American Diary; lunch with NRI professor and a trip to museum in DC.

American Diary; lunch with NRI professor and a trip to museum in DC.

Posted on: Fri, 10/30/2020 - 17:42 By: admin

आज एतवार का दिन है और सुबह से ही मौसम काफी साफ है,हवाएं भी कम चल रही है। कल शाम को ही यहां काफी बर्फबारी हुई थी और हम सबके लिए अमेरिका में स्नोफॉल देखने का यह पहला मौका था। दिल्ली के लोग तो इस मौके का खास इंतजार करते हैं। लेकिन यहां का मौसम बहुत तेजी से बदलता है। आज हम सभी लोगों को डॉक्टर सुप्रिया बेली के घर लंच करने के लिए जाना था। डॉक्टर सुप्रिया भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक हैं और जॉर्ज मेशन विश्वविद्यालय में पढ़ाती है। करीब करीब 1 वर्ष की पढ़ाई उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज से की हुई है। वैसे उनके माता-पिता बेंगलुरु निवासी हैं। अपने माता-पिता से मिलने अभी भी कभी-कभी भारत जाती हैं। भारत में चल रहे सामाजिक राजनीतिक घटनाक्रम में खास दिलचस्पी रखती हैं। जानकर आश्चर्य हुआ कि दिल्ली में हो रहे हैं शिक्षा क्रांति के बारे में भी वह जानकारी रखती हैं और उसको लेकर वह काफी उत्साहित है। गौरी लंकेश को व्यक्तिगत रूप से जानती थी और गौरी लंकेश की हत्या से जुड़ी घटना को लेकर भारत में बदल रही राजनीतिक परिस्थितियों से वह बहुत चिंतित रहती है।

लंच में पूरी तरह से भारतीय व्यंजनों की व्यवस्था थी और जब से हम अमेरिका आए हैं यह हमारे लिए पहला मौका था कि हम भारतीय व्यंजन खा सकें। मुझे और स्तुति को यह जिम्मेदारी दी गई कि बाकी मेहमानों को हम यह बताएं कि समोसा क्या होता है, कैसे बनता है, लाल वाली इमली की चटनी क्या है, हरी वाली चटनी कैसी होती है। बाद में लंच के वक्त, कई तरह के व्यंजनों के बारे में हम बाकी देश के मेहमानों को बता रहे थे, व्यंजनों में प्रमुख था बटर चिकन, शाही पनीर, पालक पनीर, नान, इत्यादी। अन्य देश के मेहमानों का एक ही सवाल होता था कि स्पाइसेज तो ज्यादा नहीं है। भारतीय व्यंजनों का सभी लोगों ने जमकर लुफ्त उठाया । मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे 25 दिनों के बाद पहली बार खाना खा रहा हूं, लंच और डिनर एक साथ ही कर लिया। गुलाब जामुन के साथ इस भोज का समापन हुआ और कुछ देर डॉक्टर सुप्रिया के बैकयार्ड में स्थित बास्केटबॉल कोर्ट में जा कर के हम लोगों ने बास्केटबॉल खेला।

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अभी दिन के कभी करीब 2:30 ही बजे थे । हमारे कुछ साथी वाशिंगटन डीसी जा रहे थे और हमने भी फैसला किया वहां जाकर कुछ और म्यूजियम देखा जाए। वाशिंगटन के लिए हमने मेट्रो ली और करीब 4:30 बजे वाशिंगटन डीसी पहुंच गए। वक्त ज्यादा नहीं था हमारे पास इसलिए हमने नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में जाने का फैसला किया। म्यूजियम में अंदर जाते ही आपको भारतीयों का जाना पहचाना हाथी का एक बहुत ही बड़ा स्टेच्यू देखने को मिल जाता है। यह एक बहुत ही विशाल म्यूजियम है 145.3 मिलियन स्पेसिमेन यहां उपलब्ध है। एक शब्द अगर मुझे इस्तेमाल करना होगा कि म्यूजियम में जा कर मुझे कैसा लग रहा था तो वह होगा-वंडर (आश्चर्य)। कितना खूबसूरत शब्द है यह। बच्चे हमें इतना आकर्षित इसलिए करते हैं क्योंकि उनका जीवन आश्चर्य से भरा हुआ होता है और जैसे जैसे हम बड़े होने लगते हैं हमारे अंदर से जैसे जैसे आश्चर्य कम होने लगता है, हम बहुत ही बोरिंग होते जाते हैं । वह कोई भी बात जो आपको आश्चर्य से भर दे,एक तरह से वह आपको एक नई ऊर्जा प्रदान करती है वह आपको जीवन से भर देती है। इस म्यूजियम का मुझे लगता है कि यही एक मकसद भी है कि हम यह समझ सके कि हम इस प्लानेट का एक हिस्सा है,हमारा जीवन यहां पर स्थित हर तरह के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है चाहे वह जानवरों का जीवन हो, पेड़ पौधों का, या कीट पतंगों का। हम अलग नहीं हैं, हम पृथ्वी पर जीवन के इस विशाल मेले का एक हिस्सा है। अभी तक जो म्यूजियम देखने का अनुभव था, उसके अनुसार म्यूजियम में हमें देखने को मिलता था ‘प्लीज डोंट टच दिस’। यहा ऐसें कई सारे फॉसिल्स देखने को मिला जहां पर लिखा हुआ था ‘ प्लीज टच इट’। म्यूजियम में लिखे हुए इन पंक्तियाँ ने मुझे बहुत आकर्षित किया।

“Collections are the heart and soul of this Museum.Our 145.3 million specimens and artifacts reflect our amazing world inspire wonder, and form the foundation for scientific discovery”

अपने जीवन को आश्चर्य से भरें और उसमें वैज्ञानिक सोच पैदा करें जिंदगी खूबसूरत हो जाती है। आज के पोस्ट में बस इतना ही।

स्कूल की कहानियां अभी खत्म नहीं हुई है…. इंतजार करिए अगले पोस्ट का।