो जो भरोसा गाँव वालों ने दिखाया, उसका परिणाम यह हुआ, कि स्कूल का काया पलट ही हो गयाI

  • SMC ने आठ लाख रुपये इकट्ठे किये ताकि इमारत को ठीक किया जा सकेI
  • गाँव के प्रधान जो SMC के प्रधान भी हैं, ने बिल्डिंग के लिए, अपनी ज़मीन दान कीI
  • बाईस लाख रुपये SMC ने और इकट्ठे किये जिससे कि प्रत्येक कक्षा में LED स्क्रीन लगाई जा सके, जिसपर शिक्षक डिजिटल मटिरियल बच्चों के साथ साँझा करते हैI
  • लैब स्थापित की गयी है जिसमे 530 प्रयोग किये जा सकते हैI दूसरे विद्यालयों के विद्यार्थी भी, सप्ताह में किसी दिन जो की शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने तय किये हैं, इस विद्यालय में प्रयोग करने आते हैं I
  • लड़कियां नवमी के बाद स्कूल इसलिए छोड़ रहीं थी क्योंकि स्कूल दूर थे, तो नवमी क्लास शुरू करवाने के लिए SMC ने लम्बा संघर्ष किया, जिसके लिए SMC प्रधान अशोक काचरे को जेल तक जाना पड़ा, लेकिन वो कामयाब रहेI
  • रचनात्मक विधियों से शिक्षण, और पांचवी पास करने वाले बच्चों की नवोदय विद्यालय के लिए तैयारियों के लिए, अध्यापक दो से तीन घंटे स्कूल में ज्यादा रुकते हैंI
  • डिजिटल क्लासरूम, लाइब्रेरी, टीचिंग ऐडस, लैब, यह सब मिलकर इस साधारण सी दिखने वाली बिल्डिंग में असाधारण रूप से ज्ञान का सृजन करते हैंI
  • एक रिवायत जो सबने मिलकर शुरू की वो यह है, कि कोई भी अपने बच्चे का जन्मदिन नहीं मनाता बल्कि उस होने वाले खर्चे से, स्कूल को किताबें दान करतें हैं जिससे स्कूल में एक बहत बड़ी लाइब्रेरी का निर्माण संभव हो पाया हैंI
  • “ग्यानप्रकाश फाउंडेशन” फाउंडेशन से ओंकार जी बताते हैं, कि हम कुछ नही करते बस प्रशासन और स्कूल के बीच कड़ी बनते है, स्कूलों की प्रोग्रेस की मैपिंग करते है, डाटा इकठ्ठा करते हैं और स्कूलों के साथ साँझा करते है बाकी निर्णय स्कूल और smc लेते हैंI

 

यह है जिला परिषद प्राथमिक शाळा अटोलाI

इस स्कूल की अलग ही कहानी हैI यहाँ डिजिटल क्लासरूम, लाइब्रेरी, रचनात्मक शिक्षण तो है ही, किन्तु इस स्कूल के बच्चों ने अपने अध्यापक के साथ मिलकर कम्युनिटी की जो मदद की है वो किसी सुखद कहानी की तरह हैI  

  • बच्चों ने वाटर हार्वेस्टिंग शुरू किया, जिससे सालों से सूखा कुआँ भर गयाI
  • गरीबी बहुत है, और लोग नशे की गिरफ्त में थे, बच्चों और शिक्षक ने मिलकर लोगों को भावनात्मक सहारा देकर उनके नशे की आदतें छुड्वायींI
  •  गाँव को खुले में शौच से मुक्त करवाया, उनकी रोज़मर्रा की समस्याओं को सुलझाने का काम कियाI

यहाँ श्री दिगम्बर भिषे अकेले अध्यापक थे तो कई बार विभागीय काम से बाहर जाना पड़ता है I तो उस वक्त यह विद्यालय गांववालों की सहायता से बिना अध्यापक भी चलता हैI शनिवार को नो बैग डे भी शुरू किया गया हैI इस स्कूल की कहानी किसी फिल्म की तरह है जहाँ एक मास्टर आकर पूरे गाँव को सुधार देता हैI भिषे जी कहते है कि हमारे लिए स्कूल ही घर है और घर ही स्कूल हैI

कहानी अभी बाकी है

दिल्ली से आये थे तो सीईओ (शिक्षा) जो वहां जिला के जिल्हा पंचायत के अधिकारी होते हैं और ओ आईएएस होते हैं, उन्होने मिलने 
के लिए बुलायाI उस वक्त एक कैम्पेन उधर चल रहा था, “साहेब नहीं साथी”I इससे उन्होंने सदियों से चली आ रही अफसरशाही,
 विभागीय हेरारकी, यूं कहें कि सामंती संस्कारों पर बहुत बड़ा प्रहार किया हैI उनके अनुसार कोई भी अधिकारी स्कूलों में अधिकारी
 के रूप में, गलतियाँ निकालने नहीं जाएगाI बल्कि सहयोग करने जायेगाI हम विशवास भी नहीं कर पा रहे थे कि खंड शिक्षा 
अधिकारी श्री संजय ससाणे जी हमारे साथ दो दो दिनों से स्कूल-स्कूल घूम रहे थे, और उनको स्कूल में अध्यापकों से लेकर बच्चे 
तक पहचानते थेI न कोई गाडी न आसपास लोगों की भीड़, अपनी मोटरसाइकल पर वो हमारे साथ पूरे दो दिन घूमे बिलकुल 
साहेब नहीं साथी की तरहI इससे हुआ यह कि अध्यापक अधिकारियों से डरते नहीं है बल्कि उनके आने पर खुश होते हैंI 
उनको लगता है कोई उनको सुनने वाला आ गया है, अब उनकी समस्या सुनी जाएगीI

अभी इस सफर की सबसे दिलचस्प कहानी बाकी है:-

इरलद में लोग चाहते थे, कि उनके बच्चे ट्यूशन पढ़ेI किन्तु जब पढ़ाने वाला कोई नहीं मिला तो उन्होंने स्कूल के हेडमास्टर से बात कीI उन्होंने ट्यूशन पढ़ना तो नहीं स्वीकारा लेकिन एक सलाह दीI उन्होंने कहा कि क्यों न हम गाँव के बच्चों को समूहों में बिठाकर घर पर ही, स्वा-अध्ययन के लिए प्रेरित करें I लोगों को बात अच्छी लगी तो काम शुरू हुआI तीन हजार की जनसँख्या वाला गाँव था, इतने बड़े गाँव में यह कैसे संभव हुआ ? आईये देखते हैंI

लोगों ने क्या किया:-

  • कुछ लोगों ने अपने घर में एक कोना, शाम को बच्चों के स्व-अध्ययन के लिए दे दियाI जिसकी शुरुआत प्रधान अशोक काचरे ने अपने घर से कीI
  • आसपास के आठ-दस घरों के बच्चे एक घर में आकर एक साथ पढने लगेI
  • अलग-अलग कक्षा के बच्चे जब एक साथ बैठे तो ज्यादातर समस्याए अपने आप ही हल हो जाने लगीं क्योंकि धीरे-धीरे दसवीं- बाहरवीं के बच्चे भी साथ बैठने लगेI बाकि बची हुई समस्याएं स्कूल में सुलझा ली जातींI
  • इन समूहों को गट कहा जाता हैI
  • हर समूह में लोगो ने पुस्तकें दान की हैं, जिससे प्रत्येक समूह में अपनी एक लाइब्रेरी बन गयी हैI
  • बच्चे वहां का अनुसाशन स्वयं देखते हैंI वहां वो अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं, वो खेलते हैं, डिबेट करते हैं, पढ़ते हैंI
  • उस अकेले गाँव में ऐसे 29 समूह चलते हैं जिसमें बच्चे स्वयं पढ़ाई करते हैंI
  • जब बात अधिकारियों तक पहुंची, तो इसे आगे बढाने की बात हुई, नतीजा यह हुआ कि उस समय तक मानवत तहसील के 53 गाँव में ऐसे 540 गट (समूह) चल रहे थेI
  • जिस गाँव में हम घूमे थे वहां एक बात जो दिल छू गयी थी, वो यह थी, कि 6:00 बजे से 9:00 बजे रात तक बच्चे समूहों में स्व-अध्ययन करते हैं, तो गाँव के किसी भी घर में टीवी नहीं चलता, इस बीच न तो मंदिरों में पूजा होती है न ही मस्जिद में अज़ान क्यों ? जब मैंने पूछा ऐसा कैसे संभव है तो लोगो ने बताया कि इबादत से ज्यादा जरूरी हमारे बच्चों की पढाई हैI
  • कुछ तस्वीरे जो हम रात को उनकी सहमति से खींच पाए;-
साहेब नहीं साथी-सीईओ मानवत घर ही विद्यालय है और विद्यालय ही घर- दिगम्बर भिषे अध्यापक हम स्कूलों में गलतियां निकालने नहीं, सहयोग करने जाते है- खंड शिक्षा अधिकारी संजय शाशाने बच्चो के लिए मुझे जेल जाना पड़ा था, पर मुझे मंज़ूर है- अशोक काचरे प्रधान ग्राम पंचायत एवं SMC हम कुछ नही करते, बस प्रशासन और स्कूल के बीच कड़ी बनते है, स्कूलों की प्रोग्रेस की मैपिंग करते है, डाटा इकठ्ठा करते हैं और स्कूलों के साथ साँझा करते है बाकी निर्णय स्कूल और smc लेते है- ओंकार (“ग्यानप्रकाश फाउंडेशन” फाउंडेशन)  

 

अगर आपके इरादे मजबूत हों, साथियों पर विश्वास हो, और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो, संसाधनों की कमी, बच्चों की पढ़ाई को लेकर उदासीनता, अधिकारियों का रवैया या सरकार की अनदेखी यह सब तरक्की की राह में कभी रोड़े नहीं बनतेI धन्यवाद दिल्ली सरकार का जिसने यहाँ आने का मौका दिया और यहाँ के तमाम लोग जिन्होंने शिक्षा में क्रान्ति की मशाल जलाकर रखी हैI

निकलते वक्त जिल्हा परिषद शिक्षण सभापती महोदया,मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिल्हा शिक्षा अधिकारी तथा उनके सहयोगी अधिकारी और ग्यानप्रकाश फौंडेशन के साथी उनके साथ ली गायी तस्वीर

 

 

धन्यवाद!!

अशोक कुमार

गणित अध्यापक दिल्ली सरकार

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