ये मेरी राय है ।

ये मेरी राय है ।

Posted on: Fri, 10/30/2020 - 17:31 By: admin

 राजनीति विज्ञान पढ़ाते हुए यूं ही कभी -कभी यह सवाल बच्चों से पूछ लेता हूं कि क्या राजनीति में उनकी दिलचस्पी है । एक-दो बच्चे अपना हाथ उठाकर अपनी दिलचस्पी दिखाते हैं और जो बच्चे हाथ उठाते हैं बाकी बच्चे उनकी तरफ बहुत ही हिकारत की नजर से देखते हैं । 
 देश की आजादी के समय 10 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई, 50 लाख के आसपास लोगों को अपना घर -बार छोड़ना पड़ा। 1945 में जब हिरोशिमा एवं नागासाकी पर परमाणु बम गिराए गए करोड़ों की संख्या में लोग मारे गए । 930 और 40 के दशक में करोड़ों लोगों की हत्या नाजी जर्मनी में कर दी गई। हाल ही में नोटबंदी का फैसला हुआ और लगभग सभी व्यक्ति या उनके रिश्तेदार बैंकों के सामने, ATM के सामने लाइन में लग गए ।

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि वो लोग जो राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते हैं क्या विभाजन के समय उनको अपना घर -बार नहीं छोड़ना पड़ा होगा? क्या वे परमाणु बम के हमले में बच गए होंगे । क्या उन लोगों को नोटबंदी के बाद पुराने पैसे रखने का अधिकार होगा जिनकी राजनीति में दिलचस्पी नहीं है ।

काश ऐसा हो पाता!

हमारी दिलचस्पी राजनीति में हो या नहीं हो राजनीतिक  फैसले हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं। और राजनीतिक फैसलों के प्रभाव से बचने का कोई उपाय नहीं है ।

फिर क्या कर सकते हैं हम ? 

 राजनीतिक फैसलों के प्रभाव से हम बच तो नहीं सकते हैं लेकिन हम राजनीतिक फैसलों को बदल सकते हैं हम राजनीतिक फैसले लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं और सिर्फ यही कर सकते हैं। 

लेकिन कैसे ?

एक आम धारणा है कि राजनीतिक फैसलों को नेता बनकर या राजनीतिक दल का हिस्सा बनकर या मंत्री बन कर हम प्रभावित कर सकते हैं । 

लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है और भी कई तरीके है लोकतंत्र में राजनीतिक फैसलों को प्रभावित करने के ।

भारतीय समाज के किसी साधारण परिवार में जब महिलाएं अपने पति के सामने अपना विचार, अपनी राय रखने लगती है तो पति काफी घबरा जाते हैं । घरों में जब बच्चे अपने मां-बाप से असहमति जताने लगते हैं, तो मां-बाप घबरा जाते हैं । स्कूलों में जब बच्चे अपने शिक्षक के सामने अपनी राय रखने लगते हैं और कई बार उनसे असहमति जताने लगते हैं तो शिक्षक घबराए हुए रहते हैं । और अगर शिक्षक अपनी राय रखने लग जाते हैं तो स्कूल प्रशासन घबराया हुआ रहता है । क्या होगा अगर जनता अपनी राय रखनी लग जाएगी ?

लेकिन कौन सुनेगा जनता की राय को ?

5 से 10 हज़ार लोग मिलकर जब ट्विटर तथा फेसबुक पर किसी मुद्दे के ऊपर बातचीत करने लगते हैं तो ऐसा लगता है कि पूरा देश ऐसा ही सोच रहा है । सरकारों के लिए 5 से 10 हज़ार लोगों को मैनेज करना कोई बड़ी बात नहीं है । लेकिन क्या होगा जब 60 करोड़ के आसपास की आबादी जिनका पहुंच इंटरनेट तक है, अपनी राय रखने लग जायेंगे? 

यकीन मानिए यही वह समय होगा जब आप राजनितिक फैसलों को प्रभावित करेंगे न की सिर्फ फैसलों से प्रभावित होंगे।

 फिर करना क्या है?

 राजनीतिक मुद्दों और अपने आसपास घटने वाले विभिन्न घटनाओं पर अपनी राय रखिए, उसके बारे में जानकारी रखिए और एक लाइन में ही सही अपनी बात रखिये दूसरों के साथ इसको साझा करिये, यही एक उपाय है । लोकतंत्र में हम साधारण व्यक्तियों के लिए और दूसरा कोई उपाय नहीं है। और हमें इस बात के लिए हमेशा प्रयास करना चाहिए। दूसरों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह अपना राय बनाएं, राय रखें और उसको साझा करें ।

 अपने क्लास रुम में एक दीवार मैंने बच्चों के नाम कर दी है और वहां बच्चे बिना अपना नाम लिखे अपनी राय लिख सकते हैं। अपने शिक्षक के बारे में, अपने स्कूल के बारे में, अपने करिकुलम के बारे में और जब शिक्षक क्लास में जाते हैं आंखों के सामने दीवार पर वह राय लिखा हुआ होता है, आप समझ सकते कैसे हैं वह बच्चे  और फिर किस प्रकार शिक्षक बच्चों के एम्पावरमेंट के प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं?

जब तक राय रखने की जिम्मेदारी हमने समाज में कुछ गिने चुने लोगों को ही दे रखा है,उनकी जान पर हमेशा खतरा बना होता है । एक के बाद एक प्रतिक्रियावादी ताकतों के द्वारा उनकी हत्या कर दी जाती है । लेकिन जब हम सब एक पंक्ति में ही सही, अपनी राय रखें, एक बड़ी बदलाव की ओर हमारा यह कदम होगा । और इस प्रकार हम राजनीतिक फैसलों से सिर्फ प्रभावित ही नहीं होंगे बल्कि उनको भी प्रभावित कर पाएंगे।a