My American School Diary

My American School Diary

Posted on: Fri, 10/30/2020 - 17:35 By: admin

स्कूल में आज मेरा पांचवा दिन था। जैसे जैसे बच्चों को पता चल रहा है कि मैं इंडिया से आया हूं, बच्चे मुझसे मिलने आ रहे हैं। और सबसे मजेदार बात यह है कि बांग्लादेशी बच्चे,पाकिस्तानी बच्चे, तिब्बती मूल के बच्चे और नेपाली बच्चे यह सब मुझसे मिलने आ रहे हैं। आज अनुष्का मिली जो दिल्ली से ही है । अब सीधे हिंदी में ही बातचीत शुरू हो जाती है। अनुष्का इस बात से अवगत है कि उसका नाम भारत में बहुत प्रसिद्ध है। Shanghai, पाकिस्तानी शहर लाहौर से है। Hassan मिले जो कि इराक से हैं। और वंशिका उत्तर प्रदेश के शहर बनारस से हैं। सभी बच्चे हिंदी या उर्दू बोल पा रहे थे बातों बातों में ही, Shanghai से मैंने पूछा कि क्या वह पाकिस्तान जाती है कभी, उसने बताया कि बहुत दिन हो गया है कभी-कभी जाती है लेकिन उसे उर्दू भाषा बहुत पसंद हैl मैंने भी उसे बताया कि उर्दू मुझे भी आती है कम से कम अपना नाम लिखना तो आता ही हैl जामिया से जब मैं B.Ed कर रहा था तो उस वक्त मैंने उर्दू सीखी थी। भाषा में तो एक जादू है, कितनी आसानी से यह लोगों को कनेक्ट कर देती है। बातों बातों में ही Shanghai ने बताया – Here, we all are brown. अपनी पहचान के एक नए रूप को जानकर और अच्छा लगा। और ब्राउन होने की पहचान आप को जमीन पर खींची हुई विभाजन की लकीरों से ऊपर कर देता है। इन बच्चों के आपस के बातचीत से मैं अंदाजा लगा पा रहा था, कि इनके बीच जबरदस्त दोस्ती है, इनके बीच इंडिया और पाकिस्तान नहीं है। यह ब्राउन होने की पहचान को साझा करते हैं।

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जब आप इतनी अलग-अलग मुल्क के लोगों से मिलते हैं जिनकी संस्कृति अलग है, जिनकी भाषा अलग है तो एक बात जो मुझे समझ में आ रही है कि ज्यादातर विभाजन राजनीतिक है और यह राजनीतिक स्वार्थपरता का नतीजा है। जिसने लोगों और लोगों के बीच दीवारें खड़ी कर दी है। अपने अनुभव से मैं ऐसा कह सकता हूं कि यहां अमेरिका में भारतीय और पाकिस्तानी मूल के लोगों के बीच गहरी दोस्ती है। और हो भी क्यों ना कुछ राजनेताओं और कुछ राजनीतिक दलों के अलावा इनको बांटता ही कौन है, ईनकी भाषा एक है ईनका खानपान एक है। और अगर नहीं भी है तो सिर्फ मनुष्य होने के कारण ये एक है। जब आप सीमाओं से बाहर जाकर लोगों से बात करते हैं तो यह बात करीब करीब साबित हो जाती है की दुश्मनी राजनीतिक है। सीमा के दोनों और ऐसे लोग हैं जो घृणा की राजनीति करते हैं। और इस राजनीति में सामान्य जनों की आहुति दे देते है। सीमाओं पर जान देने वाले हमारे सैनिक चाहे वह भारत से हो या पाकिस्तान से,वे कौन है? वे गरीब घरों से आते हैं, वे किसानों के बेटे हैं। नफरत की राजनीति करने वालों के लिए वे सिर्फ एक मोहरे हैं। अपने पड़ोसी देशों से घृणा के आधार पर जो देशभक्ति सिखाते हैं वह लोगों से धोखा कर रहे हैं। अपने देश से प्रेम और दूसरे देश से घृणा कैसे कर सकते हैं। जिस प्रकार अंधकार और प्रकाश को एक साथ नहीं रखा जा सकता है उसी प्रकार घृणा और प्रेम भी एक साथ नहीं हो सकता है। तो अगर आप का देश प्रेम दूसरे देशों से घृणा पर आधारित है तो आप अपने देश से प्रेम नहीं करते हैं।

वह भारतीय जो पाकिस्तानी से नफरत करते हैं और वह पाकिस्तानी जो भारतीय से नफरत करते हैं जरा वे अपने आपसे पूछें कि उन्होंने कितने भारतीयों से बात की है या उन्होंने कितने पाकिस्तानियों से बात की है उन्होंने तो सिर्फ एक दूसरे के बारे में उस मीडिया के जरिए जाना है जो इस वक्त सिर्फ सत्ता की गुलामी करता है, लोगों के अंदर घृणा पैदा करने की पत्रकारिता करता है, लोगों को मनुष्य से हिंसक भीड़ में बदलता है।( कुछ अपवादों के साथ)

यह तो संभव नहीं है कि हम सभी अमेरिका आकर ही एक दूसरे से मिल सके, बेहतर यह होगा कि ज्यादा से ज्यादा people to people contact वाले विभिन्न योजनाओं को बढ़ावा दिया जाए, लेकिन यह घृणा सिखाने वाली सरकार से संभव नहीं है ।

कहां से कहां क्या-क्या बातें मैं भी करने लगा, लेकिन कभी-कभी लगता है कि ये बातें भी जरूरी है। अमेरिका के लोगों को उनकी डाइवर्सिटी पर बहुत गर्व है, अपनी बातचीत में वे इसका हवाला जरूर देते हैं। यहां पर स्कूलों और कॉलेजों कि इस बात पर रैंकिंग होती है कि वह कितना डाइवर्स है। ऐसा मुझे यहां स्कूल में भी देखने को मिल रहा है । हर स्कूल पूरी दुनिया का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इस तरह का प्रतिनिधित्व या तो आपको संयुक्त राष्ट्र में देखने को मिलता है या अमेरिका के स्कूलों में और यहां के विश्वविद्यालयों में। डाइवर्सिटी पर तो हम भारतीयों को भी बहुत गर्व है लेकिन अफसोस कि हमें कोई सिर्फ हिंदू होना सिखा रहा है।